परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 44
पिता मल्लप्पा के आँगन में खेले हैं ।
सारी दुनिया में जो एक अकेले हैं ।।
उन्हें बुलाता हूँ ।
हृदय बिठाता हूँ ।।
स्वारथ भरे जमाने में इस, वह इक मेरे हैं ।।स्थापना।।
जिनकी बातों में अध्यात्म,
झलकता है ।
कलि जिनसे जिन-धर्म धर्म,
सिर दिखता है ॥
इन्तजार है अब शिव राधा,
को जिनका ॥
गुरु विद्या सागर में नन्य,
भक्त तिनका ।। जलं।।
निरख चाँद जिनका मुख झॉंके,
है बगलें ।
गुण अशेष कब जिनके कह,
पाईं गजलें ॥
हर मुश्किल का तोड़ पास,
जिनके भाई॥
गुरु विद्या सागर वे कलि
सर्वग घाँई ।। चन्दनं।।
पन पापों से प्रीत तोड़,
दीनी जिनने ।
अपने घर की आप राह,
लीनी जिनने ॥
शिव रथ सारथ-वाह कौन,
कलि बिन जिनके ॥
गुरु विद्या सागर वे मैंटे,
अघ मन के ।। अक्षतं।।
विकथाओं में जो कब समय,
बिताते हैं
पल-पल श्री अरिहन्त सिद्ध,
जो गाते हैं ।
ध्यान रखें भक्तन शिशुअन,
माँ के भाँती ॥
गुरु विद्या सागर वे हों,
शिव तक साथी ।। पुष्पं।।
जिनके दर बिन माँगे सब कुछ,
मिलता है ।
मुरझाया मुखड़ा लख जिनको,
खिलता है ॥
किनके शीश नहीं जिन कल्प-
वृक्ष छाया ।
गुरु विद्या सागर वे उन्हें
शीश नाया ।। नैवेद्यं।।
जिनसा बनने लालायित,
दुनिया सारी ।
जैनागम सम्मत वाणी,
जिनकी प्यारी ॥
दुनिया कहती मुनियों का,
सरताज जिन्हें ।
गुरु विद्या सागर वे वन्दूँ ,
आज तिन्हें ।।दीपं।।
जिनका आशीर्वाद नहीं क्या,
क्या करता ।
स्वर्ग बात साधारण शिव,
कर पे धरता ॥
षट् आवश्यक जिनके कब,
रहते कमती ।
गुरु विद्या सागर वे स्वीकारें,
विनती ।।धूपं।।
ऐसे चलते जैसे नव वधु,
चलती है ।
जिन्हें सुमरते पल में आपद्,
टलती है ।।
वंचकता से आज सिर्फ ये,
ही रीते ।
गुरु विद्या सागर वन्दन तिन,
दृग् तीते ।।फलं।।
धन्य अभय मुद्रा जिनकी,
अद्भुत लगती ।
गुरु घाँईं परिणति जिनकी,
हर दम जगती ॥
माहिर जो दूजों के दोष,
छुपाने में।
गुरु विद्या वे, मैं ! रत तिन,
गुण गाने में ।।अर्घ्यं।।
“दोहा”
जिन्हें देखते ही स्वयं,
झुक जाता है माथ ।
श्री गुरु विद्या वे सदा,
रहें हमारे साथ ॥
“जयमाला”
नैय्या पार बिना पतवार ।
मंगल कार, अमंगल हार ।।
सद्गुरु दया-क्षमा अवतार ।
जय जय कार, जय जय कार ।।
बजरंगी, दृग्-अंजन नीर।
आये द्वारे चन्दन वीर ।।
अंजन रिद्ध सिद्ध तत्काल।
किस्से सिर्फ न यूँ दो चार ।।
जय जय कार, जय जय कार ।
सद्गुरु दया-क्षमा अवतार ।।
चढ़ा माथ पद गुरु जलगंध ।
पंख जटायू स्वर्ण सुगंध ।।
भगवन् कुन्द-कुन्द इक ग्वाल ।
किस्से सिर्फ न यूँ दो चार ।।
जय जय कार, जय जय कार ।
सद्गुरु दया-क्षमा अवतार ।।
सहज निराकुल सुमरण शाम ।
वानर, नाग, नकुल गुणधाम ।।
कभी न खाली गई गुहार ।
किस्से सिर्फ न यूँ दो चार ।।
जय जय कार, जय जय कार ।
सद्गुरु दया-क्षमा अवतार ।।
नैय्या पार बिना पतवार ।
मंगल कार, अमंगल हार ।।
सद्गुरु दया-क्षमा अवतार ।
जय जय कार, जय जय कार ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*दोहा*
अहो ! अहो ! ओ ! ओ ! अहो !
मुनियों के सरताज ।
धन ! नर भव कर दीजिये,
मेरे हृदय विराज ॥
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