बाल-सभा
(१)
चलो चलो सबसे पहले ।
कुछ चावल मुट्ठी में ले ।।
भगवन् से मिल आते हैं ।
पुण्य जेब भर लाते हैं ।।१।।
(२)
पीते चाय, होते काले ।
पीते चाय, मरती भूख ।।
तभी पिलाती मम्मी दूध ।
मेरी मम्मी खूब,
सच, मोरी मम्मी खूब ।।१।।
(३)
गपशप करते, भोजन करते ।
चप-चप कर, जो भोजन करते ।।
उनकी कट जाती है जीभ ।
बाद न मिलती खाने चीज ।।
(४)
बाजी मन्दिर की घंटी ।
टन-टन-टन, टन-टन-टन ।।
रिंकी पिंकी ओ ! बंटी,
चलो चलें करने दर्शन ।।
प्रभु को इन आंखों से देख ।
धन्य बनाये अपने नेत्र ।।१।।
बाजी मन्दिर की घंटी ।
टन-टन-टन, टन-टन-टन ।।
रिंकी पिंकी ओ ! बंटी,
चलो चलें करने पूजन ।।
प्रभु को द्रव्य चढ़ाकर आठ ।
धन्य बनाये अपने हाथ ।।२।।
बाजी मन्दिर की घंटी ।
टन-टन-टन, टन-टन-टन ।।
रिंकी पिंकी ओ ! बंटी,
चलो चलें सुनने प्रवचन ।।
गुरु मुख से सुनकर जिनवाण ।
धन्य बनाये अपने कान ।।३।।
(५)
मुख में दबा पंखुड़ी लाता ।
फुदक फुदक कर मेंढ़क आता ।।
मन में ले जिन पूजन भाव ।
आया नीचे हाथी पांव ।।१।।
स्वर्ग सिधारा, देव कहाया ।
मेंढ़क चिह्न मुकुट मन भाया ।।
समव-शरण गूंजी जयकार ।
सद्भावन भव नाशनहार ।।२।।
(६)
।। जैनी बच्चे-बच्चियां ।।
तुरत पकड़ते अपने कान,
बन पड़ते ही गलतियां ।
रखें खोलकर अपने कान,
सुनने अपनी गलतियां ।।१।।
जैनी बच्चे-बच्चियां ।
जैनी बच्चे-बच्चियां ।।
तुरत झांपते अपनी आंख,
देख और कीं गलतियां ।
तुरत खोलते अपनी आंख,
और न करते गलतियां ।।२।।
जैनी बच्चे-बच्चियां ।
जैनी बच्चे-बच्चियां ।।
तुरत बढ़ाते अपने हाथ,
चुनने, सुनकर सूक्तियां ।
झट सकोचते अपने हाथ,
कभी न तोड़ें पत्तियां ।।३।।
तुरत बढ़ाते अपने पांव,
लख औरन आपत्तियां ।
झट लौटाते अपने पांव,
लख औरन संपत्तियां ।।४।।
(७)
।। वही कहाते सच्चे जैन ।।
देख दूसरों की पीड़ा,
भर आते हैं जिनके नैन ।
वही कहाते सच्चे जैन ।।१।।
सेवा साधु, देव पूजा,
कियें वगैर न जिनको चैन ।
वही कहाते सच्चे जैन ।।२।।
छान पिया करते पानी,
कभी न करते भोजन रैन ।
वही कहाते सच्चे जैन ।।३।।
जिनके मुख निकला करते,
बड़े सुरीले मीठे वैन ।
वही कहाते सच्चे जैन ।।४।।
दिखे जिन्हें पर नारी में,
माता बिटिया अपनी बैन ।।
वही कहाते सच्चे जैन ।।५।।
(८)
बाज कहें घुंघरू छम छम
आओ बच्चों come… come… come…
कभी न तुम करना गुस्सा ।
आखिर हाथ सलाई शून ।
सुनते हैं, जल जाता खून ।।
उतर आंख में आता खून ।
वैसे मुख अपना शशि पून ।।
कहता तुंकारी किस्सा ।
कभी न तुम करना गुस्सा ।।१।।
बाज कहें घुंघरू छम छम
आओ बच्चों come… come… come…
भला न कहलाना कपटी ।
कोढ़ फूट आता तन में ।
काली नजर लगे धन में ।।
है ही प्रचलित जन-जन में,
अगला जन्म तिरंचन में ।।
कथा सदामा भी कहती ।
भला न कहलाना कपटी ।।२।।
बाज कहें घुंघरू छम छम
आओ बच्चों come… come… come…
कभी न करना तुम चोरी ।
रह जाता दाढ़ी तिनका ।
चैन करार लुटे मन का ।।
कहना साधो सज्जन का,
उठे भरोसा जग-जन का ।।
पकड़ो कान, कहो सॉरी ।
अब न करेंगे हम चोरी ।।३।।
(९)
जैनी बच्चे हटके हैं
गपशप कर चंदा मामा से,
रात न कर लेते ज्यादा ।
चादर खींच, कहें सूरज से,
उठो उठो सूरज दादा ।।
मीठे हैं, कुछ खट्टे हैं ।
जैनी बच्चे हटके हैं ।।
पानी छान, नहा धोकर के,
पहिन ओढ़ धोती पंचा ।
कर अभिषेक, करें जिन पूजा,
कहलायें जैनी सच्चा ।
खड़े दया से सटके हैं ।
जैनी बच्चे हटके हैं ।।
मुनि को दे आहार, करें फिर,
भोजन हो, या हो पानी ।
संध्या संध्या करके सु…मरण,
पढ़ें सुनें फिर जिनवाणी ।।
मुनि मन से दिल सच्चे हैं ।
जैनी बच्चे हटके हैं ।।
(१०)
।। जैनी बच्चे ।।
मन के उजले, दिल के सच्चे ।
जैनी बच्चे ।।
कब कहते,
सब सहते ।
सबसे खुल,
बनते पुल ।।
तोड़ें न फूल,
जोड़ें न भूल ।
कुछ खास हैं,
कछु…आ से हैं ।।
चलें न चाले,
सलें न पालें ।
सोचें न बुरा,
लेते चित् चुरा ।।
न तमतमा,
कर दें क्षमा ।
भरें न हापी,
लें माँग माफी ।।
थोड़े मीठे, थोडे़ खट्टे ।
मन के उजले, दिल के सच्चे ।
जैनी बच्चे ।।
राहत बाँटें ।
बात न काटें ।
न करें बातें,
कर दिखला दें ।।
न चाले दूब,
बचा लें खूब ।
‘जी…न चिढ़ते,
‘जीना’ चढ़ते ।।
नाम के जैसे,
काम के पैसे ।
उठें गिर के,
हैं रबर के ।।
सुदूर-होड़,
लें ढूँढ़ तोड़ ।
रस्ते से चालें,
रिश्ते निभा लें ।।
नानी नुस्खे, दादी किस्से ।
मन के उजले, दिल के सच्चे ।
जैनी बच्चे ।।
दिल मक्खन,
तिल दक्खन ।
शुभ शगुन,
सुरीली धुन ।।
बोलें कमती
सुनें, कीमती ।
चाँद बेदाग,
सोने-सुहाग ।।
सीधे व साधे,
निभाते वादे ।
रहें मिल के,
साफ दिल के ।।
हाथ ले हाथ,
चालते साथ ।
दें बना काम,
चाहें न नाम ।।
ना बड़बोले, न कान कच्चे ।
मन के उजले, दिल के सच्चे ।
जैनी बच्चे ।।
ठण्डी में धूप,
प्यासे को कूप ।
दूर-जलन,
दूर चलन ।।
ले चालें धका,
न देते धक्का ।
लेते खा धोखा,
देते न धोखा ।।
तानें न मारें,
यारों से हारें ।
दिल पे न लें,
चलते चलें ।।
न लाँघें हद,
जगत्-जगत ।
करें..जो ठाने,
बड़ों की मानें ।।
सबसे बढ़िया, सबसे अच्छे ।
मन के उजले, दिल के सच्चे ।
जैनी बच्चे ।।
क्षमा के बुत,
दृष्टि अद्भुत ।
मले न हाथ,
मैं…लें न हाथ ।।
झुकीं नजरें,
दुखी न करें ।
अंधे को आँखें,
परिन्दे-पाँखें ।।
बैठते पीछे,
देखते नीचे ।
आगे पग लें,
जीत जग लें ।।
न डरें… पता,
न करें ख़ता ।।
करें न जल्दी,
हेल्दी ‘वेल’ धी ।।
नाहिं किसी से, माफिक खुद से ।
मन के उजले, दिल के सच्चे ।
जैनी बच्चे ।।
महावीर नामकरण गीत
इक जयन्त, संजन्यत दूजे ।
निध रिध धार जिन्हें जग पूजे ।।
दर्शन मात्र निशंक बनाया ।
सार्थ नाम सन्मत तब पाया ।।१।।
देख बाल क्रीड़ा जिनराया ।
संगम देव सर्प बन आया ।।
डरे न प्रभु अतिवीर कहाये ।
क्षमा क्षमा कह देव रिझाये ।।२।।
रम्भा जिन्हें रमा ना पाई ।
उर उर्वशी वसा ना पाई ।।
वीर नाम रख चली मेनका ।
कह के सुभट न इनसा देखा ।।३।।
मुनि वन प्रभु जोवन वन चाले ।
दृग् कर लाल रुद्र इक डाले ।।
सहा निरा-कुल रह उपसर्गा ।
महावीर जय झंकृत स्वर्गा ।।४।।
मान प्रमाण ज्ञान-केवल पा ।
समवशरण झिर चाली किरपा ।।
पाया दिवि भुवि सांचा द्वारा ।
गूंजा वर्धमान जयकारा ।।५।।
प्रपंच… पाप पंच
एक शील व्रत सब पे भारी ।
पण्डित दशमुख आप सरीखा ।
पर परनारी के चक्कर में,
लिये दिये भी गर्त न दीखा ।।
सदा सर्वदा शुचि ब्रमचारी ।
एक शील व्रत सब पे भारी ।।१।।
बाड़ और व्रत हेत अहिंसा ।
बोला झूठ भले यम पाला ।
कुंवर ग्रास मुख मगर, अमर ने
कमलासन दीना चण्डाला ।
थके न जग पुल बाँध प्रशंसा ।
बाड़ और व्रत हेत अहिंसा ।।२।।
पाप पांच न पड़ो प्रपंचा ।
झूठ करार छीन ले मन का ।
पीछे काग, काग बन वैरी,
रहे चोर दाढ़ी में तिनका ।।
रहो निराकुल, बनो विरंचा ।
पाप पांच न पड़ो प्रपंचा ।।३।।
समशरण महिमा
उत्सव छाया
नगरी में समवशरण आया ।।
डाल डाल पर ।
लदे फूल फल ।।
गन्ना कइ गुन्ना रस पाया ।
उत्सव छाया
नगरी में समवशरण आया ।।१।।
वैर भुलाकर ।
पास बुलाकर ।।
सिंह ने मृग छौना दुलराया ।
उत्सव छाया
नगरी में समवशरण आया ।।२।।
नदी, कुंआ सब ।
हुये लबालब ।।
कमलों पर भौंरा मंडराया ।
उत्सव छाया
नगरी में समवशरण आया ।।३।।
कौन करेगा गो-सेवा
गुरु भक्तों में आते हम
आ संकल्प उठाते हम
हवा पश्चिमी जाँ लेवा
कौन करेगा गो-सेवा
हम करेंगे
हम करेंगे
हम करेंगे
घास और क्या खाती है
मीठा दूध पिलाती है
तभी कृष्ण को भाती है
गोकुल विश्व बनाते हम ।।१।।
पेट काट निज बछड़े का
गैर-भाग्य खींची रेखा
हमने किन्तु सार्थ देखा
चश्मा नाक हटाते हम ।।२।।
आ बूचड़-खाने देखो
मरती तड़फ-तड़फ के गो
दोगे क्या जवाब उसको
बन कर अमर न आते हम ।।३।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।
ग्राम सदलगा की गलियाँ ।
फूल यहीं बोलें कलियाँ ।।
वृद्ध जवाँ नन्हें मुन्ने ।
कहें किताबों के पन्ने ।।
राखी लें सखियाँ कुछ सँग ।
कहें यही होली के रँग ।।
उजयाली निशि काली भी ।
कहती यही दिवाली भी ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।१।।
झर-झर झरतीं फुल झड़ियाँ ।
कर टिक-टिक कहतीं घड़ियाँ ।।
होले राग-रागिनी से ।
बोले चाँद चाँदनी से ।।
खेत यही हल-वा बाड़ी ।
कहती हथ-करघा साड़ी ।।
सूड़ उठा गजराज यही ।
खून हटा वनराज कही ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।२।।
शिखर कहे जा यही गगन ।
खबर भिजाये यही पवन ।।
मृग कस्तूरी जोरों से ।
कहे मयूरी मोरों से ।।
अथक-अरुक बहती नदिया ।
फुदक फुदक कहती चिड़िया ।।
ग्वाला गो श्यामा-गौरी ।
कहती चल-चरखा डोरी ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।३।।
पूरी मैत्री महिलायें ।
प्रतिभा थलि बाला गायें ।।
अनुशासन हर युवा यही ।
कहे प्रशासन शासन भी ।।
हस्ताक्षर वृष माहन के ।
कहें जिनालय पाहन के ।।
यही आसमाँ जमीं कहें ।
क्यों बिन बोले हमीं रहें ।।
छोटे बाबा सबके हैं ।
छोटे बाबा रब से हैं ।।४।।
एक दो तीन चार
जैन मिलें करते उपकार
पांच छः सात आठ
जैन करें भोजन मिल बाँट
नौ दश ग्यारा बारा
मानें जैन कुटुम जग सारा
तेरा चौदा पन्द्रा सोला
झिरा अमृत मुख जैनी खोला
सत्रा अठारा उन्नीस बीस
दर-दर झुके न जैनी शीष
A B C … A B C
शिष्य न डाँट बिना शीशी
D.E.F … D E F
निकलो धूप लगा के कैप
G H I … G H I
बनती कोशिश करो भलाई
J K L … J K L
बढ नाखून छुपा लें मैल
M.N.O … M N O
सदा आत्म विश्वास रखो
P Q R … P Q R
कहता ‘मां… जा’ समझो यार
S T U … S T U
बात न करना कहके तू
V W X … V W X
कभी न करना चोरी टैक्स
Y & Z … Y & Z
कहो पिता जी ना ‘कि डेड
|| सार कहानी, दादी-नानी ||
खाकर मीठा, पिओ न पानी |
गुड़ मिसरी सी बोलो वाणी ||
विद्या कभी न बेंचे ज्ञानी |
सार कहानी, दादी-नानी ||
करो घमण्ड न बनकर दानी |
नरक गया रावण अभिमानी ||
टूक-डोर, कर खींचा तानी |
सार कहानी, दादी-नानी ||
छोड़ो जा जल-थान जिवाणी |
सुबहो-साँझ सुनो जिनवाणी ||
सदा भावना बारह भानी |
सार कहानी, दादी-नानी ||
जीव भ्रमे जग भाँत मथानी |
‘सहज निराकुल’ समरससानी, ||
हाथ विनीत छाँव वरदानी |
सार कहानी, दादी-नानी ||
कहे बाज पायल छम-छम |
गुस्सा पीना, खाना गम ||
कहे बाज घण्टी टन टन |
साधो बने सांझ सु-मरण ||
कहे बाज वंशी सरगम |
बचो, उड़ा जल हुआ गरम ||
कहे बाज घुंघरु रुन झुन |
बहिन ओढनी चुन’री चुन ||
कहे बाज ढ़पली ढम-ढम |
मर हम हो पायें मरहम ||
कहे बाज तबला ता-धिन |
सुन नवकार पार ना…गिन ||
चुगली खाते टूटे दम ।
खानी जितनी खा लो गम ।।
कोक पिया, ना प्यास बुझी,
पी गुस्सा भी देखे हम ।।
लड़ना भिड़ना छोड़ के ।
प्रीत प्रभू से जोड़ के ।।
आ पढ़ते नवकार हम ।
रम पम पम, तारा रम पम पम
णमो अरि-हं-ताणं
णमो सिद्-धाणं
णमो आ-यरि-याणं
णमो उवज्-झा-याणं
णमो लोए सव्व-साहूणं ।।१।।
रम पम पम, तारा रम पम पम
लड़ना भिड़ना छोड़ के ।
प्रीत प्रभू से जोड़ के ।।
आ पढ़ते नवकार हम
रम पम पम, तारा रम पम पम
एसो पंच-णमोक्-कारो,
सव्-वप्-पावप्-पणा-सणो ।
मं-गलाणं च सव्-वेसिं,
पढमं हवइ मंगलम् ।।२।।
रम पम पम तारा रम पम पम
हिंसा पहलो पाप है।
झूठ दूसरो पाप है ।।
पाप तीसरो है चोरी ।
चुनियो कुशील चौथो ‘री ।।
पाप परिग्रह पाँचवा ।
दो न पाप में जन्म गवा ।।
ले जा नरक रहीं हैं ।
चार कषाय कहीं हैं ।।
पहली क्रोध सुनो जी ।
दूजी मान चुनो जी ।।
कषाय तीजी माया ।
चौथी लोभ कषाया ।।
पहला जीव द्रव्य पहचानो ।
द्रव्य दूसरा पुद्-गल जानो ।।
द्रव्य तीसरा धर्म नाम का ।
चौथा द्रव्य अधर्म नाम का ।।
द्रव्य पांचवा है आकाश ।
छटवा द्रव्य काल जिनभाष ।।
सुनो, एक हाथी था ।
वह सबका साथी था ।।
बांस रगड खा लागी ।
वन में इक दिन आगी ।।१।।
भागे दौड़े सारे ।
ठहरे नदी किनारे ।।
पैर उठा हाथी जब ।
खुजली मिटा रहा तब ।।२।।
बैठ गया था आकर ।
इक खरगोश वहाँ पर ।।
एक पैर पर हाथी ।
खड़ा रहा दिन-राती ।।३।।
धम्मो दया विसुद्धो ।
है ही जगत् प्रसिद्धो ।।
कर चरितार्थ दिखाया ।
जश देवों ने गाया ।।४।।
चुन्नू मुन्नू दो बच्चे ।
थे दोनों दिल के सच्चे ।।
डला मिला कुछ रास्ते में ।
रख सकते थे बस्ते में ।।१।।
पर न लगाया उनने हाथ ।
गूंज रही थी मन मे बात ।।
चीज पराई रख लेना ।
है चोरी यह लिख लेना ।।२।।
दो एकम् दो – जल्द उठो, जल्दी सो ।
दो दूनी चार – दया धर्म का सार ।
दो तियन छै – खाओ कभी न भय ।
दो चौके आठ – रहो फेरते पाठ ।
दो पंचे दश – टालो दुर्-मति हँस ।
दोई छींग बारा – जपो णमोकारा ।
दोई सत्ते चौदा – रहे कला या सौदा ।
दो अठ्ठे सोला – विनय जादुई झोला ।
दोई नाम अठारा – एक एक मिल ग्यारा ।
दोइ धाम बीस – रक्खो रबर शीश ।
पाँच इन्द्रियाँ, देना ध्यान ।
स्पर्शन, रसना फिर घ्राण ।
चक्षु आँख भी कहें उसे फिर,
कर्ण जिसे कहते हैं कान ।
A, B, C, D, E, F, G
दान जन्म अगले एव-डी ।
H, I, J, K, L, M, N
बोला झूठ, छीने चैन ।
O, P, Q, R, S, T, U
विरली दया धर्म खुशबू
V, W, X, Y, And Z
पाप दिखाओ झण्डी रेड
=तीन का पहाड़ा=
तीन एकम् तीन…नहीं कोई हीन ।
तीन दूनी छह…रक्खो बड़ा हृदय ।
तीन तिरका नौ…माँ कहना मानो ।
तीन चौके बारा…मन हारे, हारा ।
तीन पांचे पन्द्रा…लो श्वान सी निद्रा ।
तीन छींग अठारा…मित्र जगत् सारा ।
तीन साते इक्कीस…व्यर्थ न घोरो शीश ।
तीन अट्ठे चौबीस…बस न मांगे मां फीस ।
तीन नाम सत्ताईस…असि आउसा ईश ।
तीन धाम तीस… देना माँ आशीष ।
इक ना एक – चलना देख ।
दूनी दो – जीने दो ।
तिरका तीन – बनो न दीन ।
चौके चार – भोले पार ।
पंचे पांच – सांच, न आंच ।
छक्के छै – लिख के जै ।
सत्ते सात – मत्थे मात ।
अट्ठे आठ – रटो न पाठ ।
नाम नौ – गुण गुनो ।
धाम दश इति – माँ सरस्वती ।
एक पै एक ग्यारा…करे क्रोध, हारा ।
एक पै दो बारा…विनय बुद्धि द्वारा ।
एक पै तीन तेरा…भला न तेरा मेरा ।
एक पै चार चौदा…एक लगाओ पौधा ।
एक पै पाँच पन्द्रा…निन्द्रा भली न तन्द्रा ।
एक पै छह सोला…छोड़ो कोकाकोला ।
एक पै सात सत्रा…पुस्तक अच्छी मित्रा ।
एक पै आठ अठारा…रक्खो भाई चारा ।
एक पै नौ उन्नीस…न पालो मन टीस ।
दोई धाम के बीस…वन्दन मॉं नत शीष ।
चार एकम् चार – करो शाकाहार
चार दूनी आठ – स्वास्थ्य छीने चाट
चार तिरी बारा – दो न चढ़ने पारा
चार चौके सोला – स्वाध्याय अनमोला
चार पंचे बीस – विद्यमान तीर्थंकर ईश
चार छींग चौबीस – वर्तमान तीर्थंकर ईश
चार सत्ते अट्ठाईस – राइज फिर न राइस
चार अट्ठे बत्तीस – पड़ो न फेर छत्तीस
चार नाम छत्तीस – जुबाँ पहरे बत्तीस
चार धाम चालीस – प्रणाम द्वादश माँ ईश
पाँच एकम् पाँच – सदा बोलो साँच
पाँच दूनी दश – भक्ति मणी परस
पाँच तिरी पन्द्रा – करो न कभी निंदा
पाँच चौके बीस – रखो न भार शीष
पाँच पंचे पच्चीस – लोकान्तिक कल ईश
पाँच छींग तीस – कभी न मुट्ठी भींच
पाँच सत्ते पैंतीस – हाथ लगा के लेना छींक
पाँच अट्ठे चालीस – बच्चो, न पहनो जींस
पाँच नाम पैंतालीस – कांच दर्पण कृपा ईश
पाँच धाम पचास – करो माँ कण्ठ निवास
छह एकम् छह – तय सत्य जय
छह दूनी बारा – क्षमा एक सहारा
छह तिरी अठारा – करो श्री जी धारा
छह चौके चौबीस – रहो न बने उनीस
छह पञ्चे तीस – लॉइफ लाइन ग्रीस
छह छींग छत्तीस –
छह सत्ते ब्यालीस – माटी मटकी दया ईश
छह अट्ठे अड़तालीस – खुले ताले बाहर ऋषीश
छह नाम चौवन – वश में अपने रक्खो मन
छह धाम साठ- माँ लो थाम हाथ
सात एकम् सात – रहती सदा न रात
सात दूनी चौदा – करो भक्ति नौधा
सात तिरी इक्कीस – जल्द न जाओ खींज
सात चौके अट्ठाईस – बच्चो खटाई आईस
सात पंचे पैंतीस – बाल ब्रह्म जै ईश
सात छींग ब्यालीस – साधु सन्त दीया दीस
सात सत्ते उनन्चास – समझो भी कहे इति…हास
सात अट्ठे छप्पन – रखना सदा बढ़प्पन
सात नाम तिरेसठ – बेत झुके, गिरे वट
सात धाम सत्तर – माँ प्रणाम अनुत्तर
आठ एकम् आठ- रक्खो साफ दांत
आठ दूनी सोला – क्षमा, जो पानी ढ़ोला
आठ तिया चौबीस – बेला, उपास दो दीस
आठ चौके बत्तीस – सत्य अहिंसा पथ ईश
आठ पंचे चालीस – बने, बनो अप्प दीव
आठ छींग अड़तालीस – फल के कर लो पीस
आठ सत्ते छप्पन – उड़े, बचाओ बचपन
आठ अट्ठे चौंसठ – मान करे सब चौपट
आठ नाम बहत्तर – साध संगति इत्तर
आठ धाम अस्सी – मम माँ सबसे अच्छी
नौ एकम् नौ – मोती बनी जौ
नौ दूनी अठारा – नाग फूल माला
नौ तिरी सत्ताईस – नौ तिरी किरपा ईश
नौ चोके छत्तीस – श्वान स्वर्गपुर अधीश
नौ पंचे पैंतालीस – अष्ट कर्म विजेता ईश
नौ छींग चौवन – मोक्ष करीब गौ बन
नौ सत्ते तिरेसठ – झूठ घेरे न घिरे सत्
नौ आठे बहत्तर – फल दे, तरु खा पत्थर
नौ नाम इक्यासी – गो सेवा काबा काशी
नौ धाम नब्वे – जै सरसुत जगदम्बे
दस एकम् दस – चोर चौंर जश
दश दूनी बीस – बनो न बातूनीश
दश तिया तीस – नम जिया ईश
दश चौके चालीस – तज धोखे आदीश
दश पंचे पचास – मन चंगे उपास
दश छींग साठ – धागे मत दो गाँठ
दश सत्ते सत्तर – सार्थ लाल पत्थर
दश अट्ठे अस्सी – चुप सबसे अच्छी
दश नाम नब्बे – जीव अजीव दो द्रव्यें
दश धाम सौ – प्रणाम मां कोटि नौ
(१)
जय-जयकार
जय-जयकार
सूरी भगवन्तों के ।
सब साधू सन्तों के ।
हों निर्विघ्न अहार ।।
जय-जयकार
जय-जयकार
सभी आर्यिका माता ।
व्रति बहनें, व्रति भ्राता ।।
लें निर्बाध अहार ।।
जय-जयकार
जय-जयकार
भोजन जीमें हम जो ।
स्वस्थ्य रखे वो हमको ।
हो विनती स्वीकारा ।।
जय-जयकार
जय-जयकार
(२)
हम बैठे भोजन पाने ।
है खूब परोसा माँ ने ।।
बस एक प्रार्थना भगवन् ।
रख माथ हाथ, तर-नयनन ।।
आचारज पदवी धारी ।
उवज्ञाय निजात्म विहारी ।।
अर संघ चतुविध न्यारा ।
पाये निर्विघ्न अहारा ।।
सो चले न कोई भूखा ।
रह चाले कण्ठ न सूखा ।।
पावें ‘के भोजन पानी ।
हो स्वस्थ काय-मन-वाणी ।।
हम बैठे भोजन पाने ।
है खूब परोसा माँ ने ।।
बस एक प्रार्थना भगवन् ।
रख माथ हाथ, तर-नयनन ।।
(३)
फिर भोजन करना
आ करें प्रार्थना पहले हम
ले लोचन नम
आचार्य हमारे
उवझाय हमारे
और हमारे सन्त-साध
लें आहार निर्बाध
णवकार सुमरना
फिर भोजन करना
आ करें प्रार्थना पहले हम
ले लोचन नम
भोजन जो जीमें
जो पानी पीवें
वो रखे निरोग शरीर
हेत समाध अखीर
णवकार सुमरना
फिर भोजन करना
आ करें प्रार्थना पहले हम
ले लोचन नम
(४)
भो ! जन भोजन फिर करना
आ पहले करे विनन्ती
जे शिव पन्थी आचारज
उवझाय रेख चरणा गज
जे ऋषि मुनि यति अनगार
पाये निर्विघ्न आहार
मन्तर णवकार सुमरना
भो ! जन भोजन फिर करना
आ पहले करे विनन्ती
नत, लगा बिन्दु दृग् पंक्ति
जो प्राण ग्यारवाँ माना
वो पानी, दाना दाना
तन रखे स्वस्थ्य मन वाणी
वर दो इतना वरदानी
स्वीकार नमन अनगिनती
नत, लगा बिन्दु दृग् पंक्ति
भो ! जन भोजन फिर करना
आ पहले करे विनन्ती
(५)
भोजन बाद, प्रार्थना पहले
आ करते आ करते हैं ।
वीर प्रभो के चरणों की रज
अपने सिर पर धरते हैं ।।
जहाँ जहाँ भी साधु-सन्त हो,
माँ आर्यिका व्रती त्यागी ।
उन्हें करा आहार निर्विघन,
श्रावक हो लें बड़भागी ।।
बने रहें तर गले सभी के,
करना इतनी सी करुणा ।
सो न चले कोई भी भूखा,
इतनी सी किरपा करना ।।
रखे स्वस्थ्य तन रखे स्वस्थ्य मन
और स्वस्थ राखे वाणी ।
ग्रहण करें हम, आप कृपा से,
वो जो भी दाना पानी ।।
भोजन बाद, प्रार्थना पहले
आ करते आ करते हैं ।
वीर प्रभो के चरणों की रज
अपने सिर पर धरते हैं ।।
(६)
छप्पन भोग मण थाली ।
किरपा कम नहीं थारी ।।
ऋषि मुनि यति तथा अनगार ।
पायें निर्विघन आहार ।।
इतनी विनन्ति म्हारी ।
किरपा कम नहीं थारी ।।
ढ़ाये अत नाहीं भूख ।
नाहीं गले चालें सूख ।।
इतनी विनन्ति म्हारी ।
किरपा कम नहीं थारी ।।
भोजन रखे वाणी स्वस्थ्य ।
तन मन रखे पानी स्वाथ्य ।।
इतनी विनन्ति म्हारी ।
किरपा कम नहीं थारी ।।
छप्पन भोग मण थाली ।
किरपा कम नहीं थारी ।।
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