- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 976
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
मैंने भी तुम्हें चुना
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो ।।स्थापना।।
सिन्ध क्षीर वाली
लिये नीर झारी
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।जलं।।
लिये मलय वाला
घट चन्दन न्यारा
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।चन्दनं।।
अछत धान शाली
लिये रजत थाली
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।अक्षतं।।
फूटे सुगंध अन
लिये पुष्प नन्दन
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।पुष्पं।।
चरु घृत अठपहरी
लिये अमृत मिसरी
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।नैवेद्यं।।
विहरे तम काला
लिये दीप माला
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।दीपं।।
इह न और वसुधा
लिये धूप दश-धा
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।धूपं।।
वन नन्दन क्पारी
लिये फल पिटारी
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।फलं।।
दिव्य दिव्य छव ‘री
लिये द्रव्य सबरी
जब से, ‘कि ऐसा सुना
तुम भक्तों की सुनते हो
अपना भक्तों को चुनते हो
जब से, ‘कि ऐसा सुना
मैंने भी तुम्हें चुना ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
जयतु जयतु जय, मेरे भगवन्
मेरे भगवन् जय
मेरे भगवन्, मेरे भगवन्, मेरे भगवन् जय
जयतु जयतु जय, मेरे भगवन्
मेरे भगवन् जय
जयमाला
जय विद्या, जय विद्या कहना है
गुरु भक्ति धारा में बहना है
जैसे राखें वैसे रहना है
उफ न करना, सब कुछ सहना है
गुरु भक्ति धारा में बहना है
जय विद्या, जय विद्या कहना है
गुरु आज्ञा पालन करना ही,
सच्ची दीक्षा है
माटी बने न यूँ ही मटकी
देनी पड़ती अग्नि परीक्षा है
गुरु आज्ञा पालन करना ही,
सच्ची दीक्षा है
जैसे राखें वैसे रहना है
उफ न करना, सब कुछ सहना है
जय विद्या, जय विद्या कहना है
गुरु भक्ति धारा में बहना है
जैसे राखें वैसे रहना है
उफ न करना, सब कुछ सहना है
गुरु भक्ति धारा में बहना है
जय विद्या, जय विद्या कहना है
गुरु आज्ञा पालन करना ही,
सच्ची दीक्षा है
साल पे साल गुजरते जाते,
वैसे ढ़ाई आखर की शिक्षा है
गुरु आज्ञा पालन करना ही,
सच्ची दीक्षा है
जैसे राखें वैसे रहना है
उफ न करना, सब कुछ सहना है
जय विद्या, जय विद्या कहना है
गुरु भक्ति धारा में बहना है
जैसे राखें वैसे रहना है
उफ न करना, सब कुछ सहना है
गुरु भक्ति धारा में बहना है
जय विद्या, जय विद्या कहना है
गुरु आज्ञा पालन करना ही,
सच्ची दीक्षा है
सिर्फ ढ़ोलना घडे़ न फल हित
करनी पड़ती रित की प्रतिक्षा है
गुरु आज्ञा पालन करना ही,
सच्ची दीक्षा है
जैसे राखें वैसे रहना है
उफ न करना, सब कुछ सहना है
जय विद्या, जय विद्या कहना है
गुरु भक्ति धारा में बहना है
जैसे राखें वैसे रहना है
उफ न करना, सब कुछ सहना है
गुरु भक्ति धारा में बहना है
जय विद्या, जय विद्या कहना है
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
बुलाएँ
फैला बाँहें
आ हृदय वे, मेरे समाएँ
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