परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 92
तेरा हिवरा,
है इतना कितना बड़ा,
समाया सारा संसार है ।
फिर भी खुला तेरा दरबार है ।।
कम न ये, इक चमत्कार है ।।
तेरा हिवरा,
है इतना कितना बड़ा,
समाया सारा संसार है ।।स्थापना।।
नेह आप ‘कर’ करना,
क्या करना होगा ।
रत्नत्रय आचरना,
क्या करना होगा ॥
चेतन कृति गुरु ज्ञान सिन्धु,
करुणा कीजो ।
शिशु हम हमें शरण में,
अपनी रख लीजो।। जल॑।।
रूठी प्रवचन मात मनाऊँ,
कैसे जी ।
दूर गेह निज, समीप आऊँ,
कैसे जी ॥
ओ ! अध्यात्म सरोवर,
राज हंस नामी ।
बने हमारे रहिये नयनन,
पथ गामी।।चन्दनं।।
अरि प्रहार धर समता भी,
सह सकते क्या ?
जल बिच भिन्न कमल से भी,
रह सकते क्या ?
मति-मराल उपशान्त कीजिये ,
निज भाँती ।
शिव तक आप बने रहिये,
कृपया साथी ।।अक्षतं।।
मन्मथ मर्दन कला हमें ,
दीजे सिखला ।
खोल विभव निज विभव हमें ,
दीजे दिखला ॥
बिना आपके कौन हमारा,
है जग में ।
अपने पीछे ही लगाये,
रखिये मग में ।।पुष्पं।।
करना कैसे विषयन चक्र,
व्यूह भेदन ।
क्या देरी करने में अमल,
आत्म वेदन ॥
अँगुली आप हमारी थाम,
लीजिये ना ।
करुणा कर दिखला शिव धाम,
दीजिये ना ।। नैवेद्यं ।।
विकथाओं को कैसे पीठ,
दिखाना है ।
कहो श्रृंग श्रमणत्व विधी,
किस पाना है ॥
होवे मेरे सिर पे तव,
आँचल छाया ।
मलती रह जाये निज हाथ,
मोह-माया ।। दीप॑।।
आलस क्यों वरवश हो,
जाता है हावी ।
करना क्या होगा बनने,
जिनवर भावी ॥
घुटनों के बल सिर्फ अभी
चलना आता ।
कृपा-दृष्टि कृपया बनाये,
रखिये त्राता ।। धूपं।।
मचा रहा मन विप्लव कैसे,
समझाऊँ ।
कृत कर्मन चिट्ठा काला क्या,
दिखलाऊँ ॥
कही पीर लख तुम्हें अपरि-
स्रावि स्वामी ।
कृपया करुणा कर विनशा ,
दीजो खामी।। फल॑।।
पाश गृद्धता से कैसे,
झटकूँ दामन ।
जीवन पतझड़ बना,
बने कैसे सावन ॥
कृपया पद अनर्घ कर दीजो,
हाथों में ।
शिव तक पहुँचा दीजो,
बातों बातों में ।।अर्घ्यं।।
दोहा
जो करुणा बरषा रहे,
निस्पृह सुबहो शाम ।
श्री गुरु विद्या सिन्धु वे,
सविनय तिन्हें प्रणाम ॥
“जयमाला”
विद्याधर रंँग रंँगा ।
थिरके है सदलगा ।।
साख कुछ खास है ।
जो न चार-धाम पास है ।।
साख कुछ ऐसी खास है ।
आये जमाना भागा भागा ।
विद्याधर रंँग रँगा ।।
खेती-बाड़ी वाह वाह।
सूती-साड़ी वाह वाह।
वेदी नाड़ी वाह वाह।
मनु वसुन्धरा स्वर्ग उतरा ।
विद्याधर रंँग रँगा ।।
थिरके है सदलगा ।।
साख कुछ खास है ।
जो न चार-धाम पास है ।।
साख कुछ ऐसी खास है ।
आये जमाना भागा भागा ।
विद्याधर रंँग रँगा ।।
थिरके है सदलगा ।।
माँझी नैय्या वाह-वाह।
साँझी गैय्या वाह वाह।
माँ जी छैय्या वाह-वाह।
मनु वसुन्धरा स्वर्ग उतरा ।
विद्याधर रंँग रँगा ।।
थिरके है सदलगा ।।
साख कुछ खास है ।
जो न चार-धाम पास है ।।
साख कुछ ऐसी खास है ।
आये जमाना भागा भागा ।
विद्याधर रंँग रँगा ।।
सादी बतियाँ वाह-वाह।
चाँदी रतियाँ वाह-वाह।
गाँधी अँखिंयाँ वाह-वाह।
मनु वसुन्धरा स्वर्ग उतरा ।
विद्याधर रंँग रँगा ।।
थिरके है सदलगा ।।
साख कुछ खास है ।
जो न चार-धाम पास है ।।
साख कुछ ऐसी खास है ।
आये जमाना भागा भागा ।
विद्याधर रंँग रँगा ।।जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा
महिमा श्री गुरुदेव की,
अकथनीय अनमोल ।
दिखा आत्म वैभव रही,
जो निज वैभव खोल ।।
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