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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 838

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 838

इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।स्थापना।।

क्षीर सागर कलश
हेत सम्यक् दरश
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।जलं।।

न्यार चन्दन कलश
हेत ‘भी’तर परश
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।चन्दनं।।

शालि अक्षत अछत
हेत अक्षर विरद
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।अक्षतं।।

बाग नन्दन कुसुम
हेत वसुधा कुटुम
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।पुष्पं।।

भोग छप्पन नवल
हेत भव-जल कमल
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।नैवेद्यं।।

ज्योत दृग्-हर अबुझ
हेत अन्दर समझ
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।दीपं।।

गंध अद्‌भुत अगर
हेत सद्-गुण निकर
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।धूपं।।

थाल फल रित सबन
हेत अमरित वचन
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।फलं।।

थाल चाँदी अरघ
हेत सुख शिव-सुरग
सहज भेंटूँ सविनय
विद्यासागर जी की जय
इक विशाला हृदय
क्षमा करुणा निलय
विद्यासागर जी की जय
विद्यासागर जी की जय ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
पड़ी शिकन रेखा,
कभी चेहरे गुरु न देखा

जयमाला
हूबहू गुलाब तेरा ही चाँद है
मैं मानता हूँ
अय ! आसमाँ
पै बतला जरा
क्या मानता तू
कुछ कम न लाजबाब मेरा भी चाँद है

मिटाता अंधेरा,
नहीं तेरा ही चाँद है
प्रकटाता उजेला,
अजी मेरा भी चाँद है

दिन और रात,
न सिर्फ़ पूर्णिमा
अय ! आसमाँ

हूबहू गुलाब तेरा ही चाँद है
मैं मानता हूँ
अय ! आसमाँ
पै बतला जरा
क्या मानता तू
कुछ कम न लाजबाब मेरा भी चाँद है

खिलाता प्रसून,
नहीं तेरा ही चाँद है
दिलाता सुकून,
अजी मेरा भी चाँद है
यूँ ही न कोई,
कहलाये मूरत क्षमा
अय ! आसमाँ

हूबहू गुलाब तेरा ही चाँद है
मैं मानता हूँ
अय ! आसमाँ
पै बतला जरा
क्या मानता तू
कुछ कम न लाजबाब मेरा भी चाँद है

बिखराता शीतलता,
नहीं तेरा ही चाँद है
जग-त्राता, शीत…लता,
अजी मेरा भी चाँद है

देव जिस किसी से कब,
कहते नमो नमः
अय ! आसमाँ

हूबहू गुलाब तेरा ही चाँद है
मैं मानता हूँ
अय ! आसमाँ
पै बतला जरा
क्या मानता तू
कुछ कम न लाजबाब मेरा भी चाँद है

मिटाता अंधेरा,
नहीं तेरा ही चाँद है
प्रकटाता उजेला,
अजी मेरा भी चाँद है

दिन और रात,
न सिर्फ़ पूर्णिमा
अय ! आसमाँ

हूबहू गुलाब तेरा ही चाँद है
मैं मानता हूँ
अय ! आसमाँ
पै बतला जरा
क्या मानता तू
कुछ कम न लाजबाब मेरा भी चाँद है
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
गुरु ने कर जो बात ली,
‘भो ! मानो’ लॉटरी खुली

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