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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 81

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रमांक-81

आँगन आँगन उत्सव छाया ।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।।
ऐसा चाँद न पूनम वाला ।
ऐसा चाँद न दूज निराला ।।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।
भागा तम समेट के माया ।।स्थापना।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
मन कोई जल कंचन लाया ।
खाली हाथ न कोई आया ।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।जलं।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
पट कोई चन्दन घट लाया ।
खाली हाथ न कोई आया ।।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।चन्दनं।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
कुल कोई कण तण्डुल लाया ।
खाली हाथ न कोई आया ।।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।अक्षतं।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
सुकून कोई प्रसून लाया ।
खाली हाथ न कोई आया ।।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।पुष्पं।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
अञ्जन कोई व्यञ्जन लाया ।
खाली हाथ न कोई आया ।।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।नेवैद्यं।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
मोती कोई ज्योती लाया
खाली हाथ न कोई आया ।।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।दीप॑।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
सुगंध कोई सुवर्ण लाया ।
खाली हाथ न कोई आया ।।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।धूपं।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
दृग् जल कोई ऋत फल लाया ।
खाली हाथ न कोई आया ।।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।फल॑।।

ग्राम सदलगा के जन सारे ।
घर माई श्री-मन्त्र पधारे ।।
जी कोई द्रव सबरी लाया ।
खाली हाथ न कोई आया ।।
ग्राम सदलगा चाँद दिखाया ।
आँगन आँगन उत्सव छाया ।।अर्घं।।

दोहा

श्री गुरु के गुणगान से,
मिलती शान्ति अमोल ।
सद्-गुरु के गुणगान में,
आ खर्चें दो बोल ।।

जयमाला

पाने झलक तिहारी क्यों,
तरसे जग सारा ।
दूज-चाँद जग किसकी न,
अंखिंयों का तारा ।।

कौन जौहरी कोहनूर,
जो ना अभिलाषे ।
नयन चन्दना वीर दर्श के,
कब ना प्यासे ।

कहाँ कुमुदिनी चाँद-चाँदनी
बिन रहती है ।
रवि बिन कवि प्रज्ञा कब कमल,
कथा कहती है।।

लगा टकटकी राह-राम,
निरखी शबरी ने ।
घोर घटा छाई जब आह भरी,
धरती ने ।।

स्वाति बिन्दु किस चातक को न,
प्राणन-प्यारी ।
श्याम सनेही मीरा कब बिष,
प्यालिन-हारी ।।

कब किसने गिन पाये, सागर जल कण सारे 
कहे कहाँ तक बालक हम,
तुम गुण नभ तारे।।

बस शिशु पे अपने थोड़ी-सी,
करुणा कर दो ।
अपने दोनों हाथ मिरे सिर,
ऊपर धर दो ।।

बढ़ते शिव जब लगे लड़खड़ाने,
ये चरणा ।
सिंह हो आगे बढो,
शक्ति हृदयन यूँ भरना ।।

गर तब भी न संभलूँ तो,
हे भाग्य विधाता ।
अपर भक्त वत्सल!
दयाल शिव-मार्ग प्रदाता।।

ठुकराना मत अङ्गली थाम लेना,
हाथों में ।
शिव तक कर देना कृपया,
बातों बातों में ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

दोहा

सिर्फ यही इक प्रार्थना,
गुरुवर आठों याम ।
जिह्वा पे आता रहे,
यूँ ही तेरा नाम ।।।

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