- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 772
लिया रख अपनों में,
गुरु जी आपने जब से,
रखा पग सपनों में,
मिला मनचाहा तब से,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय
गुरु जी आपने जब से,
रखा पग सपनों में,
लिया रख अपनों में,
मिला मनचाहा तब से,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।स्थापना।।
हृदय गद-गद साथ में,
जल गंग-नद हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।जलं।।
साज धड़कन साथ में,
मलय चन्दन हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।चन्दनं।।
घनी श्रद्धा साथ में,
अखण्डित धाँ हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।अक्षतं।।
रोम पुलकन साथ में,
गुल नंद-वन हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।पुष्पं।।
सहर्षित क्षण साथ में,
सरस व्यंजन हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।नैवेद्यं।।
लगन अनबुझ साथ में,
दीपक अबुझ हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।दीपं।।
मासूम मन साथ में,
अन धूप-कण हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।धूपं।।
भाव प्रांजल साथ में,
थाल श्री फल हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।फलं।।
श्रद्धा सुमन साथ में,
द्रव्य सब धन हाथ में,
सजल दृग्-द्वय,
भेंट सविनय,
जयतु जय-जय, जयतु जय-जय ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गुरु पढ़ लें अन्-लिखा भी,
न करें अन्देखा कभी
जयमाला
यारी हो, या हो बैर
जिगरी हो, या हो गैर
आप सबकी,
‘जि गुरु जी ! हैं चाहते खैर
दो सिखा, मुझे भी ये कला
अय ! सभी का, चाहने वाले भला
दूजे रब-ही
‘जि गुरु जी
दो सिखा, मुझे भी ये हुनर
अय ! सभी की करने वाले फिकर
दूजे रब-ही
‘जि गुरु जी
दो सिखा मुझे भी ये जुबां
अय ! सभी को देने वाले दुआ
दूजे रब-ही
‘जि गुरु जी
यारी हो, या हो बैर
जिगरी हो, या हो गैर
आप सबकी,
‘जि गुरु जी ! हैं चाहते खैर
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
कुछ न कुछ कर-कर,
दें जिता ही गुरुवर
Sharing is caring!