परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 78
छुआ जिन्होंने आगम को,
गहराई से ।
जो पुनीत ! दुख जिन्हें,
स्वयं के राई से ॥
सहज जीवनी करुणा,
हस्ताक्षर जिनकी ।
गुरु विद्या नित करें वन्दना,
हम उनकी ।।स्थापना।।
आगम सहज पुनीत तदपि,
तिस विष घोलें ।
नन्द सरोवर स्वयं बहिर,
दिश्-दिश् डोलें ॥
कला प्रदर्शन मिस की अब तक,
मनमानी ।
दीजे वर तुम भाँति बने,
सम रस सानी ।।जल॑।।
गरभ शपथ लीनी थी,
सहज बनेंगे हम ।
बन पुनीत आगम से,
कर्म हनेंगे हम ॥
आये यहाँ जाल माया ने,
फैलाया ।
कीजे कृपा धुने सिर हाथ मले,
माया ।।चन्दनं।।
गजस्-नान करते हा ! हम,
पुनीत बनने ।
सहजानन्द विभव छीना,
प्रमादि-पन ने ॥
आगमाव-गाहन भी हमें,
सुहाता कब ।
कृपया दीजे शिव पथ मन,
पछताता अब ।।अक्षतं।।
भरे वासना से दृग् क्या,
छूँवें आगम ।
मदन दबोचे कैसे उसे,
पछाड़ें हम ॥
यदपि सहज शिव,
वैशाखी कब विसरावें ।
कीजे करुणा बन पुनीत,
मंजिल पावें ।।पुष्पं।।
तृष्णा पड़े सहज पुनीत पन,
पे भारी ।
परिणति सबल तदपि जड़,
पुद्-गल से हारी ॥
आस्रव भाव सनेह कहाँ,
छोड़ा जाये ।
दया कीजिये आगम-
मित्रों में आये ।।नैवेद्यं।।
यदपि पुनीत ! मोह ने,
सहज पना छीना ।
मति हित अहित रहित कर,
मतवाला कीना ॥
क्यों कर शिर राधा अब हमपे,
रीझेगी ।
क्यों मेरी परिणति आगम से,
भींगेगी ।।दीप॑।।
आगम सहज तदपि ना,
भीतर उतरे है ।
काँच भाँत प्रण पुनीत पन का,
बिखरे है ॥
हुई पीन यूँ पाप गठरी क्या,
बतलायें ।
कृपा कीजिये आप आप मुख,
लख पायें ।।धूप॑।।
लाये क्या, क्या जाना सँग,
पर करते छल ।
आगम भी मन माफिक हमने,
दिया बदल ॥
विसरा सहज स्वभाव रुदन,
करते निर्जन ।
मुनि मन सा होवे पुनीत,
वर दीजे मन ।।फल॑।।
आगम की शिक्षाएँ विसरा,
दीं हमने ।
सहज ! सुखी ! ललकारा तदपि,
हमें गम-ने ॥
पर घर तकने से पुनीत पन,
है खोया ।
जगा दीजिये चेतन अरसे,
से सोया ।।अर्घं।।
“दोहा”
सहज पुनीतागम ‘विने’,
जिनके गुरु की सीख ।
शिष्य ज्ञान गुरु वे हमें,
रख लें निज नजदीक ॥
“जयमाला”
कलि काल शरण ।
गुरुदेव चरण ।।
मन सम दर्पण ।
प्रद सम-दर्शन ।।
तम, आश किरण ।
गुरुदेव चरण ।।
कलि काल शरण ।
गुरुदेव चरण ।।
नम-तर लोचन ।
संकट मोचन ।।
वैतरण तरण ।
गुरुदेव चरण ।।
कलि काल शरण ।
गुरुदेव चरण ।।
बंधन निरसन ।
नन्दन बरषण ।।
वन-क्रन्द हरण ।
गुरु देव चरण ।।
कलि काल शरण ।
गुरुदेव चरण ।।
संप्रद सुमरण ।
चल समव-शरण ।।
इक ‘सहज’ करण ।
गुरु देव चरण ।।
कलि काल शरण ।
गुरुदेव चरण ।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
किये समर्पित आपको,
हमने आठों याम ।
हो प्रमाण तुम, दूर या,
है करीब, शिव-धाम ॥
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