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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 766

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 766

तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा
था आया अकेला
वो ही हाथ खाली
मनाऊँ जो दीवाली
है एहसान तेरा
है ही क्या मेरा ।।स्थापना।।

घट जल न मिल सका,
दृग्-जल लाकर रखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।जलं।।

चन्दन न मिल सका,
मुनि-मन लाकर रखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।चन्दनं।।

अक्षत न मिल सका,
सत्कृत लाकर रखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।अक्षतं।।

फुल्वा न मिल सका,
दिल और जान कुर्बां
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।पुष्पं।।

घृत चरु न मिल सका,
व्रत-तरु लाकर रखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।नैवेद्यं।।

दीवा ना मिल सका,
दीवाना पन सखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।दीपं।।

सौरभ न मिल सका,
सुर’भी’ लाकर रखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।धूपं।।

श्री फल न मिल सका,
पुण्य कल लाकर रखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।फलं।।

वस विध न मिल सका,
निज-निध लाकर रखा,
गुजरते रहें, यूँ ही सुबहो शाम,
अय ! मेरे राम
‘के तेरी बन्दगी में
तेरी ही, दी ये रोशनी जिन्दगी में
तेरी ही, दी है हर खुशी जिन्दगी में
है ही क्या मेरा ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
देखते गुरु दृग् भीतर,
क्योंकि,
दृग् रहतीं तर

जयमाला

पीले-अक्षत रखता हूँ
आपके चरणों में,
आने आपके अपनों में
अपना मस्तक रखता हूँ
आपके चरणों में पीले अक्षत रखता हूँ
अय ! मेरे गुरुवर, लो स्वीकार कर

गुजरने को इक उमर,
हुआ न आपका आहार मेरे घर पर
अय ! मेरे गुरुवर, गुजरने को इक उमर,

मलय चन्दन रखता हूँ
आपके चरणों में,
आने आपके अपनों में,
हृदय धड़कन रखता हूँ
आपके चरणों में, पीले-अक्षत रखता हूँ
अय ! मेरे गुरुवर, लो स्वीकार कर

ला चाँद तारे रखता हूँ
आपके चरणों में,
आने आपके अपनों में,
अरमाँ सारे रखता हूँ
आपके चरणों में,
मलय चन्दन रखता हूँ
पीले-अक्षत रखता हूँ
अपना मस्तक रखता हूँ
अय ! मेरे गुरुवर, लो स्वीकार कर

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
गुरु झोपड़ी लें छू जिसकी,
छड़ी जादू उसकी

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