- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 756
=हाईकू=
सिर्फ आपके लिये है हुआ आना,
दो मुस्कुरा ‘ना’ ।।स्थापना।।
पाने राख, न चन्दन जलाऊँ,
‘कि जल चढ़ाऊँ ।।जलं।।
कंचे पे कंचे न बिठाऊँ,
‘कि घट-गंध चढ़ाऊँ ।।चन्दनं।।
चने के झाड़ पे चढ़ना भुलाऊँ,
‘कि धाँ चढ़ाऊँ ।।अक्षतं।।
बारिस में न अश्क बहाऊँ,
‘कि द्यु-पुष्प चढ़ाऊँ ।।पुष्पं।।
ईंधन डाल, न अग्नि बुझाऊँ,
‘कि चरु चढ़ाऊँ ।।नैवेद्यं।।
लाठी उठा न अंधेरा भगाऊँ,
‘कि दीप चढ़ाऊँ ।।दीपं।।
पाने कस्तूरी मृग सा न धाऊँ
‘कि धूप चढ़ाऊँ ।।धूपं।।
फेंक मोति न कागा उड़ाऊँ,
‘कि श्री फल चढ़ाऊँ ।।फलं।।
भर चुटकी न पारा उठाऊँ,
‘कि अर्घ चढ़ाऊँ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
न सिर्फ ‘पोथी का,
होता ज्ञान ‘गुरु जी’ को
चोटी का
।। जयमाला।।
देख तुम्हें चाँद भी शरमाता है
अंधेरे में तभी लुप-छुप के आता है
आधा अधूरा
महीने कभी पूरा
वो भी सामने आईने के
न पल पलक रुक के आता है
हाय रब्बा !
चेहरे पे तभी ये गहरा दाग धब्बा,
रख के लाता है
अंधेरे में तभी लुप-छुप के आता है
तू अमृत लुटाता है
न सिर्फ पूनम के दिन
बल्कि छिन छिन
तू ज्ञानामृत लुटाता है
देख तुम्हें चाँद भी शरमाता है
तू कुमुद खिलाता है
न सिर्फ सरवर के बस
बल्कि दिश्-दश
तू मन कुमुद खिलाता है
तू अमृत लुटाता है
देख तुम्हें चाँद भी शरमाता है
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
सबकी सोच,
थमे,
तो जन्मे,
मेरे रब की सोच
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