- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 731
=हाईकू=
नन्त-दर्शन,
करने चल मन,
सन्त-दर्शन ।।स्थापना।।
हूँ पामर,
दो पावन कर,
जल अपना कर ।।जलं।।
मैं हूँ बाँस,
दो वंशी कर,
चन्दन अपना कर ।।चन्दनं।।
हूँ पतझड़,
दो सावन कर,
धाँ अपना कर ।।अक्षतं।।
मैं हूँ माटी,
दो मटकी कर,
पुष्प अपना कर ।।पुष्पं।।
मैं हूँ कपास,
दो डोर कर,
नैवेद्य अपना कर ।।नैवेद्यं।।
मैं हूँ काँच,
दो आईना कर,
दीप अपना कर ।।दीपं।।
मै मोर पंख,
दो पीछी कर,
धूप अपना कर ।।धूपं।।
मैं हूँ बीज,
दो वृक्ष कर,
श्री फल अपना कर ।।फलं।।
हूँ दुखिया,
दो सुखिया कर,
अर्घ अपना कर ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
तुम्हें सामने पाता ,
‘कि डर,
डर के छू हो जाता
।।जयमाला ।।
सबके मन की कर दी
सुनते,
सबके मन की कर दी
‘जि गुरु जी,
मैनें भी आवाज दी
सबके मन की कर दी
किसी को क्षमा सागर कर दिया
किसी को आसमां नजर कर दिया
मेरी भी तो सुन लो अरजी,
‘जि गुरु जी,
मैनें भी आवाज दी
सबके मन की कर दी
सुनते,
सबके मन की कर दी
‘जि गुरु जी,
मैनें भी आवाज दी
सबके मन की कर दी
किसी को दया सागर कर दिया
किसी के हाथ में ‘दीया’ धर दिया
मेरी भी तो सुन लो अरजी,
‘जि गुरु जी,
मैनें भी आवाज दी
सबके मन की कर दी
सुनते,
सबके मन की कर दी
‘जि गुरु जी,
मैनें भी आवाज दी
सबके मन की कर दी
किसी को सुधा सागर कर दिया
किसी को दिखा ख़ुदा का घर दिया
मेरी भी तो सुन लो अरजी,
‘जि गुरु जी,
मैनें भी आवाज दी
सबके मन की कर दी
सुनते,
सबके मन की कर दी
‘जि गुरु जी,
मैनें भी आवाज दी
सबके मन की कर दी
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
श्री गुरु,
बिना जादू-टोना,
बदलें खुशी में, रोना
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