- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 652
हाईकू
प्राणी,
बुझानी प्यास क्या ?
मीठा पानी गुरु-पास
आ… ।।स्थापना।।
मति हंसा-सी पाने आये,
जल के कलशा लाये ।।जलं।।
मति चन्दन सी पाने आये,
घट-चन्दन लाये ।।चन्दनं।।
मति दरख्त सी पाने आये,
थाल-अक्षत लाये ।।अक्षतं।।
मति कच्छप सी पाने आये,
थाल पहुप लाये ।।पुष्पं।।
मति बेंत सी पाने आये,
गो घृत नैवेद्य लाये ।।नैवेद्यं।।
मति नदिया सी पाने आये,
घृत का दिया लाये ।।दीपं।।
मति चन्दर सी पाने आये,
अन्दर सुगंध लाये ।।धूपं।।
मति कोकिल सी पाने आये,
थाल श्री फल लाये ।।फलं।।
मति अर्क सी पाने आये,
परात ये अर्घ लाये ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
मिलने प्रभु से,
पड़ता मिलना ही श्री गुरु से
जयमाला
सन्त सिवा, क्या शिव सुन्दर सत् ।
है सन्तों का मन बालक वत् ।।
हँसते, हँसी न कभी उड़ाते ।
कभी न मुंह लग के बतियाते ।।
गम खाते, गुस्सा पी जाते ।
चुगल चपाती कभी न खाते ।।
रहते अपनी दुनिया में रत ।
है सन्तों का मन बालक वत् ।।१।।
फिकर न कल की, आज सहेजें ।
दूर बैठ अपनापन भेजें ।।
जले, कुड़े न किसी पर खींचें ।
देख दीन दुखिया दृग् भींजे ।।
चल तीरथ, इक करुणा मूरत ।
रहते अपनी दुनिया में रत ।
है सन्तों का मन बालक वत् ।।२।।
भूल न अपनी सिर उस मड़ दी ।
रूठ मान जाते हैं जल्दी ।।
बना काम पर परणत चल दी ।
डाला पंक, रंग इक हल्दी ।।
पैसा सिर चढ़ सका न स्वारथ ।
रहते अपनी दुनिया में रत ।
है सन्तों का मन बालक वत् ।।३।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
सपने में ही सही लो अपना,
न और सपना
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 26
कंचन सा चमके है जिनका,
तन सारा ।
चन्दन सा महके जिनका,
जीवन प्यारा ॥
मुस्काहट जिनकी अतिशय,
मनहारी है ।
विद्या-सिन्धु चरण तिन,
ढ़ोक हमारी है ॥
॥ स्थापना ॥
मिला ना गुरुवर तुम सा,
आईना जग में ।
निरख जिन्हें मुनि थित हो पथिक,
मुकति मग में ॥
ओ मेरी श्वासों में बसने,
वाले ओ ।
भव-भव भटक रहा मेरे,
रखवाले हो ॥जलं॥
मैं ना मानूँ कल्प-वृक्ष,
तुमसे अच्छा ।
नाम सुमरते ही तब होय,
पूर्ण इच्छा ॥
करुणा-धन धनवान् अहो,
अन्तर्-यामी ।
सदा हूजिये मेरे नयनन-
पथ गामी ॥चंदन॥
शशि भी बगलें झाँका करे,
तिरे आगे ।
निरख तुम्हें मिथ्यातम उलटे,
पग भागे ॥
अपर भक्त-वत्सल भव-जल-
तारणहारे
प्रति भाषित हों जड़-चेतन,
न्यारे-न्यारे ॥अक्षतम्॥
बागवानि में कहाँ आपका,
सानी है ।
शिष्य आपके आप भाँति,
विज्ञानी हैं ॥
मिरे जीवने के ओ !
आलम्बन साँचे ।
निज सा कर लीजे कर जोड़,
भक्त याँचे ॥पुष्पं॥
जगत् आप सा निस्पृह-वैद्य,
कहाँ स्वामी ।
जन्म-जरा-मृत हरे करे जो,
शिव-गामी ॥
शिव-मारग शिष्यन संस्थित,
करने वाले ।
हर लीजे पूरब कृत कर्म,
मिरे काले ॥नैवेद्यं॥
कुम्भकार ना इस जगती,
तेरे घाँई ।
भविकन पात्र बना जो,
दे शिव-ठकुराई ॥
अहो ! अपर संकट हारी,
भगवन् मेरे ।
करुणा कर विघटा दीजे,
बन्धन मेरे ॥दीपं॥
मिलना ना आसाँ तुम सा,
खेवनहारा ।
पार कराये जो भव जल,
अपरम्पारा ॥
ओ ! मुनियों के नाथ,
भावि शिव अधिशासी ।
प्रकटा दीजे मुझमें अरहत,
गुण राशी ॥धूपं॥
कहाँ आपके भांति दीप,
त्रिभुवन माहीं ।
सूरदास भी ले जिसको,
भटके नाहीं ॥
ओ ! सुरभित गुल ज्ञान-सिन्धु-
गुरु-उपवन के।
कुटिल भाव विनशा दीजे,
मेरे मन के ॥फलं॥
कहाँ मत्स्य मुक्ता तुम सा,
त्रिभुवन कोई ।
शीघ्र तरे भव जल कर तुम,
जिसके होई ॥
सत्य अहिंसा के कलि एक,
पुजारी ओ ।
आज तिहारी,परिणति काल,
हमारी हो ॥अर्घं॥
==दोहा==
नैनों में जिन के रहे,
सिन्धु ज्ञान तस्वीर।
कृपया विद्या सिन्धु वे,
मेंटे भव-भव पीर ॥
॥ जयमाला ॥
ग्राम सदलगा थे जन्में जो,
शरद पूर्णिमा दिन ।
भव जल तट कब आने वाला,
तिन गुरु विद्या बिन ॥
पिता मल्लप्पा जिनके,
जिनकी माँ श्रीमति माता ।
महावीर जी नन्त शान्ति जी,
जिनके त्रय भ्राता ॥
जिनकी ब्रह्म रमण शीला,
शान्ता स्वर्णा बहिनन ।
भव जल तट कब आने वाला,
तिन गुरु विद्या बिन ॥
विद्यालय जिन सा ना बालक,
था प्रतिभाशली ।
पढ़ते जो जिनधर्म समय जब,
मिलता था खाली ॥
जिनकी समकित भू सो झट,
वैराग्य हुआ प्रकटन ।
भव जल तट कब आने वाला,
तिन गुरु विद्या बिन ॥
श्रमण देश भूषण से व्रत,
ब्रह्मचर्य लिया जिनने ।
विद्या अध्ययन ज्ञान गुरु के,
पास किया जिनने ॥
जिन दीक्षा लीनी अजमेर,
नगर गुरु “कर” कमलन ।
भव जल तट कब आने वाला,
तिन गुरु विद्या बिन ॥
जिन्हें ज्ञान गुरु ने अपना,
आचारज पद दीना ।
संघ ज्ञान गुरु आज्ञा से,
जिनने गुरुकुल कीना ॥
जिन सा निस्पृह निर्यापक,
मिलना मुश्किल त्रिभुवन ।
भव जल तट कब आने वाला,
तिन गुरु विद्या बिन ॥
मूकमाटी नामा कृति जिनकी,
है अद्भुत भाई ।
जिनके द्वारा थापित क्षेत्र,
अहा है सुखदाई ॥
कहूँ कहाँ तक किसे गम्य,
जिनका महिमा कीर्तन ।
भव जल तट कब आने वाला,
तिन गुरु विद्या बिन ॥
॥जयमाला पूर्णार्घं॥
“दोहा”
करूँ प्रार्थना आप से,
हाथ जोड़ कर नाथ ।
बालक भव भयभीत हूँ,
रख लो अपने साथ ॥
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