- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 624
=हाईकू=
शबरी सब पाई,
आया-द्वारे मैं भी ऋषिराई ।।स्थापना।।
पतझर मैं,
सावन होने आया,
उदक लाया ।।जलं।।
कंश मैं,
भाव-रावन खोने आया,
चन्दन लाया ।।चन्दनं।।
हा ! पामर मैं,
पावन होने आया,
तण्डुल लाया ।।अक्षतं।।
स्याह अपना,
दामन धाने आया,
पहुप लाया ।।पुष्पं।।
लगा ताँते सा जामन,
खोने आया,
व्यञ्जन लाया ।।नैवेद्यं।।
मैं पाहन,
‘जी’ माखन होने आया,
दीपक लाया ।।दीपं।।
बक मैं,
वृष-माहन बोने आया,
सुगन्ध लाया ।।धूपं।।
रंक मैं,
शिव-राजन होने आया,
श्री फल लाया ।।फलं।।
आप दया का भाजन होने आया,
अरघ लाया ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
पा, आप पाँव-धूलिका,
जा सुदूर, तनाव दिखा
जयमाला
इक अरज,
सिर्फ इक अरज
मिल जाये मुझे, ‘जि गुरु जी आपके
समाँ मलयज
चरणों की रज
इक अरज,
सिर्फ इक अरज
हूॅं नादाँ, खूब डरता हूँ
गल्तियाँ भी खूब करता हूँ
सिर बढ़ता ही जा रहा करज
होना रु आप सा सहज,
इक अरज,
सिर्फ इक अरज
मिल जाये मुझे, ‘जि गुरु जी आपके
समाँ मलयज
चरणों की रज
इक अरज,
सिर्फ इक अरज
जर्रा भी न पानी रखता हूँ
खूब मनमानी करता हूँ
सिर चढ़ के है बोल रहा कज
होना रु आप सा सहज
इक अरज,
सिर्फ इक अरज
मिल जाये मुझे, ‘जि गुरु जी आपके
समाँ मलयज
चरणों की रज
इक अरज,
सिर्फ इक अरज
नाव रेता में खेता हूँ
ताव क्रेता विक्रेता हूँ
सिर करूँ रज यूँ भाँति गज
होना रु आप सा सहज
इक अरज,
सिर्फ इक अरज
मिल जाये मुझे, ‘जि गुरु जी आपके
समाँ मलयज
चरणों की रज
इक अरज,
सिर्फ इक अरज
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
यही प्रार्थना,
‘बढ़े उत्तरोत्तर’ यूँ ही साधना
Sharing is caring!