- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 612
=हाईकू=
कीजे श्री गुरु जी आ रोशनी,
रात अँधेरी घनी ।।स्थापना।।
होने आप-सा सुख-आकर,
भेंटूँ जल गागर ।।जलं।।
होने आप-सा सुख-सदन,
भेंटूँ घट चन्दन ।।चन्दनं।।
होने आप-सा सुख-निकेत,
भेंटूँ धाँ, ध्याँ समेत ।।अक्षतं।।
होने आप-सा सुख-धाम,
भेंटूँ द्यु-पुष्प तमाम ।।पुष्पं।।
होने आप-सा सुख-थान,
भेंटूँ घी के पकवान ।।नैवेद्यं।।
होने आप-सा सुख-संस्रोत,
भेंटूँ दीपक ज्योत ।।दीपं।।
होने आप-सा सुख-मन्दर,
भेंटूँ धूप-इतर ।।धूपं।।
होने आप-सा सुख-गेह,
भेंटूँ श्री फल सनेह ।।फलं।।
होने आप-सा सुख-निलय,
भेंटूँ अरघ यह ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
चाहे सबका भला,
गुरु के सिवा,
कहाँ वो कला
जयमाला
जा पाँखी जा,
ले ‘पाती’ जा,
गुरु जी से कहना
रहते भींगे नयना
हाँ ! लो बुला वहीं,
आ जाओ या यहीं,
जा पाँखी जा
ले ‘पाती’ जा,
गुरु जी से कहना
जागूँ सारी रैना
हाँ ! लो बुला वहीं,
आ जाओ या यहीं,
जा पाँखी जा
ले ‘पाती’ जा,
गुरु जी से कहना
रहते भींगे नयना
गुरु जी से कहना
ढ़ीले पड़ चले गहना
हाँ ! लो बुला वहीं,
आ जाओ या यहीं,
जा पाँखी जा
ले ‘पाती’ जा,
गुरु जी से कहना
रहते भींगे नयना
गुरुजी से कहना
न हो विरह सहना
हाँ ! लो बुला वहीं,
आ जाओ या यहीं,
जा पाँखी जा
ले ‘पाती’ जा,
गुरु जी से कहना
रहते भींगे नयना
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
मचाये मन धूम,
‘जि अपने-सा कीजे मासूम
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