परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 61
तुम जो मिल गये, हमसफर मुझको ।
अब जमाने की, न फिकर मुझको ।।
कहो जमाने ने, कब साथ दिया ।
दूर अजनबी,
अपने साये ने भी,
अँधेरे में खींच हाथ लिया ।।
तुम जो मिल गये, हमसफर मुझको ।
अब जमाने की, न फिकर मुझको ।।स्थापना।।
दीजे वर खो जाये,
वंचकता मन की ।
लगनी लगे सुहानी राह,
हमें वन की ।।
हाय ! कुटिलता ने भटकाया,
भव वन में ।
बनने मुनि मन सा,
जल लाये चरणन में ।।जलं।।
आत्म शोध करने दीजे प्रभु !
बोध हमें ।
लगने लगे खार दुखदायक,
क्रोध हमें ॥
इसी क्रोध ने छीना चैन,
अमन मेरा ।
लाया रस मलयज, मेंटो-
भव-भव फेरा ।।चन्दनं।।
वर दीजे हो कष्ट भले पर,
भान न हो ।
आत्मभाव से आस्रव भाव,
प्रधान न हो ॥
समता प्रीय सहेली बन,
हो पास मिरे ।
अक्षत लिये जजूँ ओ !
दृढ़ विश्वास मिरे ।।अक्षतं।।
करुणा कीजे हम पन-दश,
प्रमाद खोवें ।
हसरत मनसिज कीं,
ना-कामयाब होवें ॥
खोया शीलेश्वर पद मिल,
जाये स्वामी ।
पुष्प चढ़ाते हो जावे,
सुदूर खामी ।।पुष्पं।।
माँ प्रवचन वा-उम्र कभी भी,
रूठें ना ।
गृहीत तप-व्रत सपने में भी,
छूठें ना ॥
क्यों ये परेशान करती है,
क्षुधा मुझे ।
तुम्हें भेंटता चरु तृष्णा-नल,
शीघ्र बुझे ।।नैवेद्यं।।
दस धर्मों से अन्तरंग ना,
हो रीता ।
दीन बन्धु ! करुणा से हृदय,
रहे तीता ॥
उजियारा हो मिथ्या तिमिर,
विलाने से ।
कर्म न आ पावें अब किसी,
बहाने से ।।दीप॑।।
दिन में रहूँ जागता निशि में,
सोऊँ ना ।
जड़-सनेह मदिरा सेवन कर,
खोऊँ ना ॥
कर्मों की माया हो शीघ्र,
धरा-साई ।
धूप चढ़ाता आये कर शिव-
ठकुराई ।।धूपं।।
पर के दोष न कभी दिखाई,
दें मुझको ।
गुणि गुण कीर्तन में वाचाल,
करें मुझको ॥
बहुत हुआ अब अश्रु गिराऊँ,
ना माँ के ।
फल तव चरण चढ़ाता,
ढ़ोल बजा गा के ।।फलं।।
वास वासनाओं का ना,
होवे मुझमें ।
बनी रहे यूँ ही प्रगाढ़,
श्रद्धा तुझमें ॥
शिव तक साथ निभाने का,
वादा कर दो ।
अरघ भेंटता पद अनर्घ,
‘कर’ में धर दो ।।अर्घं।।
“दोहा”
नसिया जी अजमेर की,
जिनका दीक्षा धाम ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें,
बारम्बार प्रणाम ॥
“जयमाला”
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
साथ श्रद्धा सुमन,
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
लिये भींजे नयन,
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
सद्-गुरु रोशनी ।
गुम कहीं अँधेरा मन ।
तेरा मेरा-पन, गुम कहीं,
गुम कहीं, अँधेरा मन ।।
गुरु ‘जग-दो’ धनी ।
सद्-गुरु रोशनी ।।
ले रोम रोम पुलकन ।
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
साथ श्रद्धा सुमन,
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
लिये भींजे नयन,
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
सद्-गुरु कामगो ।
चाहिये जो मिले तत्क्षण ।
खुशी अश्रु बरसण ।
अनवरत अनु-क्षण ।।
ले ओम ओम धड़कन ।
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
ले रोम रोम पुलकन ।
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
साथ श्रद्धा सुमन,
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
लिये भींजे नयन,
सद्-गुरु नमन, सद्-गुरु नमन ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
विनती इक, करके तुम्हें,
नमस्कार साष्टाँग ।
दीजे सुख इतना पुनः,
करना पड़े ना माँग ॥
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