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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 539

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 539

=हाईकू=
मैं पतंग,
श्री गुरु हो तुम डोर,
न देना छोड़ ।।स्थापना।।

लगे विषय वासना ‘कि किनार,
भेंटूँ दृग्-धार ।।जलं।।

विषय वास…ना ‘कि समझ पाऊँ,
गंध चढ़ाऊँ ।।चन्दनं।।

अत्त विषय वासना ढायें,
त्राहि माम् धाँ चढ़ायें ।।अक्षतं।।

कहीं विषय वासना ‘कि हो गुम,
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।

‘कि ले विषय-वासना बिदाई,
घी चरु चढ़ाई ।।नैवेद्यं।।

भेंटूँ दीवाली,
विषय वासना से ‘कि होने खाली ।।दीपं।।

भेंटूँ अगर,
‘कि विषय-वासना हो छू मन्तर ।।धूपं।।

भेंटूँ फल,
‘कि विषय-वासना न करे विह्वल ।।फलं।।

भेंटूँ अरघ,
ले विषय वासना ‘कि आप मग ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
जाते समाते ,
उदर गुरु ‘महा-राज’ बताते

।।जयमाला।।

आज से तुमसे न बोलूँगा
भले अकेले में रो लूँगा
है ही नहीं तुम्हें मेरी फिकर
अच्छा कहो तो
कब से न आये हो तुम मेरे घर

होगा तुम्हें तो याद ही नहीं
अच्छा मैं ही देता हूँ दिला याद ‘कि अजी
होने को एक अरसा है
आलम था तब गर्मी का
और हो रही आज वरषा है

भले अकेले में रो लूँगा
आज से तुमसे न बोलूँगा
भले अकेले में रो लूँगा
है ही नहीं तुम्हें मेरी फिकर
अच्छा कहो तो
कब से न आये हो तुम मेरे घर

होने को एक बरस-सा है
आलम था तब ठण्डी का
और हो रही आखरी वर्षा है
होने को एक बरस सा है

भले अकेले में रो लूँगा
आज से तुमसे न बोलूँगा
भले अकेले में रो लूँगा
है ही नहीं तुम्हें मेरी फिकर
अच्छा कहो तो
कब से न आये हो तुम मेरे घर
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
कृपा कर दो ऐसी,
की चन्दना पे, वीर ने जैसी

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