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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 523

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 523

=हाईकू=
जी-जी ने गुरु दर्श कीने,
कीने भौ-पार सफीने ।।स्थापना।।

स्वीकार लीजे जल कंचन,
छीजे जन्म मरण ।।जलं।।

स्वीकार लीजे घट चन्दन,
छीजे झट बन्धन ।।चन्दनं।।

स्वीकार लीजे अक्षत-कण,
छीजे असत् वचन ।।अक्षतं।।

स्वीकार लीजे स्वर्ग सुमन,
छीजे स्नेह मदन ।।पुष्पं।।

स्वीकार लीजे घृत व्यंजन,
छीजे क्षुदा वेदन ।।नैवेद्यं।।

स्वीकार लीजे दीप रतन,
दीजे धी, पर-तन ।।दीपं।।

स्वीकार लीजे सुगंध अन,
कीजे आनन्द घन ।।धूपं।।

स्वीकार लीजे फल गगन,
छीजे छल-रमन ।।फलं।।

स्वीकार लीजे अर्घ शगुन,
दीजे अनर्घ धन ।।अर्घ्यं।।

= हाईकू =
कहीं और न जन्नत,
सिवाय सत्-गुरु संगत

।।जयमाला।।

गुजरा कल
न जाते भिजाने
दूर तलक
न जाते लिवाने
सुनहरा कल

जीते हो तुम वर्तमां में
दो सिखला भी हमें
जीना वर्तमाँ में
दे छाँव-आँचल

दो सिखला हमें,
फूँक-फूँक कदम रखना
हया-लाजो-शरम रखना
ताकि तुम सा
अय ! मेरे गुरुवर सा
छू लूँ आसमाँ मैं,

औरों के जख्मों पे
फूँक-फूँक मरहम रखना
दिल उतर गहरे रहम रखना
दो सिखला हमें
फूँक-फूँक कदम रखना
हया-लाजो-शरम रखना
ताकि तुम सा
अय ! मेरे गुरुवर सा
छू लूँ आसमाँ मैं,

जीते हो तुम वर्तमां में
दो सिखला भी हमें
जीना वर्तमाँ में
दे छाँव-आँचल

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
दे लगा पार ‘ऊ-नाव’
सत्-गुरु से लगा लगाव

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