- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 495
=हाईकू=
भले चन्दन मैं नहीं,
संजो-भक्ति लाया पे वही ।।स्थापना।।
ओ !
अपना लो,
सुधीर की तरह,
दृग्-नीर यह ।।जलं।।
ओ !
अपना लो,
चन्दन की तरह,
चन्दन यह ।।चन्दनं।।
ओ !
अपना लो,
भगत की तरह,
अक्षत यह ।।अक्षतं।।
ओ !
अपना लो,
शगुन की तरह,
सुमन यह ।।पुष्पं।।
ओ !
अपना लो,
रु-तरु की तरह,
घी चरु यह ।।नैवेद्यं।।
ओ !
अपना लो,
‘भी’ धिया की तरह,
घी दिया यह ।।दीपं।।
ओ !
अपना लो,
चिद्रूप की तरह,
रु-धूप यह ।।धूपं।।
ओ !
अपना लो,
कमल की तरह,
श्रीफल यह ।।फलं।।
ओ !
अपना लो,
ऽपवर्ग की तरह,
हाँ ! अर्घ यह ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
‘साधु’
कड़वा-कड़वा थू,
‘न करें’
मीठा-मीठा छू
।। जयमाला।।
।। मुनिराज चले वन को ।।
कच घुंघराली हाथ खींच के ।
प्रीत पुरानी बेलि सींच के ।।
वश में करने मन को ।
मुनिराज चले वन को ।।१।।
वस्त्र उतार, उतारी पगड़ी ।
तजी साज-सामग्री सगरी ।।
‘रे छोड़ छाड़ वन को ।
मुनिराज चले वन को ।।२।
हाथ चार दृग् रखकर धरती ।
हाथ कमण्डलु पीछी फबती ।।
शिव राधा ब्याहन को ।
मुनिराज चले वन को ।।३।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
न सुरों में ही,
बसिये आ गुरु जी शिराओं में भी
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