- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 475
हाईकू
चन्दा शर्माये,
जिन्हें देख-देख ‘तू’ उनमें आये ।।स्थापना।।
जो सजल ने था भेंटा कभी,
भेंटूँ दृग् जल वही ।।जलं।।
जो चन्दन ने था भेंटा कभी,
भेंटूँ चन्दन वही ।।चन्दनं।।
जो शबरी ने थी भेंटी कभी,
भेंटूँ धाँ निरी वही ।।अक्षतं।।
जो कुटुम ने था भेंटा कभी,
भेंटूँ कुसुम वही ।।पुष्पं।।
जो अञ्जन ने था भेंटा कभी,
भेंटूँ व्यंजन वही ।।नैवेद्यं।।
जो मेंढक ने था भेंटा कभी,
भेंटूँ दीपक वही ।।दीपं।।
जो कोण्डेश ने थी भेंटी कभी,
भेंटूँ सुगंध वही ।।धूपं।।
जो नील-नल ने भेंटा कभी,
भेंटूँ श्रीफल वही ।।फलं।।
पति-सुरग ने भेंटा कभी,
भेंटूँ अरघ वही ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
बच्चे कि वज्र से जाए वन,
खोलें माँएँ नयन
जयमाला
शरण तेरी
रही मिलती
रहे आगे भी यूँ ही मिलती
धूल चरण तेरी
जी गुरुजी
रही मिलती,
रहे आगे भी यूँही मिलती
शरण तेरी
धूल चरण तेरी
पहुँचूँ कि मंजिल पर
जब तक कि चलता रहे सफर
यानी कि उम्र भर
हाँ… हाँ… डगर-डगर
शरण तेरी
रही मिलती
रहे आगे भी यूँ ही मिलती
धूल चरण तेरी
जी गुरुजी
रही मिलती,
रहे आगे भी यूँही मिलती
शरण तेरी
धूल चरण तेरी
हाथ अपने कर ऊपर
जब तक ‘कि न छू लूँ अम्बर
पहुँचूँ कि मंजिल पर
जब तक कि चलता रहे सफर
यानी कि उम्र भर
हाँ… हाँ… डगर-डगर
शरण तेरी
रही मिलती
रहे आगे भी यूँ ही मिलती
धूल चरण तेरी
जी गुरुजी
रही मिलती,
रहे आगे भी यूँही मिलती
शरण तेरी
धूल चरण तेरी
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
दर्शन पास से नहीं,
‘न सही’
दे दो दूर से ही
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