- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 464
=हाईकू=
गुरूर, अंतस्थ ‘र’ हटा,
‘कि गुरु-पन प्रकटा ।।स्थापना।।
अबकी चीर सकने चीर,
लाये कंचन नीर ।।जलं।।
कमाने भाँत चन्दन जश,
लाये चन्दन रस ।।चन्दनं।।
पदवी शिव शाश्वत पाने,
लाये अक्षत दाने ।।अक्षतं।।
वासना, वास…ना कह पाने,
लाये पुष्प सुहाने ।।पुष्पं।।
होने सहज आप सरीखा,
लाये नैवेद्य घी का ।।नैवेद्यं।।
कर करने रत्न-करण्ड,
लाये ज्योत अखण्ड ।।दीपं।।
हो छूमन्तर, ‘के अन्तर्द्वन्द,
लाये और सुगन्ध ।।धूपं।।
कर्म बन्धन करने ढीले,
लाये श्रीफल रसीले ।।फलं।।
और रहने न अस्त-व्यस्त,
लाये द्रव्य समस्त ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
श्री ऋषि ‘केश’ छोड़,
होती न कहीं वक्रता और
जयमाला
जिन्हें गुरुकुल मिल गया
उनकी जिन्दगी में
सुकुने गुल खिल गया
निस्तरंग ज़ल जैसे
जल में कमल जैसे
रहने लगे वे
उजले आईने से
दिखने लगे वे
फूले न समाएँ खुशी में
उनकी जिन्दगी में
सुकुने गुल खिल गया
जिन्हें गुरुकुल मिल गया
हल्के वे हो गये
सपने कल थे
अपने वे हो गये
‘हल-के’ वे हो गये
निस्तरंग ज़ल जैसे
जल में कमल जैसे
रहने लगे वे
उजले आईने से
दिखने लगे वे
फूले न समाएँ खुशी में
उनकी जिन्दगी में
सुकुने गुल खिल गया
जिन्हें गुरुकुल मिल गया
निष्फिकर हो गये
जब से गुरुवर हम सफर हो गये
वे निष्फिकर हो गये
निस्तरंग ज़ल जैसे
जल में कमल जैसे
रहने लगे वे
उजले आईने से
दिखने लगे वे
फूले न समाएँ खुशी में
उनकी जिन्दगी में
सुकुने गुल खिल गया
जिन्हें गुरुकुल मिल गया
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
गुरु जी पास,
जितनी,
न उतनी गुड़-मिठास
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