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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 425

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 425

हाईकू

करते गुरु महाराज,
दिल न किसके राज ।।स्थापना।।

भेंटूँ जल ए ! शुभ शगुन,
माल-भक्ति लूँ बुन ।।जलं।।

भेंटूँ चन्दन, ए ! शुभ शगुन,
ले राह औगुन ।।चन्दनं।।

भेंटूँ अक्षत, ए ! शुभ शगुन,
दो भेंट सद्गुण ।।अक्षतं।।

भेंटूँ सुमन, ए ! शुभ शगुन,
लो बना सुमन ।।पुष्पं।।

भेंटूँ नैवेद्य, ए ! शुभ शगुन,
लो भक्तों में चुन ।।नैवेद्यं।।

भेंटूँ दीप, ए ! शुभ शगुन,
मन चुने भी धुन ।।दीपं।।

भेंटूँ धूप, ए ! शुभ शगुन,
जाऊँ न जल-भुन ।।धूपं।।

भेंटूँ फल, ए ! शुभ शगुन,
हित शिव-सदन ।।फलं।।

भेंटूँ अर्घ्य, ए ! शुभ शगुन,
आप बीती लो सुन ।।अर्घ्यं।।

हाईकू

अँगूठा किसी को,
गुरु न बताते,
अनूठा किसी को

जयमाला

बरगदी छावों पे
गुरु की दुवाओं पे
है और हक किसका
इक भक्त के सिवा
शिलालेखों में खुदा
पन्ना–पन्ना रहा बुद-बुदा

गुरु की मुस्कान पे
‘दिये’ आत्म ज्ञान पे
है और हक किसका
इक भक्त के सिवा
शिलालेखों में खुदा
पन्ना–पन्ना रहा बुद-बुदा

डाँट फटकार पे
गुरु के लाड़ प्यार पे
है और हक किसका
इक भक्त के सिवा
शिलालेखों में खुदा
पन्ना–पन्ना रहा बुद-बुदा

किरदार अमूल पे
गुरु की पाँव धूल पे
है और हक किसका
इक भक्त के सिवा
शिलालेखों में खुदा
पन्ना–पन्ना रहा बुद-बुदा

बरगदी छावों पे
गुरु की दुवाओं पे
है और हक किसका
इक भक्त के सिवा
शिलालेखों में खुदा
पन्ना–पन्ना रहा बुद-बुदा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू

‘चुकाऊँ कैसे’
एहसान तेरे,
ए ! भगवान् मेर

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