परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 423=हाईकू=
आप रखने जो लगे ख्याल,
हुये हम निहाल ।।स्थापना।।भेंटूँ जल, ओ वर्तमाँ-महावीर,
लो लगा तीर ।।जलं।।भेंटूँ गन्ध, ओ वर्तमाँ-महावीर,
दो मेंट पीर ।।चन्दनं।।भेंटूँ सुधॉं, ओ वर्तमाँ-महावीर,
दो थमा धीर ।।अक्षतं।।भेंटूँ पुष्प, ओ वर्तमाँ-महावीर,
राखूँ जमीर ।।पुष्पं।।भेंटूँ चरु, ओ वर्तमाँ-महावीर,
खींचूँ लकीर ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ दीप, ओ वर्तमाँ-महावी,
हा ‘ही’-समीर ।।दीपं।।भेंटूँ धूप, ओ वर्तमाँ-महावीर,
जागूँ अखीर ।।धूपं।।भेंटूँ फल, ओ वर्तमाँ-महावीर,
लूँ चीर-चीर ।।फलं।।भेंटूँ अर्घ्य, ओ वर्तमाँ-महावीर,
उड़ा अबीर ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
शुरु गिनती,
‘करते ‘कि सुनते’
गुरु विनती।। जयमाला।।
ज़रा सी मेरे मन की कर दो
कभी तो
ओ गुरु जी ओ
‘कि मेरा हो बेड़ा पार जाये
ये भव मानव न बेकार जाये
मेरी ले तनिक तो खबर लो
जरा सी मेरे मन की कर दो
कभी तो
ओ गुरु जी ओमेरे सर पे हाथ रख दो
मुझे अपने साथ रख लो
‘कि मेरा हो बेड़ा पार जाये
ये भव मानव न बेकार जाये
मेरी ले तनिक तो खबर लो
जरा सी मेरे मन की कर दो
कभी तो
ओ गुरु जी ओइक मुस्कान कर नजर दो
मेरी आसान कर डगर दो
‘कि मेरा हो बेड़ा पार जाये
ये भव मानव न बेकार जाये
मेरी ले तनिक तो खबर लो
जरा सी मेरे मन की कर दो
कभी तो
ओ गुरु जी ओमेरे घर पर आहार कर लो
मुझे अपना गल-हार कर लो
‘कि मेरा हो बेड़ा पार जाये
ये भव मानव न बेकार जाये
मेरी ले तनिक तो खबर लो
जरा सी मेरे मन की कर दो
कभी तो
ओ गुरु जी ओ
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
कलि श्यामली निशा,
सत्संग गुरु जी चाँदनी सा
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