- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 394
हाईकू
आप में दिखी,
मूरत ग्रन्थों ने थी जो छिपा रखी ।।स्थापना।।
भेंटूँ चरणों में, जल गागर,
ए ! गुण सागर ।।जलं।।
भेंटूँ चरणों में चन्दन तेरे,
ए ! भगवन् मेरे ।।चन्दनं।।
भेंटूँ चरणों में पुष्प चुन-चुन,
ए ! शुभ शगुन ।।अक्षतं।।
भेंटूँ चरणों में धाँ शाली कण,
ए ! दीवाली क्षण ।।पुष्पं।।
भेंटूँ चरणों में घृत व्यञ्जन,
ए ! भै विभञ्जन ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ चरणों में अनबुझ दिया,
ए ! हंस धिया ।।दीपं।।
भेंटूँ चरणों में धूप दश-गंध,
ए ! दर्दमन्द ।।धूपं।।
भेंटूँ चरणों में अद्भुत फल,
ए ! अर्हत् कल ।।फलं।।
भेंटूँ चरणों में अर्घ नव
ए ! ‘भा’-रत गौरव ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
होते फुर्र न जल्दी से,
‘गुरु’
चालें पगडण्डी से
जयमाला
ले आँख नम ।
हैं गई थम ।
मन की तरंग,
पा गुरु जी ! आपका संग ।
छू गई आसमाँ पतंग,
भरती-सी दम,
ले आँख नम,
पा गुरु जी आपका संग
छू गई आसमाँ पतंग
ले आँख नम ।
हैं गई थम ।
मन की तरंग,
पा गुरु जी ! आपका संग ।
पा गई धरा सतरंग
पल पहले
थी जो भले
सहती-सितम,
ले आँख नम,
पा गुरु जी आपका संग
पा गई धरा सतरंग
ले आँख नम ।
हैं गई थम ।
मन की तरंग,
पा गुरु जी ! आपका संग ।
मुस्कुराई जिन्दगी तंग
पल पहले
थी जो भले
सहमी गुमसुम,
ले आँख नम
पा गुरु जी आपका संग
मुस्कुराई जिन्दगी तंग
ले आँख नम ।
हैं गई थम ।
मन की तरंग,
पा गुरु जी ! आपका संग ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
पलक गुरु जी को निहार,
प्रश्न चित् खाने चार
Sharing is caring!