- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 389
=हाईकू=
न बिष बिन्दु जिसमें,
आते विद्या-सिन्धु उसमें ।।स्थापना।।
भेंटूँ दृग् जल सविनय,
आ वस जाओ हृदय ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन मलय,
‘कि आ वस जाओ हृदय ।।चन्दनं।।
भेंटूँ धाँ साथ विनय,
आ निवस जाओ हृदय ।।अक्षतं।।
भेंटूँ सुमन कर संचय,
होऊँ ‘कि मृत्युंजय ।।पुष्पं।।
भेंटूँ व्यञ्जन निर्मित पय,
हित गद क्षुध् क्षय ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ प्रदीप लौं-अक्षय,
आ वस जाओ हृदय ।।दीपं।।
भेंटूँ धूप दृग्-हर, उर-सदय,
होने निर्भय ।।धूपं।।
भेंटूँ श्रीफल मंगल ‘मै’
आ वस जाओ हृदय ।।फलं।।
भेंटूँ अरघ जोड़ हाथ द्वय,
आ वसो हृदय ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
रहें दिल में न किसके,
गुरु जी कुछ धस के
।। जयमाला।।
खोज में,
था निकलता रोज मैं
हो चली खत्म खोज मेरी
वह मृग-मरीची
जि गुरु जी
रज-पग सरोज तेरी
आज पाकर ।
अय ! मेरे गुरुवर
पा जाऊँ कहीं छाया,
खोज में,
था निकलता रोज मैं
था तनाव हर कहीं
मिली छाँव बस यहीं
मैं जब से हूँ आया, तेरे दर पर
अय ! मेरे गुरुवर
खोज में,
था निकलता रोज मैं
हो चली खत्म खोज मेरी
वह मृग-मरीची
जि गुरु जी
रज-पग सरोज तेरी
आज पाकर ।
अय ! मेरे गुरुवर
पा जाऊँ कहीं सुकूँ,
खोज में,
था निकलता रोज मैं
भीजे नैन हर कहीं
मिला चैन बस यहीं
मैं जब से हूँ आया, तेरे दर पर
अय ! मेरे गुरुवर
खोज में,
था निकलता रोज मैं
हो चली खत्म खोज मेरी
वह मृग-मरीची
जि गुरु जी
रज-पग सरोज तेरी
आज पाकर ।
अय ! मेरे गुरुवर
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू =
देखो न छोड़ देना हाथ मेरा,
है घना अँधेरा
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