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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 371

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 371

    भागे जाओ न अकेले,
    हमें भी ले चालो धकेले ।।स्थापना।।

    बिठाते मन तरंग,
    आया सुन ये जल संग ।।जलं।।

    छुवाते नभ पतंग,
    सुन आया चन्दन संग ।।चन्दनं।।

    समाते रस्ते दृग् अंतरंग,
    सुन आया धाँ संग ।।अक्षतं।।

    मिटाते मन तरंग,
    सुन आया सुमन संग ।।पुष्पं।।

    नह्वाते ज्ञान-गंग,
    आया सुन नैवेद्य संग ।।नैवेद्यं।।

    लाते जीवन में रंग,
    आया सुन ये दीप संग ।।दीपं।।

    जिताते कर्मों से जंग,
    आया सुन ये धूप संग ।।धूपं।।

    दिखाते शिव सुरंग,
    आया सुन श्रीफल संग ।।फलं।।

    भिंटाते देव-मृदंग,
    आया सुन ये अर्घ्य संग ।।अर्घ्यं।।

    =हाईकू=

    न रहने दें हाथ वक्त के,
    ‘गुरु’
    ख्वाब भक्त के

    जयमाला

    सुनाती थी एक नानी
    हो सुनाते या तुम कहानी
    चुरा के दिल ले जाते हो
    उतरते दिल में जाते हो

    दो जहां, एक नूरानी
    अय ! फरिश्ते आसमानी
    सुनाती थी एक नानी
    हो सुनाते या तुम कहानी
    हसीं यादें दे जाते हो
    चुरा के दिल ले जाते हो
    उतरते दिल में जाते हो

    इक जुबां, दो जहां दानी !
    दो जहां एक नूरानी
    अय ! फरिश्ते आसमानी
    सुनाती थी एक नानी
    हो सुनाते या तुम कहानी
    चले सपनों में आते हो
    चुरा के दिल ले जाते हो
    उतरते दिल में जाते हो

    सुनाती थी एक नानी
    हो सुनाते या तुम कहानी
    चुरा के दिल ले जाते हो
    उतरते दिल में जाते हो
    ।। जयमाला पूर्णार्घं।।

    =हाईकू=

    जुड़ा गुरु से रिश्ता,
    ‘कि बुरी जिदों ने नापा रास्ता

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