परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 354=हाईकू =
आये न तुम,
खड़े रहे सँजो के ‘अर-माँ’ हम ।।स्थापना।।जल चढ़ाएँ,
संजो दीवानी-मीरा सी भावनाएँ ।।जलं।।गंध भिटाएँ,
सँजो बाला-चन्दन सी भावना है ।।चन्दनं।।सुधाँ चढ़ाएँ,
सँजो नव-दीक्षार्थी सी भावनाएँ ।।अक्षतं।।पुष्प चढ़ाएँ,
सँजो भक्त-मेंढक सी भावनाएँ ।।पुष्पं।।भोग लगाएँ,
सँजो निरी-शबरी सी भावनाएँ ।।नैवेद्यं।।ज्योत जगाएँ,
सँजो ग्वाल-कोण्डेश सी भावनाएँ ।।दीपं।।धूप चढ़ाएँ
सँजो माँ-गोम्मट सी भावनाएँ ।।धूपं।।फल भिंटाएँ,
सँजो शचि-सौधर्म सी भावनाएँ ।।फलं।।अर्घ्य चढ़ाएँ,
सँजो राजा श्रेयांस सी भावनाएँ ।।अर्घ्यं ।।=हाईकू=
कहे ‘जी’ गोरा गोरा,
गुरु की आँखें,
देखा चेहरा।।जयमाला।।
जय श्री मति नन्दा जय ।
जय शारद चन्दा जय ।।
शिशु मल-लप्पा जय जय ।
कलि परमप्पा जय जय ।।१।।जय व्रति संदर्शा जय ।
जय यति आदर्शा जय ।।
भारत गौरव जय जय ।
गुरुकुल सौरभ जय जय ।।२।।जय प्रमुदित वदना जय ।
जय मर्दित मदना जय ।।
पूरण मंशा जय जय ।
इक मति हंसा जय जय ।।३।।जय कल गोपाला जय ।
जय बल गोशाला जय ।।
जय जनहित साधन जय ।
जय रहित विराधन जय ।।४।।जय तारक खेवा जय ।
जय सजग सदैवा जय ।।
चित् अविकारा जय जय ।
पत अनगारा जय जय ।।५।।।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू =
ए विधाता !
यूँ ही पाता रहे,
रज-पाँवन माथा
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