परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 351==हाईकू==
उनकी चाँदी सोना,
आंगन म्हारा अभी भी सूना ।।स्थापना।।ढोक हजार,
‘हमार’,
लो स्वीकार दृग् जल-धार ।।जलं।।नन्त जुहार,
‘हमार’
लो स्वीकार चन्दन झार ।।चन्दनं।।नुति हजार,
‘हमार’
लो स्वीकार धाँ दाने चार ।।अक्षतं।।कोटि जुहार,
‘हमार’
लो स्वीकार पुष्प पिटार ।।पुष्पं।।नुति सौ बार,
‘हमार’
लो स्वीकार चरु घी दार ।।नैवेद्यं।।शंख जुहार,
‘हमार’
लो स्वीकार दीप दृग्-हार ।।दीपं।।नुति नौ पार,
‘हमार’
लो स्वीकार सुगंध न्यार ।।धूपं।।और जुहार,
‘हमार’
लो स्वीकार फल रसाल ।।फलं।।ढ़ोक त्रिकाल,
‘हमार’
लो स्वीकार अरघ थाल ।।अर्घ्यं।।==हाईकू==
करें गुरु जी न बात वो,
सामने वाला ‘कि दे ‘रो’।। जयमाला।।
इस बार,
ले चलो उस पार
करके रहम
गुरु ए ! परम
है जहाँ सुकून बेशुमार,
ले चलो उस पार,
करके रहम
गुरु ए ! परमजहाँ गम का न साया है ।
अहा सरगम समाया है ।
कदम दर कदम !
गुरु ए ! परमदश दिश् न किस-किस झाँके
सुमन जहाँ सहजता के
समेत दृग्-नम
गुरु ए ! परमठण्डक जहाँ दिल के अन्दर
सत् है शिव जो और सुन्दर
तेरी ही कसम
गुरु ए ! परमइस बार,
ले चलो उस पार
करके रहम
गुरु ए ! परम
है जहाँ सुकून बेशुमार,
ले चलो उस पार,
करके रहम
गुरु ए ! परम
।।जयमाला पूर्णार्घं।।==हाईकू ==
मिला
‘मेवा’
न मिलेगा,
किये बिना गुरु की सेवा
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