- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 326
**हाईकू**
भान पा गया प्रकाश,
मैं भी खड़ा, पैरों के पास ।।स्थापना।।
भेंटूँ जल,
दो लगा किनारे,
माँ श्री मंति दृग् तारे ।।जलं।।
भेंटूँ गन्ध,
खो दुख दो सारे,
माँ श्री मंति दृग् तारे ।।चन्दनं।।
भेंटूँ सुधाँ,
आ, बनो सहारे,
माँ श्री मंति दृग् तारे ।।अक्षतं।।
भेंटूँ पुष्प,
आ, जाओ भी द्वारे,
माँ श्री मंति दृग् तारे ।।पुष्पं।।
भेंटूँ चरु,
हो, ‘कि क्षुधा हारे,
माँ श्री मंति दृग् तारे ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ दीप,
दो खो अंधियारे,
माँ श्री मंति दृग् तारे ।।दीपं।।
भेंटूँ धूप,
हों, ‘कि कर्म न्यारे,
माँ श्री मंति दृग् तारे ।।धूपं।।
भेंटूँ फल,
दो कह, हो म्हारे,
माँ श्री मंति दृगू तारे ।।फलं।।
भेंटूँ अर्घ,
छू हो, भाव-खारे,
माँ श्री मंति दृग् तारे ।।अर्घ्यं।।
**हाईकू**
किया तोते को नजूमी,
चालो मुझे ले सिद्ध-भूमी
जयमाला
तुम्हारे हैं,
परवाने सम
दीवाने-हम तुम्हारे हैं ।
कृति कार मूकमाटी ।
निर्बाध सौख्य थाती ॥
दृग् नम, गुरुदेव परम,
दीवाने हम तुम्हारे हैं ।
परवाने सम दीवाने हम तुम्हारे हैं ।
कृति कार श्रमण सुत्तम
मांगलिक शरण उत्तम
दृग् नम,गुरुदेव परम,
दीवाने हम तुम्हारे हैं
परवाने सम दीवाने हम तुम्हारे हैं
कृति कार बुत सजीवा
यति संस्कृति संजीवा
दृग् नम,गुरुदेव परम,
दीवाने हम तुम्हारे हैं
परवाने सम दीवाने हम तुम्हारे हैं
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
**हाईकू**
क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहूँ
दया तिहारी,
हया पिटारी !
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