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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 302

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 302

==हाईकू==
गुरु जी
ऐसे-वैसे-जैसे भी
तेरे ही हम सभी ।।स्थापना ।।

लो स्वीकार ये जल,
आ रहे बड़ी दूर से ‘चल ।।जलं।।

लो स्वीकार ये चन्दन,
‘कि रास्ते की थके थकन ।।चन्दनं।।

लो स्वीकार ये धान-शालि,
‘कि मन सके दीवाली ।।अक्षतं।।

लो स्वीकार ये फूल,
हुई कोई, तो दो भूला भूल ।।पुष्पं।।

लो स्वीकार ये पकवान,
‘जि कर ‘के अहसान ।।नैवेद्यं।।

लो स्वीकार ये ‘दिया’,
तेरा ही-मेरा है इसमें क्या ।।दीपं।।

लो स्वीकार ये धूप,
‘कि लगे हाथ ‘खोया’ चिद्रूप ।।धूपं।।

लो स्वीकार ये परात फल,
साथ आँख सजल ।।फलं।।

लो स्वीकार ये अर्घ
दो लगा हाथ, पद अनर्घ ।।अर्घ्यं।।

==हाईकू==
कुटेव भागे काँप के,
आशीष में जादू आपके

।। जयमाला।।

गुरुदेवा, गुरुदेवा
ए मेरे गुरुदेवा,
इक-दिले-साफ, गर कोई, तो न वो तुम्हारे सिवा ।
कर देता माफ गर कोई, तो न वो तुम्हारे सिवा ।

गुरुदेवा, गुरुदेवा
ए मेरे गुरुदेवा
पर दुख दुखी, गर कोई, तो न वो तुम्हारे सिवा ।
लुटाये खुशी, गर कोई, तो न वो तुम्हारे सिवा ।

गुरुदेवा, गुरुदेवा
ए मेरे गुरुदेवा
बढ़ाये हाथ, गर कोई, तो न वो तुम्हारे सिवा ।
निभाये साथ, गर कोई, तो न वो तुम्हारे सिवा ।

गुरुदेवा, गुरुदेवा !
ए मेरे गुरुदेवा
दया दरिया, गर कोई, तो न वो तुम्हारे सिवा ।
दुआ जरिया, गर कोई, तो न वो तुम्हारे सिवा ।

गुरुदेवा, गुरुदेवा
ए मेरे गुरुदेवा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

==हाईकू==
तुम्हें करेंगे परेशाँ नहीं,
रख लो ना पास ही

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