परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 289
तुम्हें पा,
मेरी कुटिया ने आखर अढ़ाई पढ़ा ।।स्थापना।।
तुम्हें पा मेरी कुटिया पाई सुकूँ,
दृग् जल भेंटूँ ।।जलं।।
तुम्हें पा मेरी कुटिया द्यु-स्यंदन,
भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।
तुम्हें पा मेरी कुटिया पाई न क्या,
भेंटूँ शालि धाँ ।।अक्षतं।।
तुम्हें या मेरी कुटिया ‘कल्प-द्रुम’,
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।
तुम्हें पा मेरी कुटिया ‘भी’ निकेत,
भेंटूँ नैवेद्य ।।नैवेद्यं।।
तुम्हें पा मेरी कुटिया पुण्यशाली,
भेंटूँ दीपाली ।।दीपं।।
तुम्हें पा मेरी कुटिया पाई खुशी,
भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।
तुम्हें पा मेरी कुटिया गई खिल,
भेंटू श्री फल ।।फल।।
तुम्हें पा मेरी कुटिया छुये नभ,
भेंटूँ अरघ ।।अर्घ्यं।।
“हाईकू”
चल चलें
ए ! मन ! भज लें
गुरु-गुण-गजलें
।।जयमाला।।
दृग सितार श्री मन्तो ।
इक दयाल जयवन्तो ।।
भान चन्द जयवन्तो ।
ज्ञान नन्द जयवन्तो ।।१।।
होश पून जयवन्तो ।
रोश शून जयवन्तो ।।
वीतराग जयवन्तो ।
प्रीत जाग जयवन्तो ।।२।।
धन्य डूब जयवन्तो ।
पुण्य खूब जयवन्तो ।।
एक लक्ष्य जयवन्तो ।
जेय अक्ष जयवन्तो ।।३।।
नन्द नेम जयवन्तो ।
पंक हेम जयवन्तो ।।
श्रमण भाल जयवन्तो ।
सगुण माल जयवन्तो ।।४।।
भूम देव जयवन्तो ।
नुति सदैव जयवन्तो ।।
निध अमूल जयवन्तो ।
निरा-कूल जयवन्तो ।।५।।
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
“हाईकू”
‘अन्त अन्त में यही वीनती,
भेंटो पंचम गति’
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