परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 260
‘हाईकू’
कीजो करुणा,
ओ ! तारण तरणा
दीजो शरणा ।।स्थापना।।
न मिला घट-जल,
आ गया मैं, लो नैन सजल ।।जलं।।
न मिला रस-मलय,
आ गया मैं, ले के विनय ।।चन्दनं।।
न मिला थाल-अछत,
ले आ गया, कृत-सुकृत।।अक्षतं।।
न मिला थाल सुमन,
ले आ गया, बुने सपन ।।पुष्पं।।
मिला ने थाल-व्यञ्जन,
ले आ गया, मन वाक् तन ।।नैवेद्यं।।
न मिला दीप,
सरगम-साँस, ले आया समीप ।।दीपं।।
न मिला घट-धूप,
प्रफुल्ल आया, ले रोम कूप ।।धूपं।।
मिला न फल,
आ मैं गया, हाथों का बना श्रीफल ।।फलं।।
मिला ने द्रव परात,
लो आ गया, अदब साथ ।।अर्घं।।
‘हाईकू’
‘सबके कुछ-कुछ हो,
आप मेरे सब कुछ हो’
जयमाला
देख आया जा, न कहाँ कहाँ मैं ।
आप सा दूजा, न दिखा जहाँ मैं ।
देखा चाँद तो लहरता दाग था ।
देखा भान तो उगलता आग था ।।
देखा आपको, तो देखता रहा मैं ।
आप सा दूजा, न दिखा जहाँ मैं ।।
देख आया जा, न कहाँ कहाँ मैं ।
आप सा दूजा, न दिखा जहाँ मैं ।
देखा चन्दन लिपटाये नाग था ।
दिखा हिरण कस्तूरी पीछे भागता ।।
छोड़ आपको और जाऊँ कहाँ मैं ।
आप सा दूजा, न दिखा जहाँ मैं ।
देख आया जा, न कहाँ कहाँ मैं ।
आप सा दूजा, न दिखा जहाँ मैं ।
देखा निर्झर दिखा वहाँ झाग था ।
नागमणि धर दिखा समाँ काग था ।।
करुणा-कर ! कर-करुणा हमें थामें ।
आप सा दूजा, न दिखा जहाँ मैं ।।
देख आया जा, न कहाँ कहाँ मैं ।
आप सा दूजा, न दिखा जहाँ मैं
जयकारा गुरुदेव का…
जय जय गुरुदेव…
॥ जयमाला पूर्णार्घ्यं ॥
‘हाईकू’
‘क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहूँ,
आपका निशि-दीस
आशीष’
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