परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 191
ग्रीषम छैय्या ।
अहो खिवैय्या ।।
लगा तीर दो, मेरी नैय्या ।। स्थापना।।
ले जल आये ।
बादल छाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। जलं ।।
मलयज लाये ।
करज रुलाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। चंदनं ।।
अक्षत लाये ।
विपत् रुलाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। अक्षतम् ।।
पहुपन लाये ।
कटुपन भाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। पुष्पं ।।
पकवाँ लाये ।
दुक्ख रुलाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। नैवेद्यं ।।
दीपक लाये ।
धी-धिक् भाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। दीपं ।।
सुगन्ध लाये ।
बन्ध रुलाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। धूपं ।।
ले फल आये ।
गहल भ्रमाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। फलं ।।
सब द्रव लाये।
गरब रुलाये ।।
दीजो विघटा ।
कृपया झट आ ।। अर्घं।।
==दोहा==
डग-डग मारग नापना,
ले कर गुरु का नाम ।
रुको-रुको मैं हूँ यहाँ,
कहता स्वयं मुकाम ।।
॥ जयमाला ॥
भज मन सुबहो शाम ।
विद्या सागर नाम ।।
सबसे प्यारा है ।
एक सहारा है ।।
बना रहा हर काम ।
विद्या सागर नाम ।।
सबसे सुन्दर है ।
दया समुन्दर है ।।
भिजा रहा शिव ग्राम ।
विद्या सागर नाम ।।
जग से न्यारा है ।
भाग सितारा है ।।
वैद्य अहा निर्दाम ।
विद्या सागर नाम ।।
सबके नीका है ।
छाँव सरीखा है ।।
दौड़ धूप विश्राम ।
विद्या सागर नाम ।।
बड़ा सुरीला है ।
अपहर पीड़ा है ।।
राम भाँत अभिराम ।
विद्या सागर नाम।।
भज मन सुबहो शाम ।
विद्यासागर नाम ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
जादू गुरु के पाँव में,
जो छू ले इक बार ।
उसका चुल्लु भर बचे,
सागर-सा संसार ।।
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