परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 163
बिन कारण जो कर रहे,
अजनबियन से प्यार ।।
बिन कारण जो कर रहे,
अजनबियन उपकार ।।
बिन कारण जो कर रहे,
अजनबियन उस पार ।
श्री गुरु विद्या वे तिन्हें,
वन्दन बारम्बार ।।स्थापना।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
छुयें आसमाँ छोर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या सिर-मौर ।।
गागर प्रासुक नीर से,
भर लाये गुरुद्वार ।
करुणा-कर ! कर लीजिये,
करुणा कर स्वीकार।। जलं ।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
विरच रहीं इतिहास ।
रही आपकी ही कृपा,
शिष्य ज्ञान गुरु खास ।।
गागर मलयज नीर से,
भर लाये गुरुद्वार |
करुणा कर ! कर लीजिये ,
करुणा कर स्वीकार ।। चन्दनं ।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
दें औरों को छाँव ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या शिव नाव ।।
थाली शाली धान से,
भर लाये गुरु द्वार।।
करुणा कर ! कर लीजिये,
करुणा कर स्वीकार ।। अक्षतम् ।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
पहने-गहने लाज ।
रही आपकी कृपा,
गुरु विद्या महाराज |
थाली चाँदी पुष्प से,
भर लाये गुरु द्वार ।
करुणा कर ! कर लीजिये,
करुणा कर स्वीकार ।। पुष्पं ।।
पड़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
जागे देर न रात ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या मुनिनाथ ।।
थाली घृत पकवान से,
भर लाये गुरद्वार ।
करुणा कर ! कर लीजिये,
करुणा कर स्वीकार ।। नैवेद्यं।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
रखें ओढ़नी ओढ़ ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या शिव-मोड़ ।।
दीप, दुग्ध के सार से,
भर लाये गुरु-द्वार ।
करुणा कर ! कर लीजिये,
करुणा कर स्वीकार ।। दीपं।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
बनीं अदब आदर्श ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या प्रद-हर्ष ।।
अञ्जली कदली सार से,
भर लाये गुरुद्वार ।
करुणा कर कर लीजिये,
करुणा कर स्वीकार ।। धूपं ।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
उड़ा न रहीं मजाक ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या श्रुत आँख ।।
थाली फल कइ भाँत से,
भर लाये गुरु द्वार ।
करुणा कर ! कर लीजिये,
करुणा कर स्वीकार ।। फलं ।।
पढ़ प्रतिभा-थलि बेटियाँ,
बोले कोकिल बोल ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या अनमोल ।।
थाली वसु-विध द्रव्य से,
भर लाये गुरुद्वार ।
करुणा कर ! कर लीजिये,
करुणा कर स्वीकार ।। अर्घं।।
==दोहा==
यही विनय, अनुनय यही,
थलि प्रतिभा-ए-शान ।
और नहीं कुछ बस हमें,
दे दीजे मुस्कान ।।
।। जयमाला ।।
और क्या चाहिये और क्या ।
और क्या चाहिये और क्या ।।
गुरु ने मुस्का दिया ।
गुरु ने अपना लिया ।।
और क्या चाहिये और क्या ।
और क्या चाहिये और क्या ।।
दे दिया आशीष है ।
माँगा कहाँ शीश है ।।
और क्या चाहिये और क्या ।
और क्या चाहिये और क्या ।
गुरु ने दी उठा नजर ।
गुरु ने दी हटा ‘नजर’ ।।
और क्या चाहिये और क्या ।
और क्या चाहिये और क्या ।।
पद रज भी मिल रही ।
बद-कज बिलकुल नहीं ।।
और क्या चाहिये और क्या ।
और क्या चाहिये और क्या ।।
निर्देशन मिल रहा ।
दर्शन भी मिल रहा ।।
और क्या चाहिये और क्या ।
और क्या चाहिये और क्या ।।
पूजा भी मिल रही ।
दूजा निरा’कुल नहीं ।।
और क्या चाहिये और क्या ।
और क्या चाहिये और क्या ।।
घर लिया आहार है ।
कर दिया उस पार है ।।
और क्या चाहिये और क्या ।
और क्या चाहिये और क्या ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही विनती आपसे,
बच्चों की मुस्कान ।
चखा हमें भी दो कभी,
स्वानुभूति पकवान
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