परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 147
कहाँ निराकुल इन जैसा ।
आकुलता-कारण पैसा ।।
है करीब ना जो इनके ।
सो करीब ना क्या इनके ।।स्थापना।।
नहीं क्रोध से नाता है ।
द्वन्द्व क्रोध उपजाता है ।।
साध अनेक न एक रहे ।
तभी सभी सिर टेक रहे ।। जलं ।।
छूता इन्हें न मान कभी ।
चाह रहे सम्मान नहीं ।।
खो ना स्वाभिमानी रहे ।
तभी देव दे मान रहे।। चन्दनं ।।
कोश दूर हैं माया से ।
नेह कहाँ है काया से ।।
छाया पीछे धावें ना ।
तभी कौन जो ध्यावें ना ।।अक्षतम् ।।
स्वानी-गहल सुहाये ना ।
गहल वानरी भाये ना ।।
कीर गहल नो दो ग्यारा ।
तभी विहँसने को ‘कारा’ ।। पुष्पं ।।
लालच से संबंध नहीं ।
नया कर रहे बंध नहीं ।।
रहे पुराना बंध झड़ा ।
तभी ‘जहाँ’ कर-बद्ध खड़ा।।नैवेद्यं ।।
माँ समीप कर-बद्ध खड़े ।
लिये रिझा सब ग्रंथ बड़े ।।
मुदा, लुटाते ज्ञान सुधा ।
तभी मानते सभी खुदा।। दीपं ।।
देख पीर पर पाते ना ।
अपनी पीर बताते ना ।।
कलि करुणालय एक यही ।
तभी छिड़कती जान मही ।।धूपं ।।
छल प्रपंच से प्रीत नहीं ।
नापें पथ विपरीत नहीं ।।
अपनों से हारा करते ।
तभी सभी का दिल हरते ।।फलं ।।
रस लेते ना निंदा में ।
डूब रहे ना तन्द्रा में ।।
रहें कंदरा-आत्म सदा ।
तभी भावि परमात्म अहा ।।अर्घं ।।
“दोहा”
श्री गुरु के आशीष से,
बनते हेैं गुणवान ।
आ पल दो पल के लिये,
करते गुरु गुणगान ॥
॥ जयमाला ॥
ज्ञान दिवाकर विद्यासागर !
गुण रत्नाकर विद्यासागर !
सिन्धु परन्तु मीठे कौन ।
संतन इन्दु सरीखे कौन ।।
विद्यासागर विद्यासागर ।
गुण रत्नाकर विद्यासागर ॥
ज्ञान दिवाकर विद्यासागर ।
विद्यासागर-विद्यासागर ।
गुरु पर नहीं डूबते कौन ।
प्रभु-थुति नहीं उबते कौन ॥
विद्यासागर विद्यासागर ।।
सत् शिव सुन्दर विद्यासागर ।
ज्ञान समुन्दर विद्यासागर ।
विद्यासागर-विद्यासागर ।
बनें, लाठी न लेते कौन ।
बना माटी घट देते कौन ।।
विद्यासागर विद्यासागर ।
हथकरघा धर विद्यासागर,
चल चरखा धर विद्यासागर ।
विद्यासागर-विद्यासागर ।
वर्तमान गोपाला कौन ।
वर्धमान गौशाला कौन ॥
विद्यासागर विद्यासागर ।
थलि प्रतिभा धर विद्यासागर ।
दय प्रतिभा ऽवर विद्यासागर ।।
विद्यासागर विद्यासागर ।
विद्यासागर-विद्यासागर ।
विद्यासागर विद्यासागर ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“दोहा”
सिर्फ यही इक विनती,
गुरुवर भगवत् रूप ।
छत्र-छाँव रख लीजिये,
कलि विष विषयन धूप ॥
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