अरह-नाथ
आरती
भगवन्-अरह, भगवन्-अरह,
भगवन्-अरह मेरे ।
तेरी उताऊँ आरती मैं,
साँझ अर सबेरे ।।
सुन तुम्हें आना गरभ में,
झिर लगा बरसे रतन ।
मित्र-सेना नाम माता,
देखतीं सोलह सुपन ।।
सेव लो स्वीकार माँ,
देविंयाँ खड़ीं घेरे ।
भगवन्-अरह, भगवन्-अरह,
भगवन्-अरह मेरे ।
नृप-सुदर्शन धन्य जिनके,
घर लिया तुमने जनम ।
मेर धन ! धन ! क्षीर-सागर,
न्हवन कर धन ! सौधरम ।।
रूप ऐसा अलौकिक,
मुड़-मुड़ न कौन हेरे ।
भगवन्-अरह,भगवन्-अरह,
भगवन्-अरह मेरे ।
चक्रवर्ती, कामदेवा,
आप अर तीर्थंकरा ।
मोह तोड़ा, राज छोड़ा,
भेष दैगम्बर धरा ।
चुके जोन चुरास-लख,
अर चार-गत फेरे ।
भगवन्-अरह,भगवन्-अरह,
भगवन्-अरह मेरे ।
ज्ञान-दर्शन ‘नन्त’ सुख-बल,
लग चला सम-शरण है ।
जात-वैर विड़ार बैठा,
सिंह वहीं पर हिरण है ।।
बन चली वसुधा कुटुम,
कोई न दृग् तरेरे ।
भगवन्-अरह, भगवन्-अरह,
भगवन्-अरह मेरे ।
जर चले ध्या-नाग्नि में अर,
थे बचे जेते सभी ।
शिव लगे, इक समय में जा,
आप ऋजु-गत से तभी ।।
बनूँ ‘सहजो-निराकुल’,
आखिर समान तेरे ।।
भगवन्-अरह, भगवन्-अरह,
भगवन्-अरह मेरे ।
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