वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पूजन
जय जय कारा ।
जय जय कारा ।
पूज्य आपका साँचा द्वारा ।।
हारा मैं, किस्मत का मारा ।
एक सहारा, मुझे तुम्हारा ।।
पूज्य आपका साँचा द्वारा ।।
ॐ ह्रीं श्री पूज्य जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री पूज्य जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री पूज्य जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
बटुआ खाली ।
छिनी दिवाली ।।
त्राहि-माम् भेंटूँ जल झारी ।।
ॐ ह्रीं दारिद्र-निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आते रिश्ते ।
जाते रिसते ।।
त्राहि-माम् पद चन्दन रखते ।।
ॐ ह्रीं वैवाहिक बाधा-निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।।
बच्चे नूठे ।
धन्धे रूठे ।।
त्राहि-माम् भेंटूँ धाँ कूटे ।।
ॐ ह्रीं आजीविका-बाधा निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
दाग चुनरिया ।
झुकी नज़रिया ।।
त्राहि-माम् भेंटूँ गुल बगिया ।।
ॐ ह्रीं अपकीर्ति निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आँख दिखायें ।
रोग सतायें ।।
त्राहि-माम् घृत भोग भिंंटायें ।।
ॐ ह्रीं मारी बीमारी निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
किस्मत फूटी ।
सरसुुत रूठी ।।
त्राहि-माम् भेंटूँ लौं नूठी ।।
ॐ ह्रीं अल्प बुद्धि निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ऊपर बाधा ।
उदय असाता ।।
त्राहि-माम् घट धूप चढ़ाता ।।
ॐ ह्रीं टुष्टविद्या निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चोरी, प्यारी ।
चीज हमारी ।।
त्राहि-माम् भेंटूँ फल क्यारी ।।
ॐ ह्रीं इष्ट वियोग निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
राह कँटीली ।
‘शू’ साइड धी ।।
त्राहि-माम् भेंटूँ द्रव सब ही ।।
ॐ ह्रीं अपमृत्यु-अल्पमृत्यु निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कल्याणक अर्घ
सूनी गोदी ।
बहु ‘बहु’ रोती ।।
त्राहि-माम् भेंटूँ दृग् मोती ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़ कृष्ण षष्ट्यां
गर्भ कल्याणक-प्राप्ताय
अकुटुम्ब बाधा निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मानस पाया ।
बगुला भाया ।।
त्राहि माम् हित शरणा आया ।।
ॐ ह्रीं फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्यां
जन्म कल्याणक-प्राप्ताय
मानस विकार निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दीक्षा सपना ।
सपने अपना ।।
त्राहि-माम् पत मेरी रखना ।।
ॐ ह्रीं फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्यां
दीक्षा कल्याणक प्राप्ताय
सिद्ध साक्षि दीक्षा बाधा निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खूब धका ली ।
दुकाँ न चाली ।।
त्राहि-माम् दो मना दिवाली ।।
ॐ ह्रीं भाद्रपद शुक्ल द्वितीयायां
ज्ञान कल्याणक प्राप्ताय
व्यापार बाधा निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पीर घनेरी ।
अपने वैरी ।।
त्राहि-माम् हो रक्षा मेरी ।।
ॐ ह्रीं भाद्रपद शुक्ल चतुर्दश्यां
मोक्ष कल्याणक प्राप्ताय
बन्धुजन-कृत बाधा निवारकाय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘विधान प्रारंभ’
सुत-वसु-पूज ।
निशि-कर दूज ।
वासु पूज जय, दिश्-दश गूँज ।।
ॐ ह्रीं श्री पूज्य जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री पूज्य जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री पूज्य जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्
जय अरिहन्त ।
सिद्ध अनन्त ।
सूरि पाठी-जय, जय निर्ग्रन्थ ।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
अक्षर असिआ उसा नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्ञान अपार ।
भव-जल पार ।
दया-धर्म, मुनि मंगल चार ।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं ए ऐ ओ औ अं अः
अक्षर चतुर्विध मंगलाय नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
इक-आराध ।
सुख-निर्बाध ।
उत्तम धर्म अहिंसा, साध ।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अक्षर चतुर्विध लोकोत्तमाय नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जिन भगवन्त ।
सिद्ध अनन्त ।
धर्म अहिंसा शरण महन्त ।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अक्षर चतुर्विध शरणाय नमः
दक्षिण-दिशि अर्घ निर्वापमिति स्वाहा ।।
दर्शन नन्त ।
ज्ञान अनन्त ।
बल ‘अनन्त’ सुख अनन्त वन्त ।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अक्षर पूज्य जिनेन्द्राय नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
केशर-पीठ ।
सुर’भी गीत ।
भा-मण्डल सुर-तर हर-दीठ ।।
गुल बरसात ।
दुन्दुभ नाद ।
छतर, चँवर प्रतिहारज आठ ।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अक्षर पूज्य जिनेन्द्राय नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामिति स्वाहा ।।
संहनन, बाण ।
अर संस्थान ।
लखन-सहस, निर्मल, बलवान ।।
विरहित-श्वेद ।
रक्त-सुफेद ।
रूप-नूप, तन गन्ध निकेत ।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अक्षर पूज्य जिनेन्द्राय नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
थिर-नख-केश ।
अर अनिमेष ।
सुभिख, अभय, विद्या सर्वेश ।।
मुख दिश्-चार ।
गगन विहार ।
छाया, विघन ना कवलाहार ।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अक्षर पूज्य जिनेन्द्राय नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मागध भाष ।
दिश्-आकाश ।
‘ऋत’, ‘सुर’, मैत्री ‘अन’ वाताश ।
पद्म-सुगन्ध ।
पथ जल गन्ध ।
धर्म चक्र भू दर्प’ण पन्थ ।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अक्षर पूज्य जिनेन्द्राय नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रथम वलय पूजन विधान की जय
अनन्त चतुष्टय
दर्पण भाँत ।
दर्शन हाथ ।।
कर्म दर्शनावरण विघात ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्त-दर्शन मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आप समान ।
केवल ज्ञान ।
ज्ञानावरण कर्म अवसान ।।२।।
ॐ ह्रीं अनन्त-ज्ञान मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नमन विनीत ।
बल अगणीत ।
अन्तराय इक अर अभिजीत ।।३।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दुख अब नाश ।
सुख अविनाश ।
कर्म मोहनी एक विनाश ।।४।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दर्शन नन्त ।
ज्ञान अनन्त ।
बल ‘अनन्त’ सुख अनन्त वन्त ।।
ॐ ह्रीं अनन्त-चतुष्टय मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान की जय
अष्ट-प्रातिहार्य
प्रथमा भौन ।
उपमा गौण ।
रत्न खचित सिंहासन सोन ।।१।।
ॐ ह्रीं सिंहासन मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दिव शिव द्वार ।
गहल निवार ।
बिन्दु सहित वाणी ओंकार ।।२।।
ॐ ह्रीं दिव्य-ध्वनि मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सोम समान ।
सौम्य विधान ।
जोड़ भा वलय कोटिक भान ।।३।।
ॐ ह्रीं भामण्डल मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दे तुम ढ़ोक ।
साधन मोख ।
सुर तरु सार्थक नाम अशोक ।।४।।
ॐ ह्रीं वृक्ष-अशोक मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उपवन नन्द ।
इतर सुगन्ध ।
झिर लग गुल बरसात अमन्द ।।५।।
ॐ ह्रीं पुष्प-वृष्टि मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बाजे नेक ।
बाजे लेख ।
दरद-मन्द इह बाजे एक ।।६।।
ॐ ह्रीं देवदुन्दुभि मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अधर सुड़ोल ।
झालर लोल ।
छतर सुशोभित तीन अमोल ।।७।।
ॐ ह्रीं छत्र-त्रय मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
किस-से देव ।
हिस्से सेव ।
ढोरें चौसठ चँवर सदैव ।।८।।
ॐ ह्रीं चामर मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
केशर-पीठ ।
सुर’भी गीत ।
भा-मण्डल सुर-तर हर-दीठ ।।
गुल बरसात ।
दुन्दुभ नाद ।
छतर, चँवर प्रतिहारज आठ ।।
ॐ ह्रीं अष्ट-प्रातिहार्य मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान की जय
जन्मातिशय
भगवत वाँच ।
उपरत काँच ।
‘संहनन’ वज्र वृषभ नाराच ।।१।।
ॐ ह्रीं धन ! संहनन मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अमरित घोल ।
मित अनमोल ।
बड़े सुरीले मीठे बोल ।।२।।
ॐ ह्रीं बोल अमोल मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अबकी शाम ।
हाथ मुकाम ।
संस्थाँ सम चतु रस्रिक नाम ।।३।।
ॐ ह्रीं छटा संस्थाँ मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हंस-विवेक ।
ध्वज, गज-रेख ।
लाखन शुभ सहस्र अभिलेख ।।४।।
ॐ ह्रीं ‘लाखन’ गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कहाँ निहार ।
छक आहार ।
देवुपनीत मिष्ठ मनहार ।।५।।
ॐ ह्रीं निर्मल गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अचरज-कार ।
शक्ति अपार ।
बल श्वासन लो हिला पहाड़ ।।६।।
ॐ ह्रीं संबल मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हृदय उदार ।
दय अवतार ।
रग-रग बहे दुग्ध की धार ।।७।।
ॐ ह्रीं सित शोणित मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
होड़ न मान ।
गुमा गुमान ।
नहिं पसेव का नाम निशान ।।८।।
ॐ ह्रीं हीन पसीन गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कहीं न और ।
छव सिर-मौर ।
निष्कलंक शशि से बढ़ गौर ।।९।।
ॐ ह्रीं सुन्दर, तन मन्दर मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अगर कपूर ।
चन्दन दूर ।
आगे लगे न मृग-कस्तूर ।।१०।।
ॐ ह्रीं सौरभ गौरव मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
संहनन, बाण ।
अर संस्थान ।
लखन-सहस, निर्मल, बलवान ।।
विरहित-श्वेद ।
रक्त-सुफेद ।
रूप-नूप, तन गन्ध निकेत ।।
ॐ ह्रीं दश-जन्मातिशय मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चतुर्थ वलय पूजन विधान की जय
केवल-ज्ञानातिशय
गत रत-द्वेष ।
हित उपदेश ।
रुक चाली वृद्धिन नख-केश ।।१।।
ॐ ह्रीं नग केश-नख गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दृग् नम दून ।
अवगम पून ।
झपकन पलक सर्वथा शून ।।२।।
ॐ ह्रीं झलक अपलक गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भीति न रेख ।
ईति न एक ।
योजन-शत सुभिक्ष अभिलेख ।।३।।
ॐ ह्रीं इक सुभिख गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वैर विडार ।
वत्सल न्यार ।
सभा सींह मृग एक कतार ।।४।।
ॐ ह्रीं ‘मा-हन्त’ गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जगत् प्रसिद्ध ।
परिकर रिद्ध ।
‘सहज निराकुल’ आकर सिद्ध ।।५।।
ॐ ह्रीं ‘विद्यालय’ गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भक्त चकोर ।
शशि बेजोड़ ।
मुख समशरण दिखे चहुओर ।।६।।
ॐ ह्रीं चतुर्मुख प्रतिभा गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पर हित कार ।
गगन विहार ।
ऊपर भू से अंगुल चार ।।७।।
ॐ ह्रीं ‘गगन-चरन’ गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तेज प्रचण्ड ।
ज्योत अखण्ड़ ।
तन छाया से छूटा पिण्ड ।।८।।
ॐ ह्रीं छाया माया गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्रत निर्दोष ।
सजग, सहोश ।
संकट दूर खड़े जा कोस ।।९।।
ॐ ह्रीं ‘हन विघन’ गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अपरम्पार ।
अमिरित धार ।
अवगम बाद न कवलाहार ।।१०।।
ॐ ह्रीं अन अनशन गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
थिर-नख-केश ।
अर अनिमेष ।
सुभिख, अभय, विद्या सर्वेश ।।
मुख दिश्-चार ।
गगन विहार ।
छाया, विघन ना कवलाहार ।।
ॐ ह्रीं दश केवल-ज्ञानातिशय मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पंंचम वलय पूजन विधान की जय
देव-कृतातिशय
निवसे श्वास ।
बिन आयास ।
सुर’भी अर्ध मागधी भाष ।।१।।
ॐ ह्रीं भाष अध-मागध गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घन अवसान ।
धन ! अब शान ।
स्वच्छ साफ नभ शरद् समान ।।२।।
ॐ ह्रीं मगन गगन गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झूम विधात ।
धूम विघात ।
दिश्-दिश् स्वच्छ शरद् ऋत भाँत ।।३।।
ॐ ह्रीं ‘दिशा’ गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विधना भूल ।
सुनिध अमूल ।
डाल-डाल ऋत-ऋत फल-फूल ।।४।।
ॐ ह्रीं ऋत-ऋत गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बारम्बार ।
जय जयकार ।
यहाँ विराजे तारण-हार ।।५।।
ॐ ह्रीं स्वर सुर गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दूर तनाव ।
सुदूर ताव ।।
दिश्-दिश् इक मैत्री का भाव ।।६।।
ॐ ह्रीं ‘मै-त्र’ गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
और न सन्ध ।
और सुगन्ध ।।
चलती रहती मारुत मन्द ।।७।।
ॐ ह्रीं ह-वा…वा-ह गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भी’तर ओज ।
निधि ले खोज ।
पल विहार सुर रचें सरोज ।।८।।
ॐ ह्रीं पद पद्म गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
एक न शूल ।
रेख न धूल ।
पन्थ मन्त्र साधन अनुकूल ।।९।।
ॐ ह्रीं ‘मा-रग’ गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
परिमल झूठ ।
इतर अनूठ ।
झिरे धार जल गन्ध अटूट ।।१०।।
ॐ ह्रीं मोहक गन्धोदक गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सलील न्यार ।
तील हजार ।
धर्म चक्र मत मिथ्याहार ।।११।।
ॐ ह्रीं अग्र धर्मचक्र गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अपूर्व जाग ।
दर्शन भाग ।
भू दर्पण जैसी बेदाग ।।१२।।
ॐ ह्रीं फर्श आदर्श गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जुदी उमंग ।
उड़ी पतंग ।
मन मन थम सी चली तरंग ।।१३।।
ॐ ह्रीं साध आह्लाद गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वितरण घाट ।
नांदी पाठ ।
‘सुर’-तिय द्रव्य मांगलिक आठ ।।१४।।
ॐ ह्रीं वस मंगल गुण मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मागध भाष ।
दिश्-आकाश ।
‘ऋत’, ‘सुर’, मैत्री ‘अन’ वाताश ।
पद्म-सुगन्ध ।
पथ जल गन्ध ।
धर्म चक्र भू दर्प’ण पन्थ ।।
ॐ ह्रीं चतुर्दश देव-कृतातिशय मण्डिताय
श्री पूज्य जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला लघु चालीसा
दोहा
आ सुमरण से जुड़ चलें,
भले घड़ी एकाध ।
सुना, डूबते के लिये,
काफी तिनका साथ ।।
दिल दया से भींजा ।
नैन रखते तीजा ।।
भक्त की सुनते तुम ।
भक्त को चुनते तुम ।।१।।
विनत सीता रानी ।
आग पानी पानी ।।
कहा अर्हम्-अर्हम् ।
जटायु-पंख सोनम ।।२।।
दिल दया से भींजा ।
नैन रखते तीजा ।।
भक्त की सुनते तुम ।
भक्त को चुनते तुम ।।३।।
शूलिका विकराली ।
सिंहासन बन चाली ।।
फूल मुख अपने रख ।
स्वर्ग जन्मा मेंढक ।।४।।
दिल दया से भींजा ।
नैन रखते तीजा ।।
भक्त की सुनते तुम ।
भक्त को चुनते तुम ।।५।।
खुल पड़ा दरवाज़ा ।
शील जय नभ गाजा ।।
घड़े अहि जुग काला ।
निकाला गुलमाला ।।६।।
दिल दया से भींजा ।
नैन रखते तीजा ।।
भक्त की सुनते तुम ।
भक्त को चुनते तुम ।।७।।
भक्ति अनबुझ ज्योती ।
ज्वार जग-मग मोती ।।
ग्वाल वाला एका ।
सूरिवर अभिलेखा ।।८।।
दिल दया से भींजा ।
नैन रखते तीजा ।।
भक्त की सुनते तुम ।
भक्त को चुनते तुम ।।९।।
हाय ! मैं भी दुखिया ।
बनी आँखें दरिया ।।
निरा’कुल कर लो ना ।
रूप रुपया खोना ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री पूज्य जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
दोहा
अपने चरणों से मुझे,
कभी न करना दूर ।
तुम पानी, मैं मीन हूँ,
मैं सरोज, तुम सूर ।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
‘आरती’
वासुपूज देव
देव करे सेव
सोने की थाल
दीप घी प्रजाल
आरती उतारें हम भी सदैव
आरतिया पहली गर्भ अनोखी
बरसा रत्नों की
‘रे बरसा रत्नों की
स्वर्ग से उतर के करते हैं देव
आरती उतारें हम भी सदैव
आरतिया दूजी जनमत पल की
धार क्षीर जल की,
‘रे धार क्षीर जल की,
स्वर्ग से उतर के करते हैं देव
आरती उतारें हम भी सदैव
आरतिया तीजी त्याग विभूति
सातिशयी केली
‘रे सातिशयी केली
स्वर्ग से उतर के करते हैं देव
आरती उतारें हम भी सदैव
आरतिया चौथी ज्ञान अकेली
धन्य धुन अनूठी
‘रे धन्य धुन अनूठी
स्वर्ग से उतर के करते हैं देव
आरती उतारें हम भी सदैव
आरती अखीरी मोक्ष गमन की
धारा नयन की
‘रे धारा नयन की
स्वर्ग से उतर के करते हैं देव
आरती उतारें हम भी सदैव
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