*वर्धमान मंत्र*
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘पूजन’
सार्थ नाम नम नैना ।
प्रद सम-दर्शन वैना ।।
छाया घोर अँधेरा ।
सूना मन गृह मेरा ।।
कृपा-दृष्टि बरषाओ ।
ज्योति-पुञ्ज आ जाओ ।।
एक आसरा तेरा ।
छाया घोर अँधेरा ।।
ॐ ह्रीं श्री नमि जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री नमि जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री नमि जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
भर लाया जल कलशे ।
साधूॅं मनरथ छल से ।।
चेहरे ऊपर चेहरा ।
छाया घोर अँधेरा ।
जेब उधड़ने लागा ।
दैव उखड़ के भागा ।।
ठहरे हाथ न पैसा ।
बस ‘वस’-पहर परेशां ।।
ॐ ह्रीं दारिद्र-निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घट चन्दन भर लाया ।
रत अभिनन्दन-माया ।।
हा ! निन्यानव फेरा ।
छाया घोर अँधेरा ।
पीले हाथ न जल्दी ।
मॅंहगी ‘हो ली’ हल्दी ।।
गुड़ बन चाली धूरा ।
गुण सम्मिलन अधूरा ।।
ॐ ह्रीं वैवाहिक बाधा-निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाया अक्षत दाने ।
गाऊँ अचित् तराने ।।
मूर्ख-शिरोमण चेरा ।
छाया घोर अँधेरा ।
टिके मील-पत्थर से ।
बच्चे चिपके घर से ।।
काम-धाम ना कोई ।
बनता बैठे रोई ।।
ॐ ह्रीं आजीविका-बाधा निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाया पुष्प पिटारे ।
भाव कण्ठ-पिक काले ।।
सपना ‘सुमन’ सबेरा ।
छाया घोर अँधेरा ।
गिरा ‘जगत’ नजरों से ।
हूँ अब आप भरोसे ।।
न्याय कोजिये स्वामी ।
हो जो अन्तर्जामी ।।
ॐ ह्रीं अपकीर्ति निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाया चरु अरु मिसरी ।
पीछे गिर-गिट, मकरी ।।
हाथ लकीर बखेड़ा ।
छाया घोर अँधेरा ।
रोगों ने आ घेरा ।
डाल आमरण डेरा ।।
दुख सुरसा मुख बाड़े ।
जीवित जान निकाले ।।
ॐ ह्रीं मारी बीमारी निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाया दीप सलोने ।
हिंसक खेल-खिलोने ।।
नम दृग् सर-गम छेड़ा ।
छाया घोर अँधेरा ।
रटूॅं रात मिट्ठू सा ।
ज्ञान-देव ! पै रूठा ।।
होते-होते प्राता ।
होता पाठ सपाटा ।।
ॐ ह्रीं अल्प बुद्धि निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खेऊँ इतर सुवासा ।
भाँत मीन जल प्यासा ।।
महल हवाई डेरा ।
छाया घोर अँधेरा ।
मन्त्र-मूठ मायावी ।
बला ऊपरी हावी ।।
करता ‘कुछ’ कहता हूँ ।
और वशी रहता हूँ ।।
ॐ ह्रीं टुष्टविद्या निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ऋत-फल लिये रसीले ।
दृग्-हित ‘आप’ पनीले ।।
दृग् तरेर दुख हेरा ।
छाया घोर अँधेरा ।
छोटी हाथ लकीरें ।
दृग् पथ जा दिल चीरें ।।
चीज प्राण से प्यारी ।
चोरी हुई हमारी ।।
ॐ ह्रीं इष्ट वियोग निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाया द्रव्य अनूठे ।
हा ! परिणति ‘कुश’ कूटे ।।
बुनूँ बाँझ सुत सेहरा ।
छाया घोर अँधेरा ।
‘मात’ लकीरे छिछलीं ।
हाथ लकीर विथलीं ।।
देख राह में काँटे ।
‘शू-साइड’ से नाते ।।
ॐ ह्रीं अपमृत्यु-अल्पमृत्यु निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘कल्याणक-अर्घ’
दिखला सपने सोला ।
शिशु तीर्थकर बोला ।।
माँ जागो मैं आया ।
मृग वो दाँये धाया ।।
गोद बहुरिया सूनी ।
अश्रु नजरिया खूनी ।।
गैर न अपने मारें ।
ताने हृदय विदारें ।।
ॐ ह्रीं श्री अश्विन-कृष्ण-द्वितीयायां
गर्भ कल्याणक प्राप्ताय
अकुटुम्ब बाधा निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शचि शिशु इन्द्र थमाया ।
नाम दृग्-सहस पाया ।।
पुण्य मेरु गिर जागा ।
हाथ न्हवन शिशु लागा ।
बस मानस कहलाऊॅं ।
पीछे बगुले धाऊॅं ।।
परिणति स्याह हमारी ।
रसिया थारी-म्हारी ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-दशम्यां
जन्म कल्याणक प्राप्ताय
मानस विकार निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भोग लुभा ना पाये ।
सुर लौकान्तिक आये ।।
लुञ्चन झट-‘पट’ फेंके ।
नमः सिद्ध रट लेके ।।
निकलूॅं कैसे घर से ।
सरके बोझ न सर से ।।
भूल-चूक खुद हमरी ।
बुना जाल जो मकरी ।।
ॐ ह्रीं आषाढ़-कृष्ण-दशम्यां
तप कल्याणक प्राप्ताय
सिद्ध साक्षि दीक्षा बाधा निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सार्थ नाम समशरणा ।
जात वैर तज अपना ।।
सिंह नजदीक हिरण है ।
मेढ़क पास धरण है ।।
दुकां धका ना चलती ।
गला दाल ना गलती ।।
झिरा आँख के मोती ।
साँझ, सुबह से होती ।।
ॐ ह्रीं मार्ग शीर्ष-शुक्ल-एकादश्यां
ज्ञान कल्याणक प्राप्ताय
व्यापार बाधा निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ध्यानानल उजियारे ।
चुन-चुन कर्म पछारे ।।
लागा समय जिनेशा ।
जा पहुँचे निज-देशा ।।
बिन कारण अपनों ने ।
साधे काम घिनोने ।।
टाँग खींचते रहते ।
आँख मींच हम सहते ।।
ॐ ह्रीं वैशाख-कृष्ण-चतुर्दश्यां
मोक्ष कल्याणक प्राप्ताय
बन्धुजन-कृत-बाधा निवारकाय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=विधान-प्रारंभ=
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।
मेंटो संकट मेरा ।
जैसा भी मैं तेरा ।।
ॐ ह्रीं श्री नमि जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री नमि जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री नमि जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
‘बीजाक्षर सहित मूल नवार्घ’
अरिहन्त, सिद्ध वन्दन ।
आचारज अभिनन्दन ।।
उपदेशक आराधूँ ।
नुति दैगम्बर साधू ।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
अक्षर असिआ उसा नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मंगल पहले अरिहन ।
फिर नन्त-सिद्ध भगवन् ।।
सद्-धर्म-अहिंसा अर ।
मंगल मुनि दैगम्बर ।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं ए ऐ ओ औ अं अः
अक्षर चतुर्विध मंगलाय नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
उत्तम पहले अरिहन ।
फिर नन्त-सिद्ध भगवन् ।।
सद्-धर्म-अहिंसा अर ।
उत्तम मुनि दैगम्बर ।।३।।
ॐ ह्रीं अर्ह क ख ग घ ङ
अक्षर चतुर्विध लोकोत्तमाय नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शरणा पहले अरिहन ।
फिर नन्त-सिद्ध भगवन् ।।
सद्-धर्म-अहिंसा अर ।
शरणा मुनि दैगम्बर ।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अक्षर चतुर्विध शरणाय नमः
दक्षिण-दिशि अर्घ निर्वापमिति स्वाहा ।।
दर्शन-अनन्त धारी ।
सुख-अनन्त अधिकारी ।।
बल अनन्त ‘सदय हृदय’ ।
जय ज्ञान-अनन्त निलय ।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अक्षर नमि जिनेन्द्राय नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
भा-वलय, पुष्प-बरसा ।
तर-अशोक, धुन-सरसा ।।
सुर-दुन्दुभि, अधर-छतर ।
सिंहासन अवर चँवर ।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अक्षर नमि जिनेन्द्राय नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामिति स्वाहा ।।
संहनन ‘सुगन्ध’ संस्थाँ ।
शुभ-लखन, वयन, बलवाँ ।।
निर्मल, रग-दुग्ध लहर ।
निःश्वेद, रूप-मनहर ।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अक्षर नमि जिनेन्द्राय नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘इति’ छाया, गति नख-शिख ।
अपलक, मुख-चार, सुभिख ।।
विद्येश, अभुक्, करुणा ।
निर्विघ्न गमन-गगना ।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अक्षर नमि जिनेन्द्राय नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नभ निर्मल दिश् ‘सुर’ ‘ऋत’।
द्रव सुपथ भाष-वृष-वृत ।।
मैत्री जल-गन्ध पवन ।
‘नन्दन’-गुल भू दर्प’ण ।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अक्षर नमि जिनेन्द्राय नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रथम वलय पूजन विधान की जय
*अनन्त चतुष्टय*
आवरण दरश निरसन ।
प्रकटित अनन्त दर्शन ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्त-दर्शन मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आवरण ज्ञान विघटा ।
आरोग्य-ज्ञान प्रकट ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।२।।
ॐ ह्रीं अनन्त-ज्ञान मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झट चीर विमोहन पट ।
सुख-अनन्त आप प्रकट ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।३।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अर-अन्तराय इक हन ।
बल-नन्त प्रकट तत्क्षण ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।४।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दर्शन-अनन्त धारी ।
सुख-अनन्त अधिकारी ।।
बल अनन्त ‘सदय हृदय’ ।
जय ज्ञान-अनन्त निलय ।।
जल, चन्दन, फल, तण्डुल ।
चरु-अरु वन-नन्दन गुल ।।
भेंटूँ सुगन्ध ज्योती ।
हित स्वानुभुवन मोती ।।
ॐ ह्रीं अनन्त-चतुष्टय मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान की जय
*अष्टप्रातिहार्य*
तुम रज चरणन पाई ।
तरु-‘गगन’ कीर्ति छाई ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१।।
ॐ ह्रीं वृक्ष अशोक मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नमि लाके अँखिंयों में ।
ध्वनि दिव्य सुर्खिंयों में ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।२।।
ॐ ह्रीं दिव्य-ध्वनि-मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पीछे तुम क्या लागा ।
भा-वलय भाग जागा ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।३।।
ॐ ह्रीं भामण्डल-मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पा गया कतार सुमन ।
कर मन से तुम सुमरण ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।४।।
ॐ ह्रीं पुष्प-वृष्टि-मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पा परस आप पाँवन ।
झुक झूमे सिंहासन ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।५।।
ॐ ह्रीं सिंहासन-मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पा तुमरी एक नजर ।
उड़ चली पतंग चँवर ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।६।।
ॐ ह्रीं चामर मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बाजे बाजी मारे ।
बज कर तुमरे द्वारे ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।७।।
ॐ ह्रीं देवदुन्दुभि-मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तुम चरण शरण आया ।
छव छतर इतर पाया ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।८।।
ॐ ह्रीं छत्र-त्रय-मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तर-अशोक, धुनि-सरसा ।
भा-वलय, पुष्प-बरसा ।।
सिंहासन अवर चँवर ।
सुर-दुन्दुभि, अधर-छतर ।।
जल, चन्दन, फल, तण्डुल ।
चरु-अरु वन-नन्दन गुल ।।
भेंटूँ सुगन्ध ज्योती ।
हित स्वानुभुवन मोती ।।
ॐ ह्रीं अष्ट-प्रातिहार्य-मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान की जय
*दशजन्मातिशय*
गज-रेख, शंख, झारी ।
वसु-सहस-लखन धारी ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१।।
ॐ ह्रीं ‘लाखन’ गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जाने कब चित्-चोरी ।
बोली मिसरी घोरी ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।२।।
ॐ ह्रीं बोल अमोल मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चल पर्वत बल-छिंगरी ।
महिमा भुज-बल विरली ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।३।।
ॐ ह्रीं संबल मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नाराच वज्र विरषभ ।
संहनन प्रसिद्ध रिध-सब ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।४।।
ॐ ह्रीं धन ! संहनन मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बगलें झाँके चन्दन ।
तन सुगन्ध ‘गुल’ नन्दन ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।५।।
ॐ ह्रीं सौरभ गौरव मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अर सामुद्रिक पत्रा ।
वर सम-चतु-रस संस्थाँ ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।६।।
ॐ ह्रीं छटा संस्थाँ मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कस्तूर-मृग न नाता ।
श्रम बिन्दु रिक्त माथा ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।७।।
ॐ ह्रीं हीन पसीन गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शशि विरचा बाद कमल ।
मुख विरच आप पग-तल ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।८।।
ॐ ह्रीं सुन्दर, तन मन्दर मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छक भोजन दिव सरसा ।
हो भस्म-सात सहसा ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।९।।
ॐ ह्रीं निर्मल गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रग लहरे दुग्ध लहर ।
पर-दुख-कातार अन्तर् ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१०।।
ॐ ह्रीं सित शोणित मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शुभ-लखन, वयन, बलवाँ ।
संहनन ‘सुगंध’ संस्थाँ ।।
नि:श्वेद, रूप-मनहर ।
निर्मल, रग-दुग्ध लहर ।।
जल, चन्दन, फल, तण्डुल ।
चरु-अरु वन-नन्दन गुल ।।
भेंटूँ सुगन्ध ज्योती ।
हित स्वानुभुवन मोती ।।
ॐ ह्रीं दश-जन्मातिशय मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चतुर्थ वलय पूजन विधान की जय
*केवलज्ञानातिशय*
टिमकार नयन खोई ।
परणति न काग धोई ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१।।
ॐ ह्रीं झलक अपलक गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मुख चार दीख पड़ते ।
कर करतब, तुम बढ़ते ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।२।।
ॐ ह्रीं चतुर्मुख प्रतिभा गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
इक सुभिख शतक योजन ।
नासा ठहरे लोचन ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।३।।
ॐ ह्रीं इक सुभिख गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पड़ रही न तन छाया ।
चित् चउ खाने माया ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।४।।
ॐ ह्रीं छाया माया गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नख-केश वृद्धि ठहरी ।
तुम डूब आत्म गहरी ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।५।।
ॐ ह्रीं नग केश-नख गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
संकट यम को प्यारे ।
तुम अपनों से हारे ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।६।।
ॐ ह्रीं ‘हन विघन’ गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आकाश गमन थाती ।
वधु मुक्ति लिखे पाती ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।७।।
ॐ ह्रीं ‘गगन-चरन’ गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कर मुकलित सर नायें ।
लग ताँता विद्याएँ ।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।८।।
ॐ ह्रीं ‘विद्यालय’ गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चुक चली क्षुध्-पिपासा ।
इति-हाँसा इतिहासा ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।९।।
ॐ ह्रीं अन अनशन गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दृग् गंग-जमुन देखा ।
हृद-विशाल अभिलेखा ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१०।।
ॐ ह्रीं ‘मा-हन्त’ गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अपलक, मुख-चार, सुभिख ।
‘इति’ छाया, गति नख-शिख ।।
निर्विघ्न गमन-गगना ।
विद्येश, अभुक्, करुणा ।।
जल, चन्दन, फल, तण्डुल ।
चरु-अरु वन-नन्दन गुल ।।
भेंटूँ सुगन्ध ज्योती ।
हित स्वानुभुवन मोती ।।
ॐ ह्रीं दश केवल-ज्ञानातिशय मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पंचम वलय पूजन विधान की जय
*देवकृतातिशय*
घन श्याम गुम कहीं पे ।
नभ स्वच्छ बस यहीं पे ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१।।
ॐ ह्रीं मगन गगन गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निर्धूम दिशा विदिशा ।
सुख चैन अमन बरसा ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।२।।
ॐ ह्रीं ‘दिशा’ गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आपूर गगन सारा ।
मन-हर जय-जय-कारा ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।३।।
ॐ ह्रीं स्वर सुर गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तर फल-अमूल ऋत ऋत ।
खिल चले फूल ऋत-ऋत ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।४।।
ॐ ह्रीं ऋत-ऋत गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मांगलिक द्रव्य दूजे ।
गन्धर्व गीत गूँजे ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।५।।
ॐ ह्रीं वस मंगल गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नहिं धूलिका प्रवेशा ।
नहिं शूल पन्थ ऐसा ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।६।।
ॐ ह्रीं ‘मा-रग’ गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अर अध-मागध भाषा ।
शिशु-वृद्ध-गम्य आसाँ ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।७।।
ॐ ह्रीं भाष अध-मागध गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुर-रक्ष, सहस-आरे ।
वह धर्म-चक्र चाले ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।८।।
ॐ ह्रीं अग्र धर्मचक्र गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तज वैर सभी प्राणी ।
इक घाट पिये पानी ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।९।।
ॐ ह्रीं ‘मै-त्र’ ‘गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झिर जल-सुगन्ध न्यारी ।
आनन्दित नर-नारी ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१०।।
ॐ ह्रीं मोहक गन्धोदक गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अर गन्ध-मन्द पवना ।
आनन्द यथा ‘दिव’ ना ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।११।।
ॐ ह्रीं ह-वा…वा-ह गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झुक झूम रहा मनुआ ।
अपने भीतर कछु…आ ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१२।।
ॐ ह्रीं साध आह्लाद गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
देवों ने रचे कमल ।
नव सुवर्ण सहस्र दल ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१३।।
ॐ ह्रीं पद पद्म गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आदर्श भू निराली ।
होली मनी दिवाली ।।
तुम चरणन लगी लगन ।
ले लो नमि-नाथ शरण ।।१४।।
ॐ ह्रीं फर्श आदर्श गुण मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नभ निर्मल दिश् ‘सुर’ ‘ऋत’ ।
द्रव सुपथ भाष-वृष-वृत ।।
मैत्री जल-गन्ध पवन ।
‘नन्दन’-गुल भू दर्प’ण ।।
जल, चन्दन, फल, तण्डुल ।
चरु-अरु वन-नन्दन गुल ।।
भेंटूँ सुगन्ध ज्योती ।
हित स्वानुभुवन मोती ।।
ॐ ह्रीं चतुर्दश देव-कृतातिशय मण्डिताय
श्री नमि जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला लघु चालीसा
दोहा
इक सहाय कलि-काल में,
भगवन् अरहन नाम ।
करें नाम भगवान् के,
आओ सुबहो-शाम ।।
कुछ साधो ऐसा दिन ।
आ-‘दर्श’ स्वप्न दें जिन ।।
अर स्वर्ण-सुहाग नहीं ।
मण-काञ्चन जोग यही ।।१।।
जिन-दर्शन शिव-शिविका ।
जिन-दर्शन रथ-दिवि का ।।
‘पवि’ दर्शन-जिन-राई ।
‘गिर’-पाप धरा-साई ।।२।।
जिन दर्शन पवमाना ।
घन पापन अवसाना ।।
जिन दर्श मोर वाणी ।
गुम पाप-अहि कहानी ।।३।।
जिन दर्शन सूर समाँ ।
निरसन अज्ञान-अमा ।।
जग-जाहिर मंगल-कर ।
जिन-जाप अमंगल-हर ।।४।।
कर लेते आप सदृश ।
जिन महिमा बढ़-पारस ।।
देते वगैर याँचे ।
जिन कल्प-वृक्ष साँचे ।।५।।
लग पाँव खुला द्वारा ।
मुनि कुन्द-कुन्द ग्वाला ।।
बढ़ चला चीर देखा ।
सिंह महावीर लेखा ।।६।।
चित्-चोर चोर-अंजन ।
सिर-मौर दोर-चन्दन ।।
अगनी बदली जल में ।
अहि बदले लर-गुल में ।।७।।
सूली का सिंहासन ।
अधपति नागिन-नागन ।।
बुढ़िया लुटिया चमकी ।
कुटिया सुगन्ध गमकी ।।८।।
दिव व्याध काग ‘पल’ तज ।
शिव अहि, कपि, नकुल सहज ।।
मेंढ़क विमान वासी ।
शचि कल-शिव अधिशासी ।।९।।
महिमा अपार तेरी ।
तव थव शिशु-हट मेरी ।।
लोपूँ सो निज माया ।
रखना बनाय छाया ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री नमि जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘दोहा’
बड़ी और कोई नहीं,
यही अखीर मुराद ।
जिह्वा पर नर्तन करें,
नाम आप दिन-रात ।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
‘आरती’
नमि-नाथ भगवान् ।
मेरे नमि-नाथ भगवान् ।।
उतारूँ आरतिया ।
निहारूँ मूरतिया ।।
करुणा दया निधान,
मेरे नमि-नाथ भगवान् ।
विजय-राज नृप राज दुलारे ।
मात वर्मिला नयन सितारे ।।
च्युत अपराज विमान ।
जनमें मिथिला आन ।।
करुणा दया निधान,
मेरे नमि-नाथ भगवान् ।
जान विष’य विष रस्ता मोड़ा ।
रत्नत्रय से रिश्ता जोड़ा ।।
साध सहज सद्-ध्यान ।
पाया केवल ज्ञान ।।
करुणा दया निधान,
मेरे नमि-नाथ भगवान् ।
सार्थक नाम आप समशरणा ।
वैर छोड़ बैठे सिंह हिरणा ।।
कर जन-जन कल्याण ।
बाद चले शिव थान ।।
करुणा दया निधान,
मेरे नमि-नाथ भगवान् ।
नमि-नाथ भगवान् ।
मेरे नमि-नाथ भगवान् ।।
उतारूँ आरतिया ।
निहारूँ मूरतिया ।।
करुणा दया निधान,
मेरे नमि-नाथ भगवान् ।
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