वर्धमान मंत्र
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘पूजन’
कुन्थु भगवन् ! तुम हो, जीवन हमारे ।
मैं जिऊँ तो जिऊँ कैसे, बिन तुम्हारे ।।
हूँ मछली मैं, तुम पानी हो ।
तुम हमारी जिन्दगानी हो ।।
मैं पलकें बिछाऊँ, तुम्हें मन से बुलाऊँ ।
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
हो चले हैं नम, ये नयन हमारे ।।
ॐ ह्रीं श्री कुन्थ जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री कुन्थ जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री कुन्थ जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
हाय ! बटुआ खाली ।
छिन चली दीवाली ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
हृदय सुमरण जोडूँ ।
धार चरणन छोडूँ ।।
ॐ ह्रीं दारिद्र निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निकलते रस्ते ना ।
आ रहे रिश्ते ना ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
मगन पूजन विरचूँ ।
चरण चन्दन चर्चूं ।।
ॐ ह्रीं वैवाहिक बाधा निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भाग बच्चे फूटे ।
काम धंधे रुठे ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
न कम, भर-भर थाली ।
चढ़ाऊँ धाँ शाली ।।
ॐ ह्रीं आजीविका-बाधा निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
गली-कूचे किस्से ।
दाग चूनर हिस्से ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
पुष्प नन्दन न्यारे ।
चढ़ाऊँ तुम द्वारे ।।
ॐ ह्रीं अपकीर्ति निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वार खोलें यम के ।
रोग सब आ धमके ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
सुगन्धित मनहारी ।
चढ़ाऊँ चरु थाली ।।
ॐ ह्रीं मारी बीमारी निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भाँत तोते रटता ।
प्रात माथे हटता ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
दीप जगमग मोती ।
जगाऊँ घृत ज्योती ।।
ॐ ह्रीं अल्प बुद्धि निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नजरिया मायावी ।
धूल-मोहन हावी ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
डूब साधूँ गहरी ।
धूप खेऊँ विरली ।।
ॐ ह्रीं टुष्टविद्या निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्राण से प्यारी जो ।
चीज खो चाली वो ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
थाल ऋत-फल वाली ।
भिंटाऊँ दे ताली ।।
ॐ ह्रीं इष्ट वियोग निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
राह काँटे पाई ।
‘शु-साइड’ मन भाई ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
अर्घ सार्थक नामी ।
तुम्हें भेंटूँ स्वामी ।।
ॐ ह्रीं अपमृत्यु-अल्पमृत्यु निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
=कल्याणक-अर्घ=
मिले निश-दिन रोती ।
सून बहुरी गोदी ।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
गर्भ तुम महतारी ।
एक भव अवतारी ।।
ॐ ह्रीं श्रावण कृष्ण दशम्यां
गर्भ कल्याणक प्राप्ताय
अकुटुम्ब बाधा निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जन्म मानस नाता ।
पाप-झष चुन ‘जाता’ ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
मेर नभ छाया है ।
न्हवन तुम पाया है ।।
ॐ ह्रीं वैशाख शुक्ल प्रतिपदायां
जन्म कल्याणक प्राप्ताय
मानस विकार निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भाव दीक्षा होते ।
नींद खुलते खोते ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
केश तुम पा झोली ।
क्षीर खेले होली ।।
ॐ ह्रीं वैशाख शुक्ल प्रतिपदायां
दीक्षा कल्याणक प्राप्ताय
सिद्ध साक्षि दीक्षा बाधा निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कर्ज सिर पे भारी ।
चले न दुकाँ म्हारी ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
तुम चरण रज लागी ।
समशरण बड़भागी ।।
ॐ ह्रीं चैत्र-शुक्ल-तृतीयां
ज्ञान कल्याणक प्राप्ताय
व्यापार बाधा निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वैर बन्धुन साधा ।
करूॅं क्या मैं नादाँ ।।
मत भुलाओ,
आ भी जाओ, अब आ भी जाओ,
तुम्हें पा शिव नारी ।
मनाये दीवाली ।।
ॐ ह्रीं वैशाख-शुक्ल-प्रतिपदायां
मोक्ष कल्याणक प्राप्ताय
बन्धुजन-कृत-बाधा निवारकाय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘विधान-प्रारंभ’
कुन्थ रखैय्या ।
‘एक’ खिवैय्या ।।
पार उतारो, भव-जल-नैय्या ।।
ॐ ह्रीं श्री कुन्थ जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री कुन्थ जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री कुन्थ जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
‘बीजाक्षर सहित मूल नवार्घ’
जय अरिहन्ता ।
सिद्ध अनन्ता ।
सूरि पाठका, जय निर्ग्रन्था ।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
अक्षर असिआ उसा नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अरिहन सिद्धा ।
श्रमण प्रसिद्धा ।
मंगल करुणा, धर्म विशुद्धा ।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं ए ऐ ओ औ अं अः
अक्षर चतुर्विध मंगलाय नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अरिहत बुद्धा ।
अभिमत सिद्धा ।
उत्तम यति, मत दया-नबद्धा ।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अक्षर चतुर्विध लोकोत्तमाय नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अरि विध्वंसा ।
अक्षर वंशा ।
शरण हंस-मत, धर्म अहिंसा ।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अक्षर चतुर्विध शरणाय नमः
दक्षिण-दिशि अर्घ निर्वापमिति स्वाहा ।।
ज्ञान नवीना ।
सुख अनचीना ।
दर्श नन्त बल, निज लवलीना ।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अक्षर कुन्थ जिनेन्द्राय नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘भा’ हर-दीठा ।
झिर, गुल, पीठा ।
तूर, छतर, तर, चामर, गीता ।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अक्षर कुन्थ जिनेन्द्राय नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामिति स्वाहा ।।
रूप सुहाना ।
कोकिल-वाणा ।
निर्मल, संहनन ‘अर’ संस्थाना ।।
लोहित श्वेता ।
विरहित श्वेदा ।
गन्ध ‘अतुल’ बल, लखन समेता ।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अक्षर कुन्थ जिनेन्द्राय नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
थिर नख केशा ।
सुथिर निमेषा ।
दया चार-मुख, गिर्-सर्वेशा ।।
सुभिख समाया ।
अभुक् न छाया ।
गगन-गमन, ‘अर’ मूठ न माया ।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अक्षर कुन्थ जिनेन्द्राय नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘ऋत’, वाताशा ।
शरद् अकाशा ।
मुख दर्प’ण भू, मैत्री, भाषा ।।
‘सुर’, जल-गन्धा ।
दिश् अन पन्था ।
धर्म-चक्र, गुल, स्वर्ण सुगन्धा ।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अक्षर कुन्थ जिनेन्द्राय नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
प्रथम वलय पूजन विधान की जय
*अनन्त चतुष्टय*
दूर अंधेरा ।
सुबह सबेरा ।
वन्त नन्त-ज्ञाँ, वन्दन मेरा ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्त-ज्ञान मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विमोह हन्ता ।
सौख्य समन्ता ।
सुख अनन्त वाँ, नमन अनन्ता ।।२।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दर्शा-भरणा ।
दर्शा-वरणा ।
कर्म-घात आदर्शा करुणा ।।३।।
ॐ ह्रीं अनन्त-दर्शन मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अनन्-तराया ।
अनन्त राया ।
नन्त वीर्य वाँ, पद सिर नाया ।।४।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ज्ञान नवीना ।
सुख अनचीना ।
दर्श नन्त बल, निज लवलीना ।।
जल, फल, गन्धा ।
दीप, सुगन्धा ।
चरु-अरु भेंटूँ, मेंटन बन्धा ।।
ॐ ह्रीं अनन्त-चतुष्टय मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान की जय
*अष्टप्रातिहार्य*
कोटिक भाना ।
सोम समाना ।
भा-मण्डल, भव-ताना बाना ।।१।।
ॐ ह्रीं भामण्डल मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जन मन हारी ।
नन्दन क्यारी ।
झिर गुल खुशबू चन्दन न्यारी ।।२।।
ॐ ह्रीं पुष्प-वृष्टि मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मणि जुत कोना ।
भव्य सलोना ।
सिंहासन तुम, सुगन्ध सोना ।।३।।
ॐ ह्रीं सिंहासन मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दिश् दश गाजे ।
बाजे बाजे ।
सद्धर्माधिप, यहाँ विराजे ।।४।।
ॐ ह्रीं देवदुन्दुभि मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ऊपर शीशा ।
चल निशि दीसा ।
चीन छतर त्रय, त्रिजग अधीशा ।।५।।
ॐ ह्रीं छत्र-त्रय मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
आन पधारे ।
तारण हारे ।
तर अशोक तर, वारे न्यारे ।।६।।
ॐ ह्रीं वृक्ष अशोक मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छव ‘धुनि-धारा’ ।
अर ‘घन’ चारा ।
चँवर लिये सुर, ‘वसु-गुण-चारा’ ।।७।।
ॐ ह्रीं चामर मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पवर्ग नाता ।
स्वर्ग प्रदाता ।
तुम धुन ‘पापरु-पुन’ व्याख्याता ।।८।।
ॐ ह्रीं दिव्य-ध्वनि मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘भा’ हर-दीठा ।
झिर, गुल, पीठा ।
तूर, छतर, तर चामर, गीता ।।
जल, फल, गन्धा ।
दीप, सुगन्धा ।
चरु-अरु भेंटूँ, मेंटन बन्धा ।।
ॐ ह्रीं अष्ट-प्रातिहार्य मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान की जय
*दशजन्मातिशय*
‘गुल-रजनी’ का ।
चन्दा फीका ।
रूप आपका, आप सरीखा ।।१।।
ॐ ह्रीं सुन्दर, तन मन्दर मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
व्यञ्जन घी के ।
पिक, शुक फीके ।
बोल आपके, आप सरीखे ।।२।।
ॐ ह्रीं बोल अमोल मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भोग नवीने ।
छ्क मुख लीने ।
अनिहारा, ‘मनु’ कपूर कीने ।।३।।
ॐ ह्रीं निर्मल गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वजर नराचा ।
‘विरषभ’ वाँचा ।
संहनन अबकी, देह न काँचा ।।४।।
ॐ ह्रीं धन ! संहनन मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ताना-बाना ।
जाना-माना ।
सम चतु रस्र, ‘कि अब संस्थाना ।।५।।
ॐ ह्रीं छटा संस्थाँ मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लोहित क्षीरा ।
हृदय गभीरा ।
गंग-जमुन दृग् लख पर पीरा ।।६।।
ॐ ह्रीं सित शोणित मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
होड़ न नाते ।
दौड़ न आते ।
दिखें बिन्द्र-श्रम क्यों कर माथे ।।७।।
ॐ ह्रीं हीन पसीन गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुगन्ध घी की ।
केशर फीकी ।
गन्ध आपकी, आप सरीखी ।।८।।
ॐ ह्रीं सौरभ गौरव मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गज मतमाता ।
वश में आता ।
देख तुम्हें ‘भट-कोटि’ लजाता ।।९।।
ॐ ह्रीं संबल मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वज अभिलेखा ।
ध्वज, गज-रेखा ।।
शंख, चक्र अर लाञ्छन नेका ।।१०।।
ॐ ह्रीं ‘लाखन’ गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रूप सुहाना ।
कोकिल-वाणा ।
निर्मल, संहनन ‘अर’ संस्थाना ।।
लोहित श्वेता ।
विरहित श्वेदा ।
गन्ध ‘अतुल’ बल, लखन समेता ।।
जल, फल, गन्धा ।
दीप, सुगन्धा ।
चरु-अरु भेंटूँ, मेंटन बन्धा ।।
ॐ ह्रीं दश-जन्मातिशय मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चतुर्थ वलय पूजन विधान की जय
*केवलज्ञानातिशय*
नख-नख जैसा ।
रहता वैसा ।
नन्त-ज्ञान फिर, बढ़ें न केशा ।।१।।
ॐ ह्रीं नग केश-नख गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पलक न झपती ।
आत्म झलकती ।
ज्ञान-बाद, दृग् नासा टिकती ।।२।।
ॐ ह्रीं झलक अपलक गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पर-हित ‘भाई’ ।
सभा लगाई ।
कुछ हटके उर दया समाई ।।३।।
ॐ ह्रीं ‘मा-हन्त’ गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चित् चउ-खाने ।
शत्रु पुराने ।
समवशरण मुख चार दिखाने ।।४।।
ॐ ह्रीं चतुर्मुख प्रतिभा गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘भी’तर तीजीं ।
अँखिंयाँ भींजीं ।
ज्ञान-हुआ, सब विद्या रीझीं ।।५।।
ॐ ह्रीं ‘विद्यालय’ गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ईति विलाई ।
भीति बिदाई ।
सौ-योजन तक सुभिख दिखाई ।।६।।
ॐ ह्रीं इक सुभिख गुण
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भुक्ति न एका ।
श्रुति अभिलेखा ।
फूटी झिर ‘भी’ तर ‘अमि’ नेका ।।७।।
ॐ ह्रीं अन अनशन गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रवि शर्माया ।
तेज समाया ।
कहो पड़े अब क्यों कर छाया ।।८।।
ॐ ह्रीं छाया माया गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सहज प्रकाशा ।
गगन अकाशा ।
रचा जा रहा नव इतिहासा ।।९।।
ॐ ह्रीं ‘गगन-चरन’ गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुम उपसर्गा ।
कुसुम सुवर्गा ।
दूर न अब कुंकुम अपवर्गा ।।१०।।
ॐ ह्रीं ‘हन विघन’ गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
थिर नख केशा ।
सुथिर निमेषा ।
दया चार-मुख, गिर्-सर्वेशा ।।
सुभिख समाया ।
अभुक् न छाया ।
गगन-गमन, ‘अर’ मूठ न माया ।।
जल, फल, गन्धा ।
दीप, सुगन्धा ।
चरु-अरु भेंटूँ, मेंटन बन्धा ।।
ॐ ह्रीं दश केवल-ज्ञानातिशय मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पंचम वलय पूजन विधान की जय
*देवकृतातिशय*
एक तुम्हारा ।
साँचा द्वारा ।
सुरग लगाये जय-जय-कारा ।।१।।
ॐ ह्रीं स्वर सुर गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झीनी-झीनी ।
सुगन्ध भीनी ।
गिरती जल-धारा अनचीनी ।।२।।
ॐ ह्रीं मोहक गन्धोदक गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धूम न नाता ।
शरद् प्रभाता ।
दिश्-निर्मल मन खुद लग जाता ।।३।।
ॐ ह्रीं ‘दिशा’ गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धूल न सिकता ।
शूल न दिखता ।
पथ यूँ मिल अनुकूल न सकता ।।४।।
ॐ ह्रीं ‘मा-रग’ गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुर रखवाले ।
सहस्र आरे ।
धर्म-चक्र वह आगे चाले ।।५।।
ॐ ह्रीं अग्र धर्मचक्र गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुर नत शीशा ।
दुशत पचीसा ।
रचें पद्म पद-तर जगदीशा ।।६।।
ॐ ह्रीं पद पद्म गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फूल निराले ।
षट् ऋत वाले ।
फल आ झूले, तर झुक चाले ।।७।।
ॐ ह्रीं ऋत-ऋत गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नजूम वाणा ।
झूम जहाना ।
मन्द-मन्द चाले पवमाना ।।८।।
ॐ ह्रीं ह-वा…वा-ह गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुम घनश्यामा ।
शर-दभिरामा ।
स्वच्छ गगन महिमा दिव-धामा ।।९।।
ॐ ह्रीं मगन गगन गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मंगल गीता ।
अर संगीता ।
शीश देवि वसु-द्रव्य-पुनीता ।।१०।।
ॐ ह्रीं वस मंगल गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भाव विभोरा ।
माफिक मोरा ।
झूमें जन-जन ले मन कोरा ।।११।।
ॐ ह्रीं साध आह्लाद गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दर्पण धरती ।
दर्प-ण धरती ।
देव-मनीषा स्वर्ग उतरती ।।१२।।
ॐ ह्रीं फर्श आदर्श गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शत्रु जहाँ ना ।
मित्र जहाना ।।
पसरे भाव मैत्र मनमाना ।।१३।।
ॐ ह्रीं ‘मै-त्र’ ‘गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सादर सेवा ।
मागध देवा ।
अर्ध मागधी भाषा मेवा ।।१४।।
ॐ ह्रीं भाष अध-मागध गुण मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘सुर’,जल-गन्धा ।
दिश् अन पन्था ।
धर्म-चक्र, गुल ,स्वर्ण सुगन्धा ।।
‘ऋत’, वाताशा ।
शरद् अकाशा ।
मुख दर्प’ण भू, मैत्री, भाषा ।।
जल, फल, गन्धा ।
दीप, सुगन्धा ।
चरु-अरु भेंटूँ, मेंटन बन्धा ।।
ॐ ह्रीं चतुर्दश देव-कृतातिशय मण्डिताय
श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला-लघु चालीसा
‘दोहा’
‘जयतु-कुन्थ-जिन’ जाप की,
महिमा अपरम्पार ।
शचि, शचि-पति छू कर जिसे,
भव ‘फिर-के’ उस-पार ।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।१।।
बरसेगी, बरसी भी भगवत कृपा ।
सीता सती ने जाप यह जपा ।
पानी में बदले अंगार हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।२।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।३।।
बरसेगी, बरसी भी भगवत कृपा ।
सोमा सती ने जाप यह जपा ।
निकले जगह नाग, घट-हार हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।४।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।५।।
बरसेगी, बरसी भी भगवत कृपा ।
नीली सती ने जाप यह जपा ।
लगते ही पाँव, खुले किवाड़ हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।६।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।७।।
बरसेगी, बरसी भी भगवत कृपा ।
सति द्रोपदी ने जाप यह जपा ।
पंक्ति-चीर धागे खड़े अपार हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।८।।
कुन्थ-कुन्थ-कुन्थ, जय-कुन्थ जपो मन ।
शील शिरोमण ! विघ्न विमोचन ।।९।।
तुम अन्तर्यामी, क्या तुमसे छुपा ।
नम दृग् हमारी, दो बरषा कृपा ।।
‘सहजो निरा’कुल’ नमस्कार हैं ।
किस्से न यूँ सिर्फ दो चार हैं ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री कुन्थ जिनेन्द्राय
जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘दोहा’
बस इतना कर दीजिये,
कुन्थ नाथ जिन देव ।
‘श्रद्धा-सुमन’ चढ़ा सकूँ,
यूँ ही तुम्हें सदैव ।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
‘आरती’
आओ मिलके आरती करें ।
बाबा कुन्थ पल में विघ्न हरें ।।
माँ श्री देवी गर्भ पधारे ।
सूर-सेन-नृप राज दुलारे ।।
सुदि वैशाख प्रतिपदा न्यारी ।
नगर हस्तिनापुर अवतारी ।।
श्रद्धा-सुमन चरणों में धरें ।
बाबा कुन्थ पल में विघ्न हरें ।।
सत्रहवें तीर्थंकर स्वामी ।
कामदेव तेरहवें नामी ।।
नवे चक्रवर्ती अभिलेखा ।
कूर्मोनत पाँवन गज रेखा ।।
हित गन्धोदक नयन घट भरें ।
बाबा कुन्थ पल में विघ्न हरें ।।
गिना रूप ना, रुपया पैसा ।
राज तजा जीरण तृण जैसा ।।
चीर-चीर जा उतरे गहरे ।
ध्वजा अनंत चतुष्टय लहरे ।।
आ चला के अंगुली पकड़ें ।
बाबा कुन्थ पल में विघ्न हरें ।।
दे सम-शरण विरच इतिहासा ।
अन्त धाम-शिव किया निवासा ।।
ऋज गत सिर्फ समय इक लागा ।
भाग मुक्ति-राधा का जागा ।।
‘सहज निराकुल’ भक्त बन जुड़ें ।
बाबा कुन्थ पल में विघ्न हरें ।।
आओ मिलके आरती करें ।
बाबा कुन्थ पल में विघ्न हरें ।।
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