*वर्धमान मंत्र*
ॐ
णमो भयवदो
वड्ढ-माणस्स
रिसहस्स
जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ
आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम्
जूये वा, विवाये वा
रणंगणे वा, रायंगणे वा
थम्भणे वा, मोहणे वा
सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम्
अवराजिदो भवदु
मे रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते रक्ख-रक्ख स्वाहा
ते मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ।।
ॐ ह्रीं वर्तमान शासन नायक
श्री वर्धमान जिनेन्द्राय नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*पूजन*
माँगने से पहले दे दिया ।
माँ गिने ना, पहले दे दिया ।।
माँ का दिल रखते हो तुम ।
आँखें नम रखते हो तुम ।।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।
हाय बरपा, चौतरफा तम ।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री धर्म जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री धर्म जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
रखा क्या ? दूँ जिसपे ताले ।
छेद बटुए में हो चाले ।।
नीर लाया, आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं दारिद्र निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खा चली मँहगाई हल्दी ।
हाथ पीले न आज जल्दी ।।
लिये चन्दन, आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं वैवाहिक बाधा निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मील पत्थर से सर टेके ।
बाल-बच्चे घर पर बैठे ।।
लिये अक्षत, आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं आजीविका-बाधा निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।।
जिन्दगी में सूनर छाई ।
दाग चुनर मेरी खाई ।।
पुष्प लाया, आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं अपकीर्ति निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हाथ धो कर पीछे लागे ।
रोग करके यम को आगे ।।
लिये व्यंजन, आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं मारी बीमारी निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भाँत तोते रटकर सोता ।
पाठ सुबहो सपाट होता ।।
दीप लाया, आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं अल्प बुद्धि निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
धूल मोहन सिर पे हावी ।
प्रेत-व्यंतर दुठ मायावी ।।
धूप लाया, आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं टुष्टविद्या निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हो चली ओझल आँखों से ।
चीज थी प्यारी प्राणों से ।।
लिये श्री फल आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं इष्ट वियोग निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
राह मिट्टी काँटे काई ।
चाह ‘शू’-साइड मन भाई ।।
अर्घ लाया, आया दृग् नम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं अपमृत्यु-अल्पमृत्यु निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कल्याणक-अर्घ
गोद बहुरानी सूनी है ।
और दुनिया बातूनी है ।।
रतन बरषा सौ-भाग खम् ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं वैशाख शुक्ल अष्टम्यां
गर्भ कल्याणक प्राप्ताय
अकुटुम्ब बाधा निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बार इस जश मानस नाता ।
भाँत बगुले विरथा जाता ।।
न्हवन तुम ‘पाय’ सौ धरम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं माघ शुक्ल त्रयोशम्यां
जन्म कल्याणक प्राप्ताय
मानस विकार निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निकलना तो चाहूँ घर से ।
बोझ पर हो तो कम सर से ।।
आय तुम छाँव धन भाग द्रुम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं माघ शुक्ल त्रयोशम्यां
दीक्षा कल्याणक प्राप्ताय
सिद्ध साक्षि दीक्षा बाधा निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बड़ी मन्दी बाजारों में ।
पाँत किस्मत के मारों में ।।
एक सम शरण सभा मरहम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं पौष्य शुक्ल पूर्णिमा दिने
ज्ञान कल्याणक प्राप्ताय
व्यापार बाधा निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बन चले अपने ही वैरी ।
अत्त ढ़ायें न करें देरी ।।
समय इक पाय तुम शिव सदम ।
जयतु जयतु-जय भगवन् धरम ।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ-शुक्ल-चतुर्थ्यां
मोक्ष कल्याणक प्राप्ताय
बन्धुजन-कृत-बाधा निवारकाय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विधान प्रारंभ*
जयतु-जय-धर्म-जाप ।
तुरत क्षय कर्म-पाप ॥
संभालो सुनो सुमरनी |
मेंटने करनी भरनी ।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतर संवौषट्
(इति आह्वानन)
ॐ ह्रीं श्री धर्म जिनेन्द्र !
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री धर्म जिनेन्द्र !
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
‘बीजाक्षर नवार्घ’
नमन अर्हन अनन्त ।
नमन नित सिद्ध नन्त ।।
सूरि पाठक निर्ग्रन्था ।
नमन नव-कोटि अनन्ता ।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
अक्षर असिआ उसा नमः
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा। ।
सिद्ध गुण नन्त चार ।
सिद्ध गुण ‘अन’-अपार ।।
साधु विद्-मर्म मंगलम् ।
दया इक धर्म मंगलम् ।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं ए ऐ ओ औ अं अः
अक्षर चतुर्विध मंगलाय नमः
पूर्व-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
देव-अरिहन्त एक ।
मुक्ति-वधु कन्त नेक ।।
परम उत्तम मुनि-राजा ।
‘दया’ भव जलधि जहाजा ।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं क ख ग घ ङ
अक्षर चतुर्विध लोकोत्तमाय नमः
आग्नेय-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
एक अरिहन्त-द्वार ।
सिन्धु गुण नन्त पार ।।
सरसि अध्यात्म हंसा ।
शरण सद्धर्म अहिंसा ।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं च छ ज झ ञ
अक्षर चतुर्विध शरणाय नमः
दक्षिण-दिशि अर्घ निर्वापमिति स्वाहा ।।
नन्त दृग्, वीर्य नन्त ।
ज्ञान इक, सुख अनन्त ।।
चतुष्टय अनन्त धारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं ट ठ ड ढ ण
अक्षर धर्म जिनेन्द्राय नमः
नैऋत्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पीठ, तर, छतर, तूर ।
पुष्प, धुन, चँवर, नूर ।।
अष्ट प्रतिहारज धारी ।
जयतु ‘जिन धर्म’ तिहारी ।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं त थ द ध न
अक्षर धर्म जिनेन्द्राय नमः
पश्चिम-दिशि अर्घं निर्वपामिति स्वाहा ।।
लखन-अर, रिक्त श्वेद ।
‘अमल’ वच, रक्त श्वेत ।।
सबल, संहनन, संस्थाना ।
इतर-तन, रूप-सुहाना ।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं प फ ब भ म
अक्षर धर्म जिनेन्द्राय नमः
वायव्य-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छाँव-‘जम’ बिन-अहार ।
सुभिख, दय, वक्त्र-चार ।।
गमन-नभ, थिर-नख केशा ।
सिन्धु-विद्या, अनिमेषा ।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं य र ल व
अक्षर धर्म जिनेन्द्राय नमः
उत्तर-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मित्र, सुर, ऋत सुभाष ।
दिशा नभ ‘अन’ वताश ।।
धर्म ‘वृत’ गुल जल गन्धा ।
भूम दर्प’ण मुख-पन्था ।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श ष स ह
अक्षर धर्म जिनेन्द्राय नमः
ईशान-दिशि अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*प्रथम वलय पूजन विधान की जय*
अनन्त चतुष्टय
आवरण दर्श घात ।
आभरण दर्श ख्यात ।।
नन्त-दर्शन अधिकारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१।।
ॐ ह्रीं अनन्त-दर्शन मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विघ्नकर दुख प्रदाय ।
घात अरि अन्तराय ।।
नन्त बल अतिशय कारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।२।।
ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घात आवरण ज्ञान ।
अवतरण ज्ञान-भान ।।
ज्ञान-केवल अविकारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।३।।
ॐ ह्रीं अनन्त-ज्ञान मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कर्म मोहन विनाश ।
नन्त आनन्द राश ।।
गुण शगुन सुख भण्ड़ारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।४।।
ॐ ह्रीं अनन्त सुख मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
नन्त दृग्, वीर्य नन्त ।
ज्ञान इक, सुख अनन्त ।।
चतुष्टय अनन्त धारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।
ॐ ह्रीं अनन्त-चतुष्टय मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान की जय
अष्ट प्रातिहार्य
पाँखुडी गगन ओर ।
दृश्य मन-नयन चोर ।।
पुष्प झिर नन्दन क्यारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१।।
ॐ ह्रीं पुष्प-वृष्टि मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
स्वर्ग-शिव पोत एक ।
तत्त्व संजोत एक ।।
दिव्य सुर’भी गुणकारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।२।।
ॐ ह्रीं दिव्य-ध्वनि मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
‘तीस दो’ सुर कुमार ।
चौंर ले ‘साठ चार’ ।।
ढ़ोरते नित बलिहारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।३।।
ॐ ह्रीं चामर मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चित्र भव-सात साथ ।
भूल क्षय हाथ-हाथ ।।
वृत्त-भा अतिशय कारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।४।।
ॐ ह्रीं भामण्डल मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खचित मण कोन-कोन ।
रचित धन भौंन सोन ।।
सिंहासन जन-मन हारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।५।।
ॐ ह्रीं सिंहासन मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सार्थ नामा अशोक ।
सुसारथ-वाह मोख ।।
छाँव तरु भव-गद हारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।६।।
ॐ ह्रीं वृक्ष अशोक मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चपल सिर छत्र तीन ।
राज इक छत्र चीन ।।
कान्ति झालर रतनारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।७।।
ॐ ह्रीं छत्र-त्रय मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मृदंगा, ढ़ोल, शंख ।
बजें बाजे असंख ।।
बोल जन-करण विहारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।८।।
ॐ ह्रीं देवदुन्दुभि मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पीठ, तर, छतर, तूर ।
पुष्प, धुन, चँवर, नूर ।।
अष्ट प्रतिहारज धारी ।
जयतु ‘जिन धर्म’ तिहारी ।।
ॐ ह्रीं अष्ट-प्रातिहार्य-मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान की जय
जन्मातिशय
यदपि छक सुबह-शाम ।
भोग छप्पन ललाम ।।
तदपि अचरज अनिहारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१।।
ॐ ह्रीं निर्मल गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
घोल गुड़-घी अमोल ।
कर्ण-प्रिय ‘वर्ण’ बोल ।।
सरस वाणी हितकारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।२।।
ॐ ह्रीं बोल अमोल मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निराकुल अंतरंग ।
दया झिर अंग-अंग ।।
दुग्ध रग-रग संचारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।३।।
ॐ ह्रीं सित शोणित मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कलश श्रीफल समेत ।
शंख, गज रेख केत ।।
सहस लाखन पुन-धारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।४।।
ॐ ह्रीं ‘लाखन’ गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दौड़ कस्तूर दूर ।
होड़ जर चूर-चूर ।।
श्वेद विरहित तनधारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।५।।
ॐ ह्रीं हीन पसीन गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गन्ध चन्दन विलोप ।
नन्द-गुल भवन-कोप ।।
सुगन्धित देह निराली ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।६।।
ॐ ह्रीं सौरभ गौरव मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सौम्य शशि भले दाग ।
व्योम रवि भले आग ।।
चारु सत् शिव वपु-धारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।७।।
ॐ ह्रीं सुन्दर, तन मन्दर मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मुष्ठ बल ‘अचल’ ध्वस्त ।
अस्त-बल समद हस्त ।।
विभव बल वैभवशाली ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।८।।
ॐ ह्रीं संबल मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
वज्र विरषभ नराच ।
वर्ज संह-ननन काँच ।।
दिव्य संहनन इस बारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।९।।
ॐ ह्रीं धन ! संहनन मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दिव्य सम चतू-रस्र ।
दर्शनी दृग् सहस्र ।।
पोथि सामुद्रिक न्यारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१०।।
ॐ ह्रीं छटा संस्थाँ मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लखन-अर, रिक्त श्वेद ।
‘अमल’ वच, रक्त श्वेत ।।
सबल, संहनन, संस्थाना ।
इतर-तन, रूप-सुहाना ।।
ॐ ह्रीं दश-जन्मातिशय मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चतुर्थ वलय पूजन विधान की जय
केवल-ज्ञानातिशय
हस्त-गत रिद्ध-सिद्ध ।
ज्ञान केवल प्रसिद्ध ।।
सिन्धु विद्या अनगारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१।।
ॐ ह्रीं ‘विद्यालय’ गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
टिकी नासाग्र दृष्ट ।
प्रकट अवगम विशिष्ट ।।
लखे अपलक निधि न्यारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।२।।
ॐ ह्रीं झलक अपलक गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अधर उठ आसमान ।
चार अंगुल प्रमाण ।।
गमन निर्बाध अहा ‘री ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।३।।
ॐ ह्रीं ‘गगन-चरन’ गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रुकी नख केश वृद्ध ।
ज्ञान आरोग्य सिद्ध ।।
शगुन शुभ गुण भंडारी ।।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।४।।
ॐ ह्रीं नग केश-नख गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तलक योजन शतेक ।
सुभिख इक अमिट लेख ।।
दुरित मत, दुर-मत हारी ।।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।५।।
ॐ ह्रीं इक सुभिख गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सार्थ समशरण नाम ।
स्वार्थ गुम हिरण स्वाम ।।
कुटुम-सी वसुधा सारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।६।।
ॐ ह्रीं ‘मा-हन्त’ गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दिखे मुख सभा चार ।
लिखे इतिहास न्यार ।।
चतुर्मुख प्रतिभाशाली ।।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।७।।
ॐ ह्रीं चतुर्मुख प्रतिभा गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तेज ऐसा न और ।
भान थक चला दौड़ ।।
छाँह क्यों पड़ने वाली ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।८।।
ॐ ह्रीं छाया माया गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
काग सा मुख न कौर ।
खो चुके भाग-दौड़ ।।
विघ्न माया खो चाली ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।९।।
ॐ ह्रीं ‘हन विघन’ गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
झिर सुधा अंतरंग ।
वृथा भोजन प्रसंग ।।
तुम न अब कवलाहारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१०।।
ॐ ह्रीं अन अनशन गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
छाँव-‘जम’ बिन-अहार ।
सुभिख, दय, वक्त्र-चार ।।
गमन-नभ, थिर-नख केशा ।
सिन्धु-विद्या, अनिमेषा ।।
ॐ ह्रीं दश केवल-ज्ञानातिशय मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पंचम वलय पूजन विधान की जय
देव-कृतातिशय
दीखती एक झूम ।
दिखे न कहीं धूम ।।
शरद्-सी दिश्-दिश् न्यारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१।।
ॐ ह्रीं ‘दिशा’ गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मेघ ना आस पास ।
साफ सुथरा अकाश ।।
एक ऋत शरद् निराली ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।२।।
ॐ ह्रीं मगन गगन गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चले पवमान मन्द ।
अनचिनारू सुगन्ध ।।
झूमती दुनिया सारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।३।।
ॐ ह्रीं ह-वा…वा-ह गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गुम कहीं मन मुटाव ।
ताव गुमसुम तनाव ।।
शत्रुता बाजी हारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।४।।
ॐ ह्रीं ‘मै-त्र’ ‘गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भीतरी ‘सुर’ अवाज ।
यहाँ सद्धर्म राज ।।
जोर जयकार उचारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।५।।
ॐ ह्रीं स्वर सुर गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फूल ऋत-ऋत कमाल ।
झुक चली डाल-डाल ।।
जहाँ देखो हरियाली ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।६।।
ॐ ह्रीं ऋत-ऋत गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
अर्ध-मागध सुभाष ।
देव मागध प्रयास ।।
बाल-वृध सुगम निराली ।।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।७।।
ॐ ह्रीं भाष अध-मागध गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
इन्द्रपुरी यथा ख्यात ।
तथा ही दिव्य पाथ ।।
भाँत दर्पण अविकारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।८।।
ॐ ह्रीं फर्श आदर्श गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
निराकुल सहज डूब ।
कुल मिला के बखूब ।।
सहर्षित नर अर नारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।९।।
ॐ ह्रीं साध आह्लाद गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
देव गन्धर्व पाठ ।
द्रव्य मांगल्य आठ ।।
नृत्य सुर-तिय मनोहारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१०।।
ॐ ह्रीं वस मंगल गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
दूर दिख रही धूल ।
दूर तक नहीं शूल ।।
विभव पथ महिमा-शाली ।।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।११।।
ॐ ह्रीं ‘मा-रग’ गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
देव रक्षित सलील ।
सहस अर आठ तील ।।
चक्र सद्धर्म प्रचारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१२।।
ॐ ह्रीं अग्र धर्मचक्र गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रचें शत जुग पचीस ।
पद्य सुर नाय शीश ।।
सहस दल पद्म विहारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१३।।
ॐ ह्रीं पद पद्म गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सम-शरण धनिक दीन ।
लगा झिर झीन झीन ।।
सुगन्धित झिरे फुहारी ।
जयतु ‘जय धर्म’ तिहारी ।।१४।।
ॐ ह्रीं मोहक गन्धोदक गुण मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मित्र, सुर, ऋत सुभाष ।
दिशा नभ ‘अन’ वताश ।।
धर्म ‘वृत’ गुल जल गन्धा ।
भूम दर्प’ण मुख-पन्था ।।
ॐ ह्रीं चतुर्दश देव-कृतातिशय मण्डिताय
श्री धर्म जिनेन्द्राय
पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला लघु चालीसा
दोहा
भक्तों का ताँता कहे,
साचाँ तेरा द्वार ।
बिठा मुझे भी लो प्रभो,
भक्त-अनन्य कतार ।।
यूँ ही भक्त न करते याद ।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।।
सति रानी इक सीता नाम ।
अग्नि परीक्षा लीनी राम ।
सरवर में बदले अंगार ।
हाथ जोड़ बस किया प्रणाम ।।१।।
आशुतोष तुम पूर्ण मुराद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।२।।
बहु-रानी इक सोमा नाम ।
शील परीक्षा लीनी स्वाम ।।
नागों के बन चाले हार ।
हाथ जोड़ बस किया प्रणाम ।।३।।
आशुतोष तुम पूर्ण मुराद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।४।।
सति रानी इक द्रोपद नाम ।
शील परीक्षा लीनी दाम ।।
चीर जा खड़ा अछत कतार ।
हाथ जोड़ बस किया प्रणाम ।।५।।
आशुतोष तुम पूर्ण मुराद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।६।।
बहु-रानी इक नीली नाम ।
शील परीक्षा लीनी ग्राम ।।
पाँव लगे खुल पड़े किवाड़ ।
हाथ जोड़ बस किया प्रणाम ।।७।।
आशुतोष तुम पूर्ण मुराद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।८।।
परछाई से रहते साथ ।
गया न खाली आशीर्वाद ।।
‘सहज-निराकुल’ हाथ समाध ।
करते करुणा की बरसात ।।९।।
बरसे छप्पर फाड़ प्रसाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।
सुनते, तुम सुनते फरियाद ।
यूँ ही भक्त न करते याद ।।१०।।
ॐ ह्रीं श्री धर्म जिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
दोहा
माँ धरती अवतार है,
खातिर बाल गोपाल ।
द्वारे तुम सविनय खड़ा,
रखना मेरा ख्याल ।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
‘सरसुति-मंत्र’
ॐ ह्रीं अर्हन्
मुख कमल-वासिनी
पापात्-म(क्) क्षयं-करी
श्रुत(ज्)-ज्-ञानज्-ज्वाला
सह(स्)-स्र(प्) प्रज्-ज्वलिते
सरस्वति-मत्
पापम् हन हन
दह दह
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं क्षः
क्षीरवर-धवले
अमृत-संभवे
वं वं हूं फट् स्वाहा
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे
मम सन्-निधि-करणे ।
ॐ ह्रीं जिन मुखोद्-भूत्यै
श्री सरस्वति-देव्यै
अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*विसर्जन पाठ*
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।१।।
अञ्जन को पार किया ।
चन्दन को तार दिया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
नागों का हार किया ।।२।।
धूली-चन्दन-बावन ।
की शूली सिंहासन ।।
धरणेन्द्र देवी-पद्मा ।
मामूली अहि-नागिन ।।३।।
अग्नि ‘सर’ नीर किया ।
भगिनी ‘सर’ चीर किया ।।
नहिं तोर दया का पार ।
केशर महावीर किया ।।४।।
बन पड़ीं भूल से भूल ।
कृपया कर दो निर्मूल ।।
बिन कारण तारण हार ।
नहिं तोर दया का पार ।।५।।
( निम्न श्लोक पढ़कर विसर्जन करना चाहिये )
आरती
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ
आरती उतारुँ मैं, ढ़ोलक मजीरे साथ
लिये घृत दीपक हाथ,
आरती उतारूँ मैं, ढ़ोलक मजीरे साथ
माँ सुप्रभा दृग् सितार ।
नृप भानु-राजा दुलार ।।
श्रृंगार कुरु वंश माथ ।
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ
धन पुर-रतन अवतार ।
तप्त-स्वर्ण-भा मनहार ।।
चिह्न वज्र अंगुष्ठ पाद ।
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ
तज राज, घर-परवार ।
‘चीर’ चीर, केश-उखाड़ ।।
पूर्ण ज्ञान केवल मुराद ।
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ
समशरण धुनि ओंकार ।
अर ‘अर’-अघात घात चार ।।
‘सहजो निरा’कुल उपाध ।
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ
Sharing is caring!