(६१) ‘मुझसे हाई… को ?’ *’बाहर’ न जाओ जाओ तो आ ओढ़नी आओ* ‘मेरे साथ क…वीता’ *छतरी ऐसी-वैसी नहीं बतलाती जुवाँ गुजराती छै…तरी ‘छै’ यानि ‘कि है और ‘तरी’ यानि ‘कि तारने वाली न दिन खाली रात काली घटाटोप से […]
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(६१) ‘मुझसे हाई… को ?’ *’बाहर’ न जाओ जाओ तो आ ओढ़नी आओ* ‘मेरे साथ क…वीता’ *छतरी ऐसी-वैसी नहीं बतलाती जुवाँ गुजराती छै…तरी ‘छै’ यानि ‘कि है और ‘तरी’ यानि ‘कि तारने वाली न दिन खाली रात काली घटाटोप से […]
(५१) ‘मुझसे हाई… को ?’ *ए ‘री सहेली किरदार खुशबू वाला चुन’री* ‘मेरे साथ क…वीता’ *सुबह सुबह सिर उठा, सीना ताने रहने वाले फूल दूर दोपहर बाद पहर ही सिर झुकाते-झुकाते झुकाते-झुकाते गर्दन झुकाने लग जाते हैं कमर भी सच… […]
(४१) ‘मुझसे हाई… को ?’ *बौराई हवा पश्चिम है चुनरी है तो दम है* ‘मेरे साथ क…वीता’ *अद्भुत संख्या है ‘दो’ कुछ मिलता जुलता सा नामकरण कराया बुजुर्गों से दावानल ने अपना ‘दौ’ बुझाना मुश्किल हो जाता है जल जंगल […]
(३१) ‘मुझसे हाई… को ?’ *सुनो नज़र मिला सको कपड़े ‘कि यूँ पहनो* ‘मेरे साथ क…वीता’ *क्या क्या नहीं आता नजरों को लगना आता किसी […]
(२१) ‘मुझसे हाई… को ?’ *कपड़े नौका दे सकता छोटा सा भी छेद धोखा* ‘मेरे साथ क…वीता’ *कहते हैं खुद बखुद खतरे मैंने तो भिजाये थे खत ‘रे लेकिन शायद तूने ही ‘ख’ यानि’ कि आकाश से कहा ‘तिरे’ मतलब […]
(११) ‘मुझसे हाई… को ?’ *ओ लाडो, सूट हैं फूल अगर तो खुश्बू चूनर* ‘मेरे साथ क…वीता’ *आँख से नाक के भारी दाम यूँ ही थोड़े ही स्वर्ग ने ‘रख लेने […]
(१) ‘मुझसे हाई… को ?’ *जीत चुनरी से हमारी नजर-नजर-काली* ‘मेरे साथ क…वीता’ *नजर हे मेरे ईश्वर ! जमाने जमाने जो खोटी थी मैं जब छोटी रख दी थी आई ने टिकली काली मैं हुई क्या बड़ी अपने पैरों पे […]
वर्धमान मंत्र ॐ णमो भयवदो वड्ढ-माणस्स रिसहस्स जस्स चक्कम् जलन्तम् गच्छइ आयासम् पायालम् लोयाणम् भूयाणम् जूये वा, विवाये वा रणंगणे वा, रायंगणे वा थम्भणे वा, मोहणे वा सव्व पाण, भूद, जीव, सत्ताणम् अवराजिदो भवदु मे रक्ख-रक्ख स्वाहा ते रक्ख-रक्ख स्वाहा […]
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