परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 75 पूर्णा इन्द । विद्या सिन्ध।। नमो नमः … नमो नमः श्री मति नन्द । पूर्णा इन्द । विद्या सिन्ध । नमो नमः … नमो नमः ।।स्थापना।। भेंटूँ नीर । […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 75 पूर्णा इन्द । विद्या सिन्ध।। नमो नमः … नमो नमः श्री मति नन्द । पूर्णा इन्द । विद्या सिन्ध । नमो नमः … नमो नमः ।।स्थापना।। भेंटूँ नीर । […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 74 तज शरण पाप की । रज चरण आपकी ।। पा गया जो मन मेरा । लो बदल गया जीवन मेरा ।। तज डगर, पाप की । इक नजर आपकी […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 73 आशीर्वाद में । जादू इनके हाथ में ।। जिसके साथ में, सदगुरु उसके वारे-न्यारे ।। जग से न्यारे । सबसे प्यारे ।। शरण सहारे । तारण हारे ।। विद्यासागर […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक-72 मुझसे रूठा सबेरा । अंधेरे ने मुझे घेरा ।। न किसी और का । अय ! मेरे गुरु सा ।। है मुझे सहारा, सिर्फ तेरा ।।स्थापना।। हँस-हँस बाँधे पूर्व कर्म […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 71 नमो नमः … नमो नमः श्री गुरु विद्या, नमोः नमः मन्त्र जपो मन, सन्त शिरोमण, श्री गुरु विद्या, नमो नमः ।।स्थापना।। करके अर्पण । जल घट कंचन ।। मन्त्र […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 70 सदय हृदय । निलय विनय ।। सुत सिन्ध-ज्ञाँ । सद्-गुरु विद्या । जयतु जय, जयतु जय ।।स्थापना।। भेंट नीर । हेत तीर ।। सानन्दना । सुत सिन्ध-ज्ञाँ । सदय […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 67 जयतु गौरवम् सदलगा । नन्दनम् श्री मन्त माँ ।। वन्दनम् सुत सिन्ध ज्ञाँ । जयतु गौरवम् सदलगा । लो हमें अपने रँग में रँगा ।।स्थापना।। नीर झार हाथ में […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 66 अकारण शिव साथिया । जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मन्दिर में । अय ! निर्झर दया । सिन्धु विद्या, जगे तुम नाम का दिया, मेरे मन मंदिर […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रमांक 65 संयम है उपहार जिन्हें गुरु, ज्ञान सिन्धु का । रूप सलोना हरने वाला, मान इन्दु का ।। मूक प्राणियों के प्राणों से, जिन्हें प्यार है । गुरु विद्या वे […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचितपूजन क्रमांक 64 पारस पत्थर तो, है पड़ता छुबोना ।तब कहीं जा कर, लोहा बनता है सोना ।जादुई चिराग जो, है पड़ता घिसना ।तब कहीं जाकर, पूरा होता है सपना ।पर अचरज बड़ा […]
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