परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 15
मंजिल जो तुम्हारी ।
मंजिल वो हमारी ।।
लो लगा हमें पीछे ।
ले चलो हमें खीचे ।।
दृग्-धारी अविकारी ।
ओ रत्नत्रय-धारी ।।
मंजिल जो तुम्हारी ।
मंजिल वो हमारी ।।
लो लगा हमें पीछे ।
ले चलो हमें खीचे ।।स्थापना।।
जिनके चरणन किया समर्पित,
जीवन अपना ।
जिन मन सा शुचि मन करने का,
मेरा सपना ।।
जग रूठे ना टूटूँ, टूटूँ
गुरु जो रूठें ।
यही प्रार्थना विद्या गुरु पद,
पद्य न छूटें॥ जलं॥
कहाँ मिलेगा इनके जैसा,
यति त्रिभुवन में ।
बाहर से जैसे वैसे ही,
अन्तर् मन में ।।
तरसूँ इनकी दया झिराती,
एक झलक को ।
चाहूॅं हों गुरु विद्या सिन्ध न,
दूर पलक को॥ चंदन॥
जिन्हें रुचे जैनी चर्या,
निर्दोष पालना ।
कब किससे सध सका सभी,
इक आत्म साधना ।।
प्रति-लिपि कुन्द-कुन्द भगवन् की,
कहता मैं तो ।
विद्या सूर दया कर भव भव,
भ्रमणा मैंटो ॥ अक्षतम्॥
चली काम की जिनके आगे,
कब मनमानी ।
भव तन भोग सनेह विनाशक,
जिनकी वाणी ।।
सदा ध्यान रहता, हूँ कौन,
कहाँ से आया ।
गुरु विद्या सागर चारित ने,
मुझे रिझाया ॥ पुष्पं॥
जिन सा समता रस रसिया ना,
त्रिभुवन कोई ।
पीछी पीछे लगा कहॉं वन,
निर्जन रोई ।।
संघ बना गुरुकुल इनने गुरु,
सपना पूरा ।
हुआ पूर्ण कब गुरु बिन शिव,
संकल्प अधूरा ॥ नैवेद्यं॥
बदल कलाएँ जीत सका कब,
इनसे चन्दा ।
बाँध सका कब कहाँ इन्हें विष-
विषयन फन्दा ।।
ये जग पंक रहे पंकज-से,
अद्भुत न्यारे ।
विद्या सागर चरणा कलि भव,
जलधि किनारे ॥ दीपं॥
अच्छी लगे डाँट खानी भी,
जिनसे भाई ।
जिन बिन शिव राधा तड़फे,
जल बिन झष घाँई ।।
जिन्हें हृदय का राज दिया ना ,
जग किस किसने ।
किया न तिन गुरु विद्या ,
जय-कारा किस दिश ने ॥ धूपं॥
जिनकी सारी क्रियाएँ,
मन को भातीं हैं ।
निस्पृहता के ढोल बजा,
गाने गातीं हैं ।
कहे नग्नता जिनकी जग-
बुद बुद के जैसा।
डरो न संयम धारो विद्या-
गुरु सन्देशा ॥ फलं॥
जिनका ध्यान सहज ही ,
विपदाएँ हरता है।
जिन्हें रिझाने वाला कब,
किससे डरता है ।
जिनसे जैन धर्म का कलि,
झंडा है ऊँचा ।
तिन गुरु विद्या करुणा का ,
ऋणि विश्व समूंचा ॥ अर्घं॥
दोहा=
सिंधु ज्ञान बिन ठौर ना,
जिनकी मति का और ।
गुरु विद्या छूने तिन्हें,
लगा मन रहा दौड़ ।
॥ जयमाला ॥
जन्म सदलगा ग्राम नमस्ते ।
दीन बन्धु निष्काम नमस्ते ।।
श्रीमति मात प्रसूत नमस्ते ।
श्री मल्लप्पा पूत नमस्ते ।।
सिंधु ज्ञान आशीष नमस्ते ।
जप तप संयम शीश नमस्ते ।।
श्रमण संघ सरताज नमस्ते ।
पन पापन सिर गाज नमस्ते ।।
सम्यक् दायक वीर नमस्ते ।
विध्वंसक पर पीर नमस्ते ।।
रन्तत्रय सन्लीन नमस्ते ।
गुरु आज्ञा आसीन नमस्ते ।।
समय सार सम्पन्न नमस्ते ।
भक्त ज्ञान गुरु नन्य नमस्ते ।।
करुणा धन संयुक्त नमस्ते ।
वसु विध मद निर्मुक्त नमस्ते ।।
धर्म अहिंसा केतु नमस्ते ।
कलि भव सागर सेतु नमस्ते ।।
मूकमाटी कृतिकार नमस्ते ।
शिष्यन चरिताधार नमस्ते ।।
शत्रु मित्र सम भाव नमस्ते ।
भावी पत शिव गाँव नमस्ते ।।
निजानन्द घन पिण्ड नमस्ते ।
विगत शल्ल गत दण्ड नमस्ते ।।
निर्विकार निर्भीक नमस्ते ।
जिन,श्रुत,गुरु नजदीक नमस्ते ।।
संकट समय सहाय नमस्ते ।
दीक्षा नगन प्रदाय नमस्ते ।।
सकल प्रमाद विहीन नमस्ते ।
थुति-रत संध्या तीन नमस्ते ।।
कथनी करनी एक नमस्ते ।
विरचित कविता नेक नमस्ते ।।
गुरु विद्याष्टक सुध-बुध धर के ,
जो उर में धरते हैं ।
विघ्न उपद्रव सहज किनारा,
झट उनसे करते हैं ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा=
कहें कहाँ तक आप है,
गुणी नंत गुरुदेव ।
दीजें वर यूँ ही सदा,
करूँ आपकी सेव ।
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