परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 25
गुरुकुल बना संघ अपना ।
पूर दिया गुरु का सपना ।।
संघ न इनका गुरुकुल बस ।
कमा चला हेै कुल-गुरु जश ।
श्री गुरुवर विद्या सागर ।
कोटि कोटि वन्दन सादर ।।
चरणों में रख लो अपने ।
मेरे और नहीं सपने ।।स्थापना।।
जिनके गुरुकुल बस करना है,
नकल अकेली ।
शिवमग असफल वे जिनने की,
अकल सहेली ।
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।।जलं।।
कहाँ अंक मिलने की जिनके,
गुरुकुल आशा ॥
अंक न लेते लगती उनके,
हाथ निराशा ।
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।। चंदन।।
मन निकाल रख देना पड़ता
जिनके गुरुकुल ।
मन बिन तन, चालीस किलो कम
देखो भी तुल ॥
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।। अक्षतम्।।
जिनके गुरुकुल कोई कहाँ,
परीक्षा लेता ।
कब हीरा…राही जो नहीं,
परीक्षा देता ।
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।। पुष्पं।।
दीक्षा भी ना दी जाती है,
गुरुकुल जिनके ।
अविचल दीक्षार्थी जो भाग्य,
सुलटते उनके ॥
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।।नैवेद्यं।।
रोक लगी जिनके गुरुकुल,
सम्वादों पे भी ।
हुये आज तक विसम्वाद,
सम्वादों से ही ।।
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।। दीपं।।
बनते है जिनके गुरुकुल,
पहले पद-यात्री ।
पद यात्री बिन बने सुशोभित,
कब कर-पात्री ॥
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।।धूपं।।
ध्यान विपाक विचय जिनके,
गुरुकुल सम्बल है ।
श्वान-वृत्ति बिसराना कलि,
क्या कम मुश्किल है ।।
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।। फलं।।
राम बाण औषध जिनके,
गुरुकुल है समता ।
रोगी वही समाई जिसके,
तन मन ममता ।
जगत दूसरा सा ही यूँ,
गुरुकुल है जिनका ।
सुत गुरु ज्ञान शिष्य बन चलना,
स्वप्न न किनका ।। अर्घं।।
*दोहा*
निष्पृह शिक्षक है कहाँ,
जिन सा त्रिजग मँझार ।
शिष्य ज्ञान-गुरु वे तिन्हें,
वन्दन बारम्बार ॥
॥ जयमाला ॥
ये शिक्षक है बड़े निराले,
शिक्षा दें वसु याम जो ।
एक भक्त वत्सल गुरु विद्या सागर
तिन्हें प्रणाम हो ।।
दूध, मलाई वाला, किस शिशु,
देना इनको ज्ञात है ।
ज्ञात इन्हें किस दूध मलाई की,
विदाई की बात है ।।
यूँ अपनी अपनी माँ जैसे
पालन-हार ललाम जो ।
एक भक्त वत्सल गुरु विद्या सागर
तिन्हें प्रणाम हो ।।
बाहिर करने खोट पीटना कहाँ,
इन्हें मालूम है ।
पता इन्हें कब हाथ लगाना,
कहाँ कौन मासूम है ॥
कुम्भकार से यूँ है भाग्य विधाता,
इक अभिराम जो ।
एक भक्त वत्सल गुरु विद्या सागर
तिन्हें प्रणाम हो ।।
कब क्या देना किससे कहाँ,
बचाना इनको ध्यान है ।
जिन्हें पता कब काँट-काँट में,
छुपा हुआ कल्याण है ॥
बागवान सारीखे यूँ है,
सरंक्षक निष्काम जो ।
एक भक्त वत्सल गुरु विद्या सागर
तिन्हें प्रणाम हो ।।
कहाँ भँवर तूफान कहाँ,
कब रखना है पग फूँक के ।
जिन्हें पता पनडुबि हो सकती,
डुप्प जरा भी चूक के ।।
कर्णधार सम यूँ, हित कारक,
भुवनत्रय निर्दाम जो ।
एक भक्त वत्सल गुरु विद्या सागर
तिन्हें प्रणाम हो ।।
कहें कहाँ तक गाथा इनकी,
कहीं ओर ना छोर है ।
कहो कहाँ कब मंजिल पहुँची,
अथक मृगन की दौड़ है ॥
जग के हों चाहें कोई भी,
मेरे तो शिव धाम जो ।
एक भक्त वत्सल गुरु विद्या सागर
तिन्हें प्रणाम हो ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*दोहा*
अध्यापक इक बार तो,
करके इनको देख ।
कहना गर, सुधरे नहीं,
बिगड़ी जीवन रेख ।।
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