पूजन क्रंमाक – 12
तुम हो तो मैं हूँ ।
मछली मैं,जल तू ।
गुल मैं,तुम खुशबू ।।
जो तुम हो तो मैं हूँ ।
मैं भी नहीं वरना ।
लो मुझको अपना ।।
ना और आरज़ू ।
जो तुम हो तो मैं हूँ ।। स्थापना ।।
निरख निरख पग धरना जिनको आता है ।
कहाँ प्रमाद तनिक भी जिन्हें सुहाता है ।।
जिनने धन समता धन माना जीवन में ।
जल लाया श्रुत सिन्धु ज्ञान तिन चरणन मैं ॥।।जलं।।
हित-मित मदु मिसरी जिनकी वाणी भाई ।
जिनको कल पाना त्रिभुवन की ठकुराई ॥
आज एक जो यतियों के स्वामी जग में ।
धरें सिन्धु विद्या वे मुझको शिव मग में॥।।चंदन।।
संकट जिनके नाम मात्र से टल जाते ।
पाँत भक्त वत्सल में सर्वप्रथम आते ।।
भक्त जिन्हें माने हैं श्वासों का स्वामी ।
गुरु विद्या वे करें अछत पद आसामी ॥ ।।अक्षतं।।
कब प्रतिद्वन्दी का जिननें प्रतिकार किया ।
आया दुश्मन भी उसका सत्कार किया ॥
मन्मथ कब सिर पे चढ़ के बोला जिनके ।
गुरु विद्या वे हर लेवें कलमष मन के ॥ ।।पुष्पं।।
जिनके शिष्य बड़े ही आज्ञाकारी हैं ।
शिष्याएँ पदायात्रिन् आत्म-विहारी हैं ॥
मति जिनकी,मराल सी दिव्य निराली है ।
कब उन गुरु करुणा बिन मनी दिवाली है ॥।।नैवेद्यं।।
बाहर जाने का कब वक्त जिन्हें घर से ।
कहाँ नेह जिनको अम्बर आडम्बर से ॥
पदयात्री,करपात्री ना दूजा इन सा ।
गुरु विद्या वे अपना,पूर्ण करें मंशा ॥ ।।दीपं।।
कहाँ करें मद साहस जिन्हें पकड़ने का ।
कहाँ करे बद साहस जिन्हें जकड़ने का ।।
संयम तप व्रत जिनका छुये हिमालय है ।
अगर साथ वे गुरु विद्या तो क्या भय है ॥।।धूपं।।
शत्रु मित्र आशीष एक जिनसे पाते ।
देना बस आवाज सामने आ जाते !
चाह कहाँ अधिकार आप करतब पालें ।
गुरु विद्या वे पाँव छाँव में बैठा लें ॥ ।।फलं।।
जिनका यशोगान देव भी गाते हैं ।
दुख औरों का अपनी आँख भिंजाते हैं ।।
आस-पास जिन दिव-शिव-धाम रहा मेरा ।
गुरु विद्या सिन्धु वे हरें जगत् फेरा ॥ ।। अर्घं।।
दोहा=
जिन्हें नयन भर लख सका,
ऐसा कौन पुमान ।
चरण ज्ञान गुरु शिष्य वे,
भव-सागर जल-यान ॥
॥ जयमाला ॥
गुरु विद्या नैया मेरी उस पार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
चुभे शूल सी बोली जहर उगलती हो ।
चाहे गज मुनि सी सिर सिगड़ी जलती हो ।।
साध दिगम्बर भाव हृदय श्रृंगार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
गुरु विद्या नैया मेरी उस पार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
चाहे सनत साधु सी कुष्ट वेदना हो ।
अनुकूलताओं की चाहे,गंध ना हो ॥
रग-रग भाव आत्म एक संचार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
गुरु विद्या नैया मेरी उस पार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
चाहे भॉंत पाण्डवन आभूषण ताते ।
भले शत्रु आ के मेरा तन भी घाते ॥
झिर भीतर रस सम रस मूसल धार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
गुरु विद्या नैया मेरी उस पार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
भस्मक नाम समंत-भद्र सी बीमारी ।
विमुख हो चले चाहे ये दुनिया सारी ।।
जिन,जिन श्रुत, जिन-श्रुत सुत विनय अपार भरो।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
गुरु विद्या नैया मेरी उस पार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
भले उपद्रव सात शतक मुनि सा आये ।
मुनि सुकमाल भांति श्यालनी तन खाये ॥
केवल इक ज्ञायक स्वभाव विस्तार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
गुरु विद्या नैया मेरी उस पार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
भले विघ्न मुनि नंग-अनंग भाँति आवे ।
भले प्यास की तीव्र वेदना तड़फावे ।।
भाव सभी वैभाविक झट निस्सार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
गुरु विद्या नैया मेरी उस पार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
चाहे कोई दुर्जन आ अपकार करे ।
चाहे आ सज्जन कोई सत्कार करे ॥
सहज निराकुल भावन नयन सितार करो ।।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
गुरु विद्या नैया मेरी उस पार करो ।
मरणावीच समय समाध गल हार करो ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
दोहा=
क्या हमको जब है उन्हें,
सदा हमारा ख्याल ।
कहाँ डरे जब खेलता,
माँ की गोदी लाल ॥
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