- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 801
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।स्थापना।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ मण कलशे,
लबालब क्षीर सिन्ध जल से,
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।जलं।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ घट चन्दन,
मँगा देवों से वन-नन्दन,
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।चन्दनं।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ धाँ शाली,
साथ जय-कार, बजा ताली,
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।अक्षतं।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ नवल कवँल,
न ऐसे वैसे सहस्र दल,
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।पुष्पं।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ व्यंजन घृत,
और मिसरी अपूरब अमृत,
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।नैवेद्यं।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ दीपक मण,
ज्योत मारुत अगम्य धन धन,
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।दीपं।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ अगर-तगर,
चूर चन्दन, कस्तूर इतर,
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।धूपं।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ रित-रित फल,
हृदय गद-गद, ले नयन सजल
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।फलं।।
क्यूँ न मैं, भेंटूँ द्रव सबरी,
साथ झालर मृदंग मुरली,
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन
गया पतझड़, आया सावन
भर चला खुशिंयों से दामन
चाँद पूनम शरद मेरा
आज आया उतर आँगन ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
गुरु जी ने माँ सरीखा,
समर्पण करना सीखा
जयमाला
मुस्कान बाँटते हैं
प्रात से रात तक,
फिर रात से प्रात तक,
सद्-ज्ञान बाँटते हैं
सद्ग-गुरु मुस्कान बाँटते हैं
और बदले में, न बात करते ‘फी’ की,
‘रे और ऐसा भी नही, ‘के बात करते हैं फीकी,
स्वाभिमान राखते हैं
सद्-ज्ञान बाँटते हैं
सद्ग-गुरु मुस्कान बाँटते हैं
मुस्कान बाँटते हैं
प्रात से रात तक,
फिर रात से प्रात तक,
सद्-ज्ञान बाँटते हैं
सद्ग-गुरु मुस्कान बाँटते हैं
और ऐसा भी नहीं, के देते हैं चीन-चीन के,
चश्मा न रखते नाक, न रसिक दूरबीन के,
न दीवाल कान रखते हैं,
सद्-ज्ञान बाँटते हैं
सद्ग-गुरु मुस्कान बाँटते हैं
मुस्कान बाँटते हैं
प्रात से रात तक,
फिर रात से प्रात तक,
सद्-ज्ञान बाँटते हैं
सद्ग-गुरु मुस्कान बाँटते हैं
और बदले में, न बात करते ‘फी’ की,
‘रे और ऐसा भी नही, ‘के बात करते हैं फीकी,
स्वाभिमान राखते हैं
सद्-ज्ञान बाँटते हैं
सद्ग-गुरु मुस्कान बाँटते हैं
मुस्कान बाँटते हैं
प्रात से रात तक,
फिर रात से प्रात तक,
सद्-ज्ञान बाँटते हैं
सद्ग-गुरु मुस्कान बाँटते हैं
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
‘कि यूँ हो,
हम भीतर जायें,
हम भी-तर जायें
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