- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 796
हाईकू
उसे गुरुदेव ने,
तकलीफ़ कभी होने नहीं दी
जिसने गुरुदेव की,
तस्वीर कभी खोने नहीं दी
दयामयी गुरुदेव,
मेरे क्षमामयी गुरुदेव,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव,
क्षमामयी गुरुदेव,
मेरे दयामयी गुरुदेव,
दयामयी गुरुदेव,
मेरे क्षमामयी गुरुदेव,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।स्थापना।।
भेंटूँ नीर सुराह,
और न बस इक चाह,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन घोर,
और न भावन मोर,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।चन्दनं।।
भेंटूँ अक्षत राश,
और न बस अरदास,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।अक्षतं।।
भेंटूँ गुल वन-नंद,
और न बस अनुबंध,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।पुष्पं।।
भेंटूँ व्यंजन नेक,
और न इच्छा एक,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ दीप परात,
और न एक मुराद,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।दीपं।।
भेंटूँ स्वर्ण सुवास,
और न बस अभिलाष,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।धूपं।।
भेंटूँ खास, न ‘आम’,
और न बस मन-काम,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।फलं।।
भेंटूँ जल फल आद,
और न बस फरियाद,
किरपा अपनी मेरे ऊपर,
रखना बना सदैव ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
अद्भुत,
डोर थामे गुरु जी हाथ उसी बहुत
जयमाला
है बात न जाने क्या ?
पास तिरे, देर रुक कर भी,
ये मन मेरा, करता ही नहीं
कहीं और, यहाँ से जाने का,
है बात न जाने क्या ?
जाने का नाम सुनते ही,
मेरी भर आतीं आँखें,
मेरा रूँआ-रुँआ काँपे,
यहाँ से, जाने का नाम सुनते ही,
मेरी भर आतीं आँखें,
मेरा रूँआ-रुँआ काँपे,
कोई जन्नत मेरी, तो यहीं
कोई मन्नत मेरी, तो तुम्हीं,
कभी, पलक-भर भी
जाना तुमसे दूर, मुझे मंजूर नहीं
कोई जन्नत मेरी, तो यहीं
कोई मन्नत मेरी, तो तुम्हीं,
पास तिरे, देर रुक कर भी,
ये मन मेरा, करता ही नहीं
कहीं और, यहाँ से जाने का,
है बात न जाने क्या ?
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
नज़र गुरु उठायें,
‘कि नजर बुरीं बिलायें
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