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लघु चौबीसी विधान

03. संभव नाथ पूजन विधान

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

लघु संभव नाथ पूजन विधान

सिमरा सिरफ सम्भव नाम ।
संभव असम्भव सब काम ।।
करुणा क्षमा भण्डारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं श्री संभव जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)

की यम गांव तृष्णा खेव ।
खो चाली तृषा स्वयमेव ।।
हटके तृप्ति हो चाली ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष तृषा दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।

दृष्टि क्या हटाई भोग ।
ले चाले विदाई रोग ।।
सार्थक ‘स्व…स्थ’ गद-हारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष रोग दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।

रखने लगे आपा आप ।
भागा बुढ़ापा ले कॉंप ।।
‘जो…वन’ सार्थ कर डाली ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष जरा दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।

नत हो सुरत देती ढ़ोक ।
‘व्रत’ जो वि-रत कहता लोक ।।
मन रत’नार अविकारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष रति दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।

झिर जो अमृत चाली फूट ।
चर्चा क्षुधा कोरी झूठ ।।
सुन ले कौन आ…हारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष क्षुधा दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

मारग राग आग समान ।
‘जग’ सुन जाग, जग अवसान ।।
रागी बँधे ‘श्रुति’ न्यारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष राग दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।

‘तन मैं’ जुदा शोधन भूल ।
चकनाचूर मोहन धूल ।।
तव-मम शून्य खो चाली ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष मोह दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चिन्तन से जुड़े बेजोड़ ।
चिन्ता जा लगी यम दोर ।।
धन पुन सातिशय भारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष चिंता दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।

टोक विसार, विसरी रोक ।
इक गत शोक ! तुम पद ढ़ोक ।।
वृक्ष अशोक माया ‘री ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष शोक दोष
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

पञ्च कल्याणक अर्घ्य

पर्व गर्भ जै, जन्म जै,
त्याग, ज्ञान जै मोख ।
भगवन् संभव-नाथ जै,
हेत निराकुल सौख ।।
ॐ ह्रीं पञ्च कल्याणक युक्त
श्री सम्भव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जयमाला
डर यम लगाया यम घाट ।
अब कब जनमने की बात ।।
जम ही जनम बिन..ना ‘री ।
जिन संभव जयतु थारी ।।

मन से रण निकल जा दूर ।
मनसूबे मरण चकचूर ।।
सु…मरण रीत पड़ चाली ।
जिन संभव जयतु थारी ।।

युगपत् विदित तीन जहान ।
विस्मय हेत अब कब थान ।।
निध इक निराकुलता ‘री ।
जिन संभव जयतु थारी ।।

सप्तक भय सभी भयभीत ।
अष्टक मॉं समक्ष विनीत ।।
मस्तक लोक श्रृंगारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।

तोड़ विसार, विसरी जोड़ ।
तेली बैल बिछड़ी होड़ ।।
श्रम-कण-धार यम प्यारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।

पीछे पीठ स्वप्न समान ।
आगे नाक निज क्या ? जान ।।
विसरे खेद दिग्-धारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।

ढ़ाई अखर आगम सार ।
नफरत में अखर हैं चार ।।
पाठी, गई मति मारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।

छोड़ा शत्रु मान प्रमाद ।
निद्रा जीत ली निर्बाध ।।
मुद्रा सौम्य मनहारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।

पलटा अखर म-द द-म नाक ।
न बढ़ा अदद सिर पत राख ।।
निर्मद पॉंत बलिहारी ।
जिन संभव जयतु थारी ।।
ॐ ह्रीं अवशोष जन्म, मरण,
भय, विस्मय, स्वेद, खेद, द्वेष,
निद्रा, मद दोष
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

विधान प्रारंभ

प्रतिहार्य तूर ।
तट खेव, सूर ।
तम पाप चूर ।
परमाद दूर ।।
ॐ ह्रीं अर्हं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
ए ऐ ओ औ अं अः
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व,
श ष स ह
श्री संभव जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)

प्रथम वलय पूजन विधान
*स-ह-जो गुण संयुक्त*

विद् लोक लोक ।
गत रोक-टोक ।
सत् सोख शोक ।
शत सतत ढ़ोक ।।
ॐ ह्रीं अनन्य सर्वज्ञ
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

सहितोपदेश ।
नहिं कोप क्लेश ।
कल पोत देश ।
नुति हित स्वदेश ।।
ॐ ह्रीं एक हितोपदेशी
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जग जीत भाग ।
रग बीत राग ।
मग प्रीत जाग ।
नुति हेत फाग ।।
ॐ ह्रीं परम वीतरागी
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

द्वितीय वलय पूजन विधान
*क्षायिक रत्नत्-त्रय युक्त*

समीचीन दर्श ।
अक्षीण हर्ष ।
जग तीन पर्श ।
नित ढ़ोक फर्श ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक दर्शन युक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

अपकर्ष मान ।
आदर्श ज्ञान ।।
थिर हर्ष ध्यान ।
नुति मान हान ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक ज्ञान युक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

क्षायिक चरित्र ।
कालिख न मित्र ।
भा-वृत सचित्र ।
नुति मन पवित्र ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक चारित्र युक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

*त्रि-गुप्ति गुप्त*

मानस प्रगुप्त ।
आलस प्रसुप्त ।।
साहस संयुक्त ।
नुति हित विमुक्त ।।
ॐ ह्रीं मनस्-गुप्ति गुप्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

संगुप्त बोल ।
परि मुक्त चोल ।।
उन्मुक्त होड़ ।
वन्दन अमोल ।।
ॐ ह्रीं वचन-गुप्ति गुप्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

नग भांत देह ।
रग मात नेह ।।
दृग पॉंत मेह ।
नुति हित विदेह ।।
ॐ ह्रीं काय-गुप्ति गुप्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

तृतीय वलय पूजन विधान
*पञ्च पाप विमुक्त*

हिंसा विहीन ।
हंसा प्रवीण ।
ध्वंसा विधीन् ।
नुति सांझ तीन ।।
ॐ ह्रीं हिंसा पाप विमुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

कहते न झूठ ।
पड़ते न टूट ।।
रहते न रूठ ।
वन्दन अनूठ ।।
ॐ ह्रीं असत्य पाप विमुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

चोरी अभाव ।
कोरी किताब ।।
गोरी न गांव ।
नुति हित स्वभाव ।।
ॐ ह्रीं अस्तेय पाप विमुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

वश-भूत नैन ।
अनु-सूत वैन ।।
अनुभूति देन ।
नुति दिवस रैन ।।
ॐ ह्रीं अब्रह्म पाप विमुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

नत देवराट् ।
सर पे न गांठ ।।
उर है विराट ।
नुति हित समाध ।।
ॐ ह्रीं परिग्रह पाप विमुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

*चउ कषाय मुक्त*

गत क्रोध शान्त ।
प्रति-बोध, क्षान्त ।
अविरोध दान्त ।
नुति हेत कान्त ।।
ॐ ह्रीं क्रोध कषाय मुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

उपरत गुमान ।
उतरत विमान ।।
जप व्रत निधान ।
नुति विधि विधान ।।
ॐ ह्रीं मान कषाय मुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

छल छिद्र शून ।
रग दुग्ध खून ।।
मुख चन्द पूण ।
नूति युत प्रसून ।।
ॐ ह्रीं माया कषाय मुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

निर्लोभ तृप्त ।
सभ शोभ युक्त ।।
उर झोभ रिक्त ।
नुति हेत मुक्त ।।
ॐ ह्रीं लोभ कषाय मुक्त
श्री संभव जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।

जयमाला
हमारी रोज दिवाली है ।
तुम्हारी कृपा निराली है ।।

स्व…स्थ तन-मन ।
विदा अनबन ।
जेब खनखन ।
झुकी डाली हरियाली है ।
तुम्हारी कृपा निराली है ।।१।।

चैन निंदिया ।
सुलझी धिया ।
मित्र दुनिया ।
नज़र काली झर चाली है ।
तुम्हारी कृपा निराली है ।।२।।

साधु संगत ।
पुण्य सम्पत ।
शान्त परणत ।
हार हारी बलिहारी है ।
तुम्हारी कृपा निराली है ।।३।।

भीगे नयन ।
मीठे वचन ।
सीझे सुपन ।
चुनर शश तारों वाली है ।
तुम्हारी कृपा निराली है ।।४।।

जग कुटुम है ।
जलन गुम है ।
दुख खतम है ।
खड़ी दर यम बदहाली है ।
तुम्हारी कृपा निराली है ।।५।।

दोहा
हाथ ‘निराकुलता’ लगी,
किरपा सिर्फ तुम्हार ।
धका धका यूॅं दो लगा,
नैय्या मेरी पार ।।
ॐ ह्रीं श्री संभव जिनेन्द्र !
जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।

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