लघु अजित-नाथ पूजन विधान
हंस विवेकी ।
अहिंस एकी ।
प्रशंस नेकी ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
तृषा विहीना ।
तृष्णा क्षीणा ।
मृषा विलीना ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष तृषा दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
महान योगी ।
ज्ञान निरोगी ।
विमान भोगी ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष तृषा दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘जरा’ जरा ना ।
भला, बुरा ना ।
बड़ा घराना ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष जरा दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गत रत भावा ।
पत रख बाबा ।
दिव-शिव नावा ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष रति दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
क्षुधा विजेता ।
सुधा प्रणेता ।।
जुदा निकेता ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष क्षुधा दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जगत विरागी ।
परिणत जागी ।
मत बड़भागी ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष राग दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मोह अराती ।
मोहन थाती ।
द्रोह विजाती ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष मोह दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
खण्डित चिन्ता ।
मण्डित नन्ता ।
पण्डित ग्रन्था ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष चिंता दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शोक विघाता ।
मोख विधाता ।
त्रिलोक ज्ञाता ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष शोक दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पञ्च कल्याणक अर्घ्य
गर्भ, जन्म, तप तीसरा,
चौथा केवल ज्ञान ।
कल्याणक तप पांचवां,
जयतु अजित भगवान् ।।
ॐ ह्रीं पञ्च कल्याणक युक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला
सर…गम पर के ।
जन्म न फिरके ।
मर…हम मर के ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
मरण न होना ।
वरण सलोना ।
जल न बिलोना ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
दृग द्वय तीता ।
कब भयभीता ।
अक्षय गीता ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
विस्मय दूरी ।
वश कस्तूरी ।
जश नभ नूरी ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
लुप्त पसीना ।
गुप्ति प्रवीणा ।
विमुक्ति ‘जीना’ ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
न खेद खिन्ना ।
गुण सम्पन्ना ।
कृत निष्पन्ना ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
अवगत द्वेषा ।
गत संक्लेशा ।
जगत हमेशा ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
कृतान्त निद्रा ।
प्रशांत मुद्रा ।
शान्त समुद्रा ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
गत अभिमाना ।
सत कल्-याना ।
छत-पत राणा ।
देश विदेशा, और न ऐसा ।
जयतु जयतु जय अजित जिनेशा ।।
ॐ ह्रीं अवशोष जन्म, मरण,
भय, विस्मय, स्वेद, खेद, द्वेष,
निद्रा, मद दोष
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विधान प्रारंभ
जयतु अर्हम, जयतु अर्हम ।
जयतु सिद्धम्, जयतु सिद्धम् ।।
‘सूर’ श्रुत पुल प्रशंस बाँधो ।
जयतु साधो, जयतु साधो ।।
ॐ ह्रीं अर्हं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
ए ऐ ओ औ अं अः
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व,
श ष स ह
श्री अजित जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
प्रथम वलय पूजन विधान
*स-ह-जो गुण संयुक्त*
खबरिया कब लीनी अपनी ।
नजरिया मोर यूँ फिरकनी ।।
आप उतरे कछु…आ गहरे ।
तभी सर्वज्ञ केत लहरे ।।
ॐ ह्रीं अनन्य सर्वज्ञ
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हाय ! मैंने स्वारथ साधा ।
रीझ चाले क्यों ? शिव राधा ।।
स’हित’अनवर्थ जान तुमने ।
साध पर-हित पूरे सपने ।।
ॐ ह्रीं एक हितोपदेशी
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भरूॅं डग, लाये पाछे है ।
राग रग भरे कुलांचे है ।।
कहां तुम राग-रंग उलझे ।
आ चले पांत पात्र सुलझे ।।
ॐ ह्रीं परम वीतरागी
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान
*क्षायिक रत्नत्-त्रय युक्त*
चढ़ा श्रीफल, चादर हारा ।
आज पाया सांचा द्वारा ।।
रखा तुम पूर्व कृत भरोसा ।
तुम्हीं सा पाऊॅं संतोषा ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक दर्शन युक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लोक पन्ने-पन्ने छाने ।
सार्थ पन्ने कब पहचाने ।।
तराने गाये तुम करुणा ।
पाल आचरणा आंच…रणा ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक ज्ञान युक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चुराते जी हम संयम से ।
मिलें डरते डरते यम से ।।
कहा तुम, यम पीछे आओ ।
कहां चलना ? बस बतलाओ ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक चारित्र युक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*त्रि-गुप्ति गुप्त*
मन बड़ा चंचल है मेरा ।
जन्म मानस, बगुला चेरा ।।
छोड़ तेरा मेरा स्वामी ।
हुये तुम पुन धुन आसामी ।।
ॐ ह्रीं मनस्-गुप्ति गुप्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जुबां कुछ भी कह आती है ।
सजा पाती, पछताती है ।।
सार्थ ‘बोलो’ सुन तुम संभले ।
बढूॅं तुम से नन्हें पग ले ।।
ॐ ह्रीं वचन-गुप्ति गुप्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बैठना सीधा आता ना ।
झाँपना पलकें नाता ना ।।
सुना कायरता काय…रता ।
निकल चाले निज पाय पता ।।
ॐ ह्रीं काय-गुप्ति गुप्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान
*पञ्च पाप विमुक्त*
जियो, जीने दो सन्देशा ।
दया पहले, हो फिर पैसा ।।
तुम्हारी कृपा निराली है ।
भक्त तुम रोज दिवाली है ।।
ॐ ह्रीं हिंसा पाप विमुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रूठ शिव सपना जाता है ।
झूठ विश्वास उठाता है ।।
‘चलो जग’ हुआ बहुत रहना ।
‘अप्प दीवो भव’ तुम कहना ।।
ॐ ह्रीं असत्य पाप विमुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चोर दाढ़ी तिनका रहता ।
अयश सारी दुनिया बहता ।।
श्रृंखला प्रवचन तुम न्यारी ।
कहता सहता दृगधारी ।।
ॐ ह्रीं अस्तेय पाप विमुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
शर्म अंखियन, परिणति गोरी ।
सिर्फ उनकी सिरपुर छोरी ।।
छोड़ तोरी मोरी भक्ता ! ।
आप कहना सीधा रस्ता ।।
ॐ ह्रीं अब्रह्म पाप विमुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पड़े पीछे ग्रह अन-गिनती ।
सुरक्षा में निंदिया उड़ती ।।
बाद मूर्च्छा परिग्रह बोला ।
पूर्व तुमने परिग्रह छोड़ा ।।
ॐ ह्रीं परिग्रह पाप विमुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*चउ कषाय मुक्त*
बाद अफसोस, झुके मस्तक ।
क्रोध आ धमके बिन दस्तक ।।
क्षमा आभूषण वीरों का ।
सार्थ ‘इति-वृत’ शमशीरों का ।।
ॐ ह्रीं क्रोध कषाय मुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ऊंट नीचे पहाड़ आता ।
शेर भी सवा सेर पाता ।।
मान चुक, प्रामाणिक वाणी ।
हाथ आये पूजा ठानी ।।
ॐ ह्रीं मान कषाय मुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
कपट प्रद निपट मूर्ख जोनी ।
चढ़ी कब पुनः कठ-बघौनी ।।
ठगे कोई ठगनी माया ।
शीर्ष पे आप नाम आया ।।
ॐ ह्रीं माया कषाय मुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जीव निकले निगोद सींझे ।
लोभ लालच वश हम पीछे ।।
आश ले यही तुम्हें सिमरूँ ।
गर्त आशा भरना विसरूँ ।।
ॐ ह्रीं लोभ कषाय मुक्त
श्री अजित जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला
डगमगा पनडुबी तरी ।
दूर जा बिगड़ी है खड़ी ।
तुम्हारी कृपा है बड़ी ।।
गगरिया छलक न पाती है ।
मुरलिया कुहक लुभाती है ।
बजरिया मुलक लुटाती है ।
हाथ पिचकारी, फुलझड़ी ।
तुम्हारी कृपा है बड़ी ।।१।।
नजरिया चिराग साथी है ।
नजरिया दाग न थाती है ।
नजरिया लाग न पाती है ।
उछल सिर, पगड़ी न गिरी ।
तुम्हारी कृपा है बड़ी ।।२।।
सुनहरी कुटिया थाती है ।
इत्र बगिया बिखराती है ।
प्रभाती नदिया गाती है ।
बजाती दश बज दश घड़ी ।
तुम्हारी कृपा है बड़ी ।।३।।
चैन की निदिया आती है ।
जिया हठ ठंडक थाती है ।
दिया है, घर में बाती है ।
बर्फ सी पीड़ा घुल चली ।
तुम्हारी कृपा है बड़ी ।।४।।
तरैय्या मन बहलाती है ।
साथ गौरय्या खाती है ।
रंभाती गैय्या भाती है ।
पढ़ी दूजी बारह खड़ी ।
तुम्हारी कृपा है बड़ी ।।५।।
धूप घर छैय्या छाती है ।
खिवैय्या मति बन जाती है ।
सांझ नैय्या तर आती है ।
‘निरा-कुल’ सुख अशुअन झड़ी ।
तुम्हारी कृपा है बड़ी ।।६।।
दोहा
सहज निराकुल जो किया,
बरसा कृपा अपार ।
दया दृष्टि रखिये बना,
यूँ ही नाथ हमार ! ।।
ॐ ह्रीं श्री अजित जिनेन्द्र !
जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
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