लघु आदिनाथ पूजन विधान
बाल हो चले बड़े ।
माह छह अचल खड़े ।।
चल हजार-चार इन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं श्री आदि जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
प्यास लगी जोर से ।
प्राण कण्ठ में फंसे ।।
दीन पिया जल नदिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष तृषा दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
‘योग ओम्’ मुड़ चले ।
रोग रोम जुड़ चले ।।
थमे पास औषधिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष रोग दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रंग केश उड़ चला ।
सामने खड़ी जरा ।।
चोट सिर, शिला विधिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष जरा दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।
याद तिया जुड़ चली ।
भेद जिया बढ़ चली ।।
रात डसे, चुभे दिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष रति दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भूख सताने लगी ।
कर्ज मॅंगाने लगी ।।
बीन भखे फल विपिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष क्षुधा दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रूप लाड़-का शशी ।
लाड़-की हृदय वसी ।।
अश्रु झिर लगी नुछिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष राग दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
ध्यान मग्न थे भले ।
भेद-ज्ञान चिग चले ।।
सार्थ ‘गुल’ सुगंध बिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष मोह दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चिन्त-मण मनन श्रुता ।
चिन्त मनस् घुन पता ! ।।
गैल बैल तेलिइन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष चिंता दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।
हाथ क्या ? लगा नया ।
गांठ का चला गया ।।
राम न माया मिलिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष शोक दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
पञ्च कल्याणक अर्घ्य
गर्भ, जन्म कल्याण जै,
जै जै तप कल्याण ।
ज्ञान, मोक्ष कल्याण जै,
जै जै पुरु भगवान् ।।
ॐ ह्रीं पञ्च कल्याणक युक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला
‘जन्म’ मन तरंग दे ।
कर्म घोर रंग दे ।।
छेड़ चले बिल फणिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
भूल मच्छ तन्दुला ।
पूर्व भोग मन जुड़ा ।।
हा ! मुये अवीचि छिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
पाठ पढ़ चले नया ।
सार्थ नाम ‘विष-मया’ ।।
‘तम दिया तले’ श्रुतिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
धुआं धुआं तप जला ।
रुआं रुआं कॅंप चला ।।
सुन निनाद सिंह-करिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
देह श्वेद-कण सनी ।
धूल जम चली घनी ।।
शगुन अ-स्नान घिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
बढ़ जुडे संयोग से ।
हो दुखी वियोग से ।।
स्वयं हुये खेद खिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
भृकुटियां तना गया ।
शत्रु मनस् छा गया ।।
आंख छोड़ती अगिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
नींद आंख जुग भरी ।
आंख नाक डिग चली ।।
दृगस्-नात अंजुलिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
वहां राज मद रहा ।
महाराज मद यहां ।।
पांत जा खड़े कुधिन ।
त्याग तपस्या कठिन ।
जयतु जयतु आदि जिन ।।
ॐ ह्रीं अवशोष जन्म, मरण,
भय, विस्मय, स्वेद, खेद, द्वेष,
निद्रा, मद दोष
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
विधान प्रारंभ
जय अरिहन्त ।
सिद्ध, अनन्त ।।
गुरु श्रुत-वन्त ।
जयतु महन्त ।।
ॐ ह्रीं अर्हं
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ ॡ
ए ऐ ओ औ अं अः
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व,
श ष स ह
श्री आदि जिनेन्द्र !
अत्र अवतर अवतरण संवौषट्
(इति आह्वानन)
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
(इति स्थापनम्)
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
(इति सन्निधिकरणम्)
(पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
प्रथम वलय पूजन विधान
*स-ह-जो गुण संयुक्त*
विद् तिहु-लोक ।
बुध बुध ढ़ोक ।।
विटप अशोक ।
खुद आलोक ।।
ॐ ह्रीं अनन्य सर्वज्ञ
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
बढ़त न केश ।
अपगत द्वेष ।।
गत संक्लेश ।
हित उपदेश ।।
ॐ ह्रीं एक हितोपदेशी
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
मीता जाग ।
बीता राग ।।
गीता फाग ।
नीता भाग ।।
ॐ ह्रीं परम वीतरागी
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
द्वितीय वलय पूजन विधान
*क्षायिक रत्नत्-त्रय युक्त*
क्षायिक दर्श ।
माणिक पर्स ।।
धिक् अपकर्ष ।
इक आदर्श ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक दर्शन युक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
फिर संधान ।
चिर सद्-ध्यान ।।
थिर संज्ञान ।
‘धिरणा’ हान ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक ज्ञान युक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चरित्र नेक ।
पवित्र एक ।।
सचित्र लेख ।
विचित्र रेख ।।
ॐ ह्रीं क्षायिक चारित्र युक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*त्रि-गुप्ति गुप्त*
पुन अनुस्यूत ।
अनगिन सूत ।।
शरण अटूट ।
मन वश-भूत ।।
ॐ ह्रीं मनस्-गुप्ति गुप्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
भीतर मौन ।
सुर’भी सोन ।।
भूषण भौन ।
पद्मन जोन ।।
ॐ ह्रीं वचन-गुप्ति गुप्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
देह अडोल ।
विदेह ढ़ोल ।।
गेह अमोल ।
मेहर बोल ।।
ॐ ह्रीं काय-गुप्ति गुप्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
तृतीय वलय पूजन विधान
*पञ्च पाप विमुक्त*
हिंसा दूर ।
मन्सा पूर ।।
वंशा तूर ।
हंसा नूर ।।
ॐ ह्रीं हिंसा पाप विमुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
रीते झूठ ।
सीते टूट ।।
खींझे झूठ ।
रीझे रूठ ।।
ॐ ह्रीं असत्य पाप विमुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
चोरी शून ।
चौंर, प्रसून ।।
नग नाखून ।
अलग सुकून ।।
ॐ ह्रीं अस्तेय पाप विमुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लाजा आँख ।
नासा आँख ।।
पद्मा आँख ।
गंगा आँख ।।
ॐ ह्रीं अब्रह्म पाप विमुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सोम निसंग ।
व्योम पतंग ।।
रोम उमंग ।
ओम् तरंग ।।
ॐ ह्रीं परिग्रह पाप विमुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
*चउ कषाय मुक्त*
पीते क्रोध ।
रीते रोध ।।
जीते शोध ।
तीते बोध ।।
ॐ ह्रीं क्रोध कषाय मुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
गत अभिमान ।
सत् कल्-यान ।।
इति-वृत दान ।
संस्कृत ज्ञान ।।
ॐ ह्रीं मान कषाय मुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
माया क्षीण ।
हाय विलीन ।।
राया दीन ।
छाया चीन ।।
ॐ ह्रीं माया कषाय मुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
लोभ विलुप्त ।
क्षोभ सुषुप्त ।।
प्रलोभ मुक्त ।
शोभ विमुक्त ।।
ॐ ह्रीं लोभ कषाय मुक्त
श्री आदि जिनेन्द्र !
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।
जयमाला
तेरी बड़ी कृपा है ।
धक रही इक तरफा है ।
चैन की वंशी बाजे ।
धरा अम्बर जश गाजे ।
चरण तुम हृदय विराजे ।
दुष्कृत कॅंपा कॅंपा है ।
तेरी बड़ी कृपा है ।।१।।
थाप दे चांद सुलाऊँ ।
जाग के सूर्य जगाऊँ ।
डूबे ले, खूब कमाऊॅं ।
निश-दिन नफा नफा है ।
तेरी बड़ी कृपा है ।।२।।
बला घर तरफ न बढ़ती ।
धूप घर दिन भर पड़ती ।
खनक धन सिर ना चढ़ती ।
अनबन रफा दफा है ।
तेरी बड़ी कृपा है ।।३।।
खुशी के अश्रु बपौती ।
किसी ने जलन न होती ।
‘रत’ जुगाली पढ़ पोथी ।
दुर्मत खफा खपा है ।
तेरी बड़ी कृपा है ।।४।।
लाज दोई आंखों में।
दया जो ई हाथों में ।
साफ-गोई बातों में ।
दुर्गुण लुपा छुपा है ।
तेरी बड़ी कृपा है ।।
धक रही इक तरफा है ।
तेरी बड़ी कृपा है ।।५।।
दोहा
धसी निराकुलता बसी,
किरपा बड़ी तुम्हार ।
बस कीजे ‘के हो चलें,
शिव वधु आंखें चार ।।
ॐ ह्रीं श्री आदि जिनेन्द्र !
जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।
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