- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 687
=हाईकू=
सर गुरु ले लें सबके ग़म,
न रब से कम ।।स्थापना।।
वृत्ति-दोगली जाये गल,
ले भाव ये भेंटूॅं जल ।।जलं।।
विलाये वन-क्रन्दन,
ले भाव ये भेंटूॅं चन्दन ।।चन्दनं।।
पाऊँ गुण श्री-जी सम्पत्,
ले भाव ये भेंटूॅं अक्षत ।।अक्षतं।।
दृग् तरेर न पाये कुप्,
ले भाव ये भेंटूॅं पहुप ।।पुष्पं।।
नापे रास्ता क्षुध्-मरज,
ले भाव ये भेंटूॅं नेवज ।।नैवेद्यं।।
मोति पा जाये ‘कि सीप,
ले भाव ये भेंटूॅं प्रदीप ।।दीपं।।
मन, न फिरे स्वच्छन्द,
ले भाव ये भेंटूॅं सुगंध ।।धूपं।।
हो टूक दो ‘भौ’-सांकल,
ले भाव ये भेंटूॅं श्री फल ।।फलं।।
सिर चढ़ न बोले अघ,
ले भाव ये भेंटूॅं अरघ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
खड़ा हंसों की कतार में, जो कर लिया,
शुक्रिया
जयमाला
हो मेरे तुम,
हो तुम्हीं तो इक अनूठे
तुम ही, जो रहोगे मुझसे रूठे
तो जाऊँगा मैं कहाँ
भगवन् मेरे !
सच कहूँ, मैं बिन तेरे
छोड़ के ही चला जाऊँगा ये जहां
तुम ही, जो रहोगे मुझसे रूठे
तो जाऊँगा मैं कहाँ
बात ये किससे अनजानी है
पानी मछली की जिन्दगानी है
कहो ना, कितने पल,
मछली का बग़ैर जल, दम नहीं टूटे
जो रहोगे तुम ही मुझ रूठे
हो मेरे तुम,
हो तुम्हीं तो इक अनूठे
तुम ही, जो रहोगे मुझसे रूठे
तो जाऊँगा मैं कहाँ
भगवन् मेरे !
सच कहूँ, मैं बिन तेरे
छोड़ के ही चला जाऊँगा ये जहां
तुम ही, जो रहोगे मुझसे रूठे
तो जाऊँगा मैं कहाँ
बात ये पता नहीं, कहो किसे,
ऊ छोर जो पतंग डोर थामे उसे,
छूटते ही डोर का संग,
कहो ना, आके पतंग, न कौन ‘कोन” लूटे
जो रहोगे तुम ही मुझ रूठे
हो मेरे तुम,
हो तुम्हीं तो इक अनूठे
तुम ही, जो रहोगे मुझसे रूठे
तो जाऊँगा मैं कहाँ
भगवन् मेरे !
सच कहूँ, मैं बिन तेरे
छोड़ के ही चला जाऊँगा ये जहां
तुम ही, जो रहोगे मुझसे रूठे
तो जाऊँगा मैं कहाँ
बात ये कहो किसे पता नहीं,
जले न दीपिका, जले बाती-घी,
कहो ना, घी-बाती बिन,
दीपक का उसी छिन, क्या भाग ना फूटे
जो रहोगे तुम ही मुझ रूठे
हो मेरे तुम,
हो तुम्हीं तो इक अनूठे
तुम ही, जो रहोगे मुझसे रूठे
तो जाऊँगा मैं कहाँ
भगवन् मेरे !
सच कहूँ, मैं बिन तेरे
छोड़ के ही चला जाऊँगा ये जहां
तुम ही, जो रहोगे मुझसे रूठे
तो जाऊँगा मैं कहाँ
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
बजा ढ़ोल मैं कहता,
हूॅं किसी का,
तो गुरु जी का
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